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Parliament Attack: CRPF के 'पीडीजी' दस्ते को हटाने की वजह बना '13 दिसंबर', भुला दी गई जवानों की जांबाजी

Jitendra Bhardwaj जितेंद्र भारद्वाज
Updated Sat, 13 Dec 2025 01:41 PM IST
सार

संसद भवन की सुरक्षा में एक दशक से अधिक समय तक तैनात सीआरपीएफ के विशेष दस्ते पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (पीडीजी) को 13 दिसंबर 2023 की घटना के बाद हटा दिया गया और संसद की सुरक्षा सीआईएसएफ को सौंप दी गई। जांच समिति की रिपोर्ट में पीडीजी की कोई चूक सामने नहीं आई थी, क्योंकि फ्रिस्किंग और पास सत्यापन की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस के अधीन थी, फिर भी यह फैसला नीति स्तर पर लिया गया। आइए विस्तार से जानते हैं। 

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Parliament Attack: 'December 13' became the reason for the removal of CRPF's 'PDG' squad, the bravery
संसद के बाहर जवान - फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
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संसद भवन की सुरक्षा में एक दशक से अधिक समय तक तैनात रहे सीआरपीएफ के जांबाज 'पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप' (पीडीजी) को गत वर्ष हटा लिया गया था। इसके बाद संसद की सुरक्षा 'सीआईएसएफ' को सौंपी गई थी। खास बात है कि संसद भवन से सीआरपीएफ के 'पीडीजी' दस्ते को हटाए जाने की वजह भी '13 दिसंबर' ही बना था। हालांकि वह साल 2023 था। सीआरपीएफ जवानों की 'जांबाजी' को एक झटके में भुला दिया गया। इसके बाद 'पीडीजी' के जांबाजों को सम्मान देते हुए उन्हें 'वीआईपी सिक्योरिटी ग्रुप' का नाम दिया गया। वीएसजी के कमांडो, अब सीआरपीएफ की वीवीआईपी सिक्योरिटी विंग में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

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गत वर्ष संसद की सुरक्षा से पीडीजी की हुई वापसी ... 

संसद भवन की पुख्ता सुरक्षा के लिए 'पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप' (पीडीजी) का गठन किया गया था। इस विशेष बल में 1400 से अधिक जवानों को रखा गया। इसके अलावा एक डीआईजी, एक कमांडेंट, एक टूआईसी, छह डिप्टी कमांडेंट और 14 सहायक कमांडेंट को पीडीजी का हिस्सा बनाया गया। संसद भवन की सुरक्षा से हटने के बाद पीडीजी दस्ते को दो बटालियनों में विभाजित कर उसे सीआरपीएफ की वीआईपी सुरक्षा में शामिल किया गया। 13 दिसंबर 2023 को संसद भवन की सुरक्षा में बड़ी चूक सामने आई थी। उस दिन संसद भवन पर हुए हमले की 22 वीं बरसी थी। कुछ लोग संसद में घुस गए थे। मामले की जांच के लिए एक कमेटी गठित की गई थी। उसी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर तय हुआ कि अब संसद भवन की सुरक्षा सीआईएसएफ को सौंप दी जाएगी। 

सामने नहीं आई पीडीजी की कोई चूक ... 

जानकारों का कहना था कि उस घटना में पीडीजी की कोई चूक नहीं थी। घटना की जांच के लिए जो कमेटी बनी थी, उसमें सामने आया था कि फ्रिस्किंग/चेकिंग का काम तो दिल्ली पुलिस का था। पास वेरिफिकेशन भी दिल्ली पुलिस के नियंत्रण में था। जांच रिपोर्ट में सीआरपीएफ की कोई कमी नहीं मिली। इसके बावजूद सरकार ने पीडीजी को हटाने का निर्णय ले लिया। उच्च स्तरीय बैठक में कई अहम निर्णय लिए गए थे। तत्कालीन सीआरपीएफ डीजी अनीश दयाल सिंह को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था। पीडीजी, कोई सामान्य बल नहीं था। इसे सुरक्षा के कड़े व उच्च मानकों के आधार पर प्रशिक्षित किया गया था। एक झटके में पीडीजी के लगभग 1400 जवानों और अफसरों को वहां से हटा दिया गया। भले ही ये पॉलिसी मैटर रहा हो, लेकिन बल के पूर्व अफसरों को अनेक वर्षों से संसद भवन की सुरक्षा कर रहे पीडीजी को हटाने का औचित्य नजर नहीं आया। आतंकियों और नक्सलियों को खात्मा करने और सुरक्षा के अन्य मोर्चों पर अपना दमखम दिखाने वाले बल के अधिकारी एवं जवान, पीडीजी को हटाने के निर्णय से खुश नहीं थे। 


