कानों देखी: ...तो अब उदार होकर चलेंगे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ?
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विस्तार
उत्तर प्रदेश के कार्यवाहक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली आए थे। उनसे मिलने के लिए भाजपा नेताओं में होड़ लग गई। कहते हैं फलदार डाली थोड़ी झुक जाती है। जो उनसे मिल पाए, उनमें कई ने मुख्यमंत्री की तारीफ की। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत अन्य से भेंट की। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को भी यह अच्छा लगा कि मुख्यमंत्री मिलने के लिए आवास उनके 17 अकबर रोड गए। हालांकि करीब से समझने वालों की निगाह मुख्यमंत्री पद की शपथ और उसके बाद मंत्रियों की शपथ पर टिकी है। यह होली बाद होने की संभावना है। इसके लिए दिल्ली में भी मंथन हो रहा है। बताते हैं मुख्यमंत्री भी इस बार अपने मंत्रिमंडल के चेहरे को लेकर काफी गंभीर हैं। सूचना है कि इसमें केशव प्रसाद मौर्या जैसे चेहरे को शामिल करने को लेकर उनकी संवेदनशीलता बनी रहेगी।
स्टालिन, केसीआर, ममता...चलता रहेगा
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राजनीतिक भूमिका को थोड़ा बढ़ाना चाहती हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव को भी आने वाली चुनौतियां दिखाई दे रही हैं। यही स्थिति डीएमके के नेता एमके स्टालिन की भी है। स्टालिन को पता है कि भाजपा की बेताबी पश्चिम में कमल खिलाने की है। माना जा रहा है कि बजट सत्र के बाद एक बार फिर विपक्षी दलों के कुछ नेता विपक्ष की एकजुटता बढ़ाने का प्रयास कर सकते हैं। चुनाव प्रचार अभियान के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ममता बनर्जी के सलाहकार हैं। उनकी सलाह पर ही ममता बनर्जी की पार्टी गोवा में गई थी। तृणमूल के हिस्से में भले ही ज्यादा सीटें नहीं आईं, लेकिन इसने कई सीटों पर कांग्रेस की उम्मीद पर पानी फेर दिया। प्रशांत किशोर की सलाह पर चुनाव से पहले ममता चाहती थी कि गोवा में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस का विलय हो जाए, लेकिन आखिरी समय में कांग्रेस अध्यक्ष ने वीटो कर दिया था। अब ममता बनर्जी चाहती हैं कि कांग्रेस पार्टी इस तरह की राजनीतिक सच्चाई को स्वीकार कर ले। बताते हैं कि इसके बाबत उनकी कुछ कांग्रेस के नेताओं से भी चर्चा हो रही है।
अब पछताए क्या होत है, जब चिड़िया चुग गई खेत
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव चुनाव नतीजों की समीक्षा कर रहे हैं। उनके एक अति करीबी रणनीतिकार ने भी माना कि उन्होंने कुछ चीजों को ठीक करने को कहा है। पहले चरण, दूसरे चरण के प्रत्याशी चयन में थोड़ी जल्दबाजी हो गई थी। यह चिंता अखिलेश यादव की ही नहीं है। अब जयंत चौधरी को भी अपनी विरासत पाने में हुई चूक दिखाई देने लगी है। मथुरा के एक जाट नेता का कहना है कि उन्होंने तो दो बार जयंत को आगाह किया, लेकिन तब वह न जाने किस घोड़े पर सवार थे। सपा नेताओं को एक बड़ी टीस भी खाए जा रही है। उन्हें लग रहा है कि बसपा प्रमुख मायावती ने अपना वोट ट्रांसफर कराकर भाजपा को जितवा दिया। अखिलेश सरकार के एक नेता तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि मतदान से तीन-चार दिन पहले बसपा के नेता अपने कैडरों को संदेश देने लगे थे। इस संदेश में साफ था कि समाजवादी पार्टी ने बहन मायावती का अपमान किया था, इसलिए बदला लेने के लिए चुनाव में सपा को हराना है। नेता जी का कहना है कि उन्होंने अपने क्षेत्र में कोशिश भी की, लेकिन तबतक काफी देर हो चुकी थी।
महाराष्ट्र के अंदरखाने में चल रही है एक राजनीतिक हलचल
