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Burn Patients: अब जले मरीजों को मिलेगा तत्काल इलाज, गंभीर रोगों में शामिल; केंद्र ने जारी किए दिशा-निर्देश

परीक्षित निर्भय Published by: देवेश त्रिपाठी Updated Tue, 23 Dec 2025 05:44 AM IST
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सार

केंद्र सरकार ने जले मरीजों को तत्काल इलाज देने के लिए इसे गंभीर रोगों में शामिल करने का आदेश दिया है। अब अस्पताल संसाधन न होने का बहाना बनाकर मरीज को रोके नहीं रख पाएंगे। 

Now burn patients will get immediate treatment included in serious diseases Center Govt issued guidelines
जले हुए रोगियों को लेकर केंद्र सरकार ने जारी किए दिशा-निर्देश। - फोटो : ANI
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विस्तार
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जले हुए मरीजों को अब बिना इलाज अस्पतालों में बेवजह रोके नहीं रखा जा सकेगा। केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि यदि किसी अस्पताल में इलाज की सुविधा उपलब्ध नहीं है तो मरीज को स्थिर कर सीधे उस अस्पताल में भेजना होगा, जहां समुचित इलाज संभव हो।
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संसाधन नहीं है, ऐसा कहकर इलाज टालने या मरीज को घंटों रोके रखने की अब कोई छूट नहीं होगी। यह निर्देश जलने के उपचार के लिए मानक दिशानिर्देश 2025 में दिए हैं जिसे केंद्र सरकार ने देशभर के लिए लागू किया है। पहली बार बर्न के इलाज को लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज तीनों स्तरों की स्पष्ट जिम्मेदारी तय की गई है।
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राज्यों को जारी इन मानकों का चयन केंद्र सरकार ने 21 डॉक्टरों की संयुक्त समिति की सिफारिश पर किया है जिनमें से एक नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के बर्न विभागाध्यक्ष डॉ. मनीष सिंगल का कहना है कि आज भी बर्न मरीज को कई घंटे अस्पतालों में रोक लिया जाता है, जिससे संक्रमण और मौत का खतरा बढ़ जाता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर साल 60 से 70 लाख लोग बर्न की घटनाओं का शिकार होते हैं जबकि 1 से 1.5 लाख मरीजों की मौत हो जाती है।

पीएचसी अब सिर्फ रेफरल पॉइंट नहीं
नए मानकों के अनुसार, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को पहली बार लिखित रूप में इलाज की जिम्मेदारी दी गई है। पीएचसी को अब हल्के बर्न मामलों (10% से कम) का प्राथमिक इलाज करना होगा। उनके पास ठंडा करना (कूलिंग), ड्रेसिंग और टिटनेस इंजेक्शन उपलब्ध होगा। मरीज की स्थिति का आकलन कर समय पर रेफरल देना अनिवार्य होगा। अगर सुविधा उपलब्ध नहीं है तो मरीज को वहीं रोकना गलत माना जाएगा। ऐसे मामलों में मरीज को सीधे जिला अस्पताल भेजना होगा। इसी तरह के नियम जिला अस्पताल पर भी लागू होंगे और सुविधा न होने पर तत्काल मरीज को मेडिकल कॉलेज रैफर करना होगा।

मेडिकल कॉलेजों में बर्न यूनिट अनिवार्य
टर्शियरी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों के लिए गाइडलाइन में बर्न इलाज को एक अलग और समर्पित सेवा बताया गया है। इन अस्पतालों में बर्न यूनिट अनिवार्य कर दी गई है। जहां शुरुआती तीन से पांच दिन में त्वचा प्रत्यारोपण करना होगा। यहां एयरवे मैनेजमेंट और वेंटिलेशन के अलावा फिजियोथैरेपी, साइकोलॉजिकल काउंसलिंग और रिहैब टीम भी होंगी। डॉ सिंघल का कहना है कि देश के कई मेडिकल कॉलेजों में आज भी बर्न मरीजों को सामान्य सर्जरी वार्ड में रखा जाता है, जिससे संक्रमण और जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है।

एंटीबायोटिक पर सख्ती
नए मानकों में एक अहम निर्देश यह भी है कि बर्न मरीजों को बिना जरूरत एंटीबायोटिक नहीं दी जाएगी। रूटीन प्रोफिलैक्टिक एंटीबायोटिक पर रोक लगाते हुए कहा है कि दवा केवल संक्रमण या सेप्सिस में दी जाए और हर बर्न यूनिट अपनी एंटीबायोटिक पॉलिसी बनाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि डॉ सिंघल बताते हैं कि यह फैसला एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) को रोकने की दिशा में अहम कदम है।

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