जांबाजी के बारे में नहीं सोचा गया … 

संसद भवन में गत वर्ष जो कुछ हुआ, कुछ हुआ उसके लिए सीआरपीएफ की तकनीकी तौर पर कोई जिम्मेवारी नही थी। जांच और रिव्यू कमेटी के मुखिया तो सीआरपीएफ के तत्कालीन डीजी थे। पूर्व अफसरों का कहना था कि जम्मू के रघुनाथ मंदिर या अयोध्या मंदिर का हमला हो, सीआरपीएफ ने अपना लोहा मनवाया है। कृष्ण जन्मभूमि मथुरा, बाबा विश्वनाथ वाराणसी जैसे कई बड़े धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सीआरपीएफ करती रही है। बनिहाल-काजीकुंड टनल के बनने से पूर्व तक और अब भी भारत के शेष हिस्से को कश्मीर से जोड़ने वाली जवाहर टनल की सुरक्षा, सीआरपीएफ जवान कर रहे हैं। वीआईपी सुरक्षा मुहैया कराने वाला यह बल एक विशेष फोर्स का दर्जा पा चुका है। संसद भवन की सुरक्षा से हटाते वक्त इस बल की जांबाजी के बारे में नहीं सोचा गया। 

पीडीजी को हटाना, तर्क आधारित विचार नहीं ... 

सीआरपीएफ के मौजूदा एवं पूर्व अधिकारियों का कहना था, संसद भवन से पीडीजी को हटाने के बारे में तर्क आधारित विचार विमर्श नहीं किया गया। न तो अतीत देखा गया और न ही भविष्य की सुरक्षा। सीआरपीएफ ने सुरक्षा के मोर्चे पर कितना कुछ किया है, मगर उसे एक झटके में किनारे कर दिया गया। इससे जवानों के मनोबल पर क्या असर पड़ेगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। श्रीनगर एयरपोर्ट की सुरक्षा करने में इस बल ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। वहां से भी हटा दिया गया। जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने 5 जुलाई 2005 को अयोध्या के राम मंदिर परिसर में हथगोलों व राकेट लांचर से ताबड़तोड़ हमला किया था। मंदिर परिसर की सुरक्षा में तैनात सीआरपीएफ जवानों ने पांचों आतंकियों को मुख्य स्थल तक पहुंचने से पहले ही ढेर कर दिया था। 




सीआरपीएफ ने लोकतंत्र के मंदिर की रक्षा की है ... 

करीब डेढ़ हजार की नफरी वाले पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप, जिसका एक ही मकसद था, किसी भी तरह के हमले से संसद को बचाना। पीडीजी के गठन से पहले भी सीआरपीएफ ने लोकतंत्र के मंदिर की रक्षा की थी। 13 दिसंबर 2001 को संसद पर आतंकवादी हमला हुआ। पाकिस्तान के आतंकी संगठन 'लश्कर-ए-तैयबा' और 'जैश-ए-मुहम्मद' के पांच दहशतगर्द, संसद भवन परिसर में घुस गए थे। सीआरपीएफ की सिपाही कमलेश कुमारी ने आतंकियों की गाड़ी को रोकने का प्रयास किया। उन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। संसद भवन के दरवाजे बंद होने के बाद सीआरपीएफ जवानों ने मोर्चा संभाला। सभी आतंकवादी मारे गए। महिला सिपाही के अलावा दिल्ली पुलिस और पार्लियामेंट में तैनात दूसरी सेवाओं के कई लोग मारे गए थे। कांस्टेबल कमलेश कुमारी को अशोक चक्र (मरणोपरांत) प्रदान किया गया। हवलदार यम बहादुर थापा, कांस्टेबल डी संतोष कुमार, कांस्टेबल सुखविंदर सिंह और सिपाही श्याबीर सिंह को शौर्य चक्र से नवाजा गया। 

सभी फोर्स की गंगोत्री है सीआरपीएफ ...  