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का नतीजा आने के साथ-साथ महाराष्ट्र में भी राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। कांग्रेस पार्टी को अभी महाराष्ट्र में 'लाइन और लेंथ' जरा कम समझ में आ रही है। शिवसेना प्रमुख और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं है। उन्हें अपने पुत्र आदित्य ठाकरे को राजनीति में स्थापित करने की चिंता रह-रहकर परेशान करती है। युवा आदित्य सक्रिय तो बहुत रहते हैं। वह पिता उद्धव के साथ दिल्ली से मुंबई तक बड़े नेताओं की होने वाली बैठक में मौजूद रहते हैं। दूसरी तरफ शरद पवार राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं। कभी ढाई कदम आगे तो थोड़ा पीछे चलते रहते हैं। इसके कारण शिवसेना और कांग्रेस दोनों भाऊ साहेब (पवार) को लेकर गच्चा खा जाती हैं। महाराष्ट्र के सूत्र बताते हैं कि दिल्ली में बैठे भाजपा के कुछ नेता इन तमाम घटनाक्रमों पर नजर लगाए हैं। भाजपा के एजेंडे में महाराष्ट्र विधानसभा का आगामी चुनाव जीतना है। इसलिए अंदरखाने में हलचल तेज है।
पंजाब प्रधान सिद्धू को चुकानी पड़ेगी कीमत
पंजाब कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू को राज्य में पार्टी के करारी हार की कीमत चुकानी पड़ सकती है। फिलहाल सिद्धू डिफेंसिव चलते रहे हैं। अपने समर्थकों के जरिए वह चरणजीत सिंह चन्नी पर दांव लगाने और कांग्रेस के तमाम नेताओं के घर बैठ जाने को ही हार का बड़ा कारण बता रहे हैं। लेकिन अब कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को भी नवजोत की स्टाइल अखरने लगी है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के बारे में कहा जा रहा है कि सिद्धू का नाम आते ही वह मुंह दूसरी तरफ फेर लेती हैं। रवनीत सिंह बिट्टू भी सिद्धू के खिलाफ मोर्चा खोले पड़े हैं। समझा जा रहा है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी अब कांग्रेस प्रधान से कुछ दूरी बनाकर रखने का मन बना चुके हैं।
...और केशव प्रसाद मौर्य के सपने पर अपनों ने फेर दिया ठंडा पानी
योगी सरकार के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या बड़े जी-जान से लड़े, लेकिन चुनाव हार गए। आधे सपने बिखर गए, आधे उम्मीद पर जिंदा हैं। हालांकि जीतने के लिए अंतिम समय में केशव प्रसाद मौर्या ने जोर लगा दिया था। कहा जाता है कि उनके एक इशारे पर पुलिस ने लाठियां भी भांज दी थीं। मतगणना का काम काफी देर तक रुका रहा। मतगणना रुकते ही सपाई आक्रामक हो गए और उन्हें गड़बड़ी की आशंका नजर आने लगी। बताते हैं कि यह खबर मुख्यमंत्री तक भी पहुंची। योगी आदित्यनाथ को यह समझते देर न लगी कि इससे भाजपा और सरकार की छवि को करारा झटका लग सकता है। लिहाजा उन्होंने तत्काल चुनाव मतगणना में पूरी निष्पक्षता और ईमानदारी बरते जाने का निर्देश दे दिया। यह डा. पल्लवी पटेल के लिए भी अच्छा रहा। वैसे केशव को जिताने में भाई-भतीजे, पुत्र ने भी बड़ी मेहनत की थी। मतदान के एक सप्ताह पहले तक केशव को हार का कोई इल्म न था। हालांकि क्षेत्र में उनके परिवार और निजी सचिवालय के कुछ सदस्यों से जनता खफा थी। केशव के सिपहसालारों में गिने जाने वाले देवराज प्रजापति को कुछ दिन पहले गड़बड़ी होने का अंदेशा हो गया था। भाजपा के ही कुछ नेता उप मुख्यमंत्री को गच्चा देने में लग गए थे। इसमें एक नाम तो सांसद विनोद सोनकर का भी लिया जाता है। बताया जाता है कि केशव बाबू इसकी शिकायत आला नेताओं से भी कर सकते हैं। लेकिन इससे क्या होगा? कोई सीएम की दावेदारी तो मिल नहीं जाएगी।
बृजेश पाठक बनेंगे बड़ा चेहरा, स्वतंत्र देव सिंह का बढ़ेगा कद
मुख्यमंत्री योगी की नई सरकार में बृजेश पाठक को अहम विभाग के साथ कुछ और जिम्मेदारी मिल सकती है। लखनऊ भाजपा मुख्यालय भी पाठक के व्यवहार, कामकाज, मेहनत का मुरीद है। जाति से ब्राह्मण हैं ही। उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रचार अभियान में लगातार डटे रहने वाले एक केंद्रीय मंत्री भी पाठक की पैरोकारी कर रहे हैं। बृजेश के अलावा पार्टी के सीनियर नेताओं की निगाह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह पर भी है। स्वतंत्र देव सिंह आम तौर पर लो प्रोफाइल रहकर काफी मजबूती से प्रयास करते हैं। वह जाति से पटेल हैं और स्वतंत्र देव सिंह लिखते हैं। भाजपा के रणनीतिकारों में शामिल प्रदेश के एक वरिष्ठ सूत्र का कहना है कि स्वतंत्र देव सिंह को भी 274 सीटें मिलने का इनाम मिलना चाहिए। वैसे भी वह प्रधानमंत्री मोदी की गुडबुक में रहते हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ भी उनका अच्छा तालमेल रहता है।