बल के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, ये सीआरपीएफ के जवानों और अफसरों के लिए निराशाजनक फैसला था। पीडीजी को हटाना, फोर्स के उत्साह को कमजोर करना था। खास बात है कि पीडीजी को हटाने का फैसला, जिस कमेटी की रिपोर्ट पर हुआ है, उसके अध्यक्ष तो खुद सीआरपीएफ के तत्कालीन डीजी थे। सीआरपीएफ के पूर्व आईजी कमलकांत शर्मा ने उस वक्त कहा था, देखिये वैसे तो सभी फोर्स की नेचर ऑफ ड्यूटी अलग रहती है। हर कोई अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता रखता है। लौह पुरुष सदार पटेल, इस फोर्स के जनक हैं। जब हम कहते हैं कि 1939 में स्थापित हुई सीआरपीएफ, सभी फोर्स की गंगोत्री है तो उसमें कुछ गलत नहीं है। इस बल की अधिकांश नफरी तो पूरी तरह से ऑपरेशनल एरिया में रहती है। लॉ एंड ऑर्डर में भी ये फोर्स अग्रणी है। कहीं भी कोई आपदा आती है तो सिर्फ यह कहा जाता है कि प्लेन तैयार है, आपके पास तीस मिनट हैं। किसी भी जगह पर जवान/अफसर को, तीन साल स्थायित्व के नहीं मिल पाते। साल 2001 के संसद हमले में इन जवानों ने आतंकियों को करारा जवाब दिया था।लोकतंत्र के मंदिर की रक्षा की थी। ऐसे में अब बिना किसी वजह के पीडीजी को हटाना, इस पर सवाल खड़े होना लाजमी था। इस ड्यूटी के लिए अगर सीआरपीएफ और सीआईएसएफ का मर्जर करते तो ठीक रहता। दोनों बलों के पास अपनी एक विशेषता है। स्थायित्व और अनुभव, यह मेल एक बेहतर सुरक्षा दायरा स्थापित कर सकता था। 

हारी टीम बदली जाती है, जीती हुई नहीं ...  

सीआरपीएफ के पूर्व सहायक कमांडेंट सर्वेश त्रिपाठी ने कहा था, हर फोर्स में जवान बहादुर ही होते हैं। सभी बलों की अपने क्षेत्र में एक विशेज्ञता होती है। ऐसी कोई ड्यूटी नहीं होगी, जहां इस बल ने खुद को स्थापित न किया हो। श्रीनगर एयरपोर्ट से हटाया, इस बल को कोई दिक्कत नहीं हुई। संसद भवन की सुरक्षा से हटाना, ये बात कष्ट प्रदायक है। जांबाजों के मनोबल को कमजोर करने वाली है। अब 'राम मंदिर' की सुरक्षा से सीआरपीएफ को हटाने की चर्चा है। ऐसी जगहों की सुरक्षा के लिए इस बल ने शहादत दी है। असीम शौर्य का प्रदर्शन किया है। संसद भवन से क्यों हटाया जा रहा है, इसका कोई कारण तो बताएं। जवानों के मन में सवाल उठना लाजमी है। आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर इस बल की कामयाबी किसी से छिपी नहीं है। हारी हुई टीम को बदला जाता है, जीती हुई को नहीं। पीडीजी के मामले में यह बात उल्ट रही है। पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप की ट्रेनिंग एवं उपकरणों पर पैसा खर्च हुआ है। ये एक स्पेशल फोर्स थी। ऐसे में यहां से पीडीजी को हटाए जाना, जवानों के लिए एक भावुक पल तो था ही। साल 2012 से लेकर गत वर्ष तक पीडीजी, 16 सितंबर को अपना 'स्थापना दिवस' मनाता रहा है। 

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