{"_id":"62e998af3ddaf02dd01c4c13","slug":"political-gossips-eknath-shinde-started-threatening-uddhav-supporters-says-after-all-what-are-they-waiting","type":"story","status":"publish","title_hn":"कानों देखी: मुंह खोलने के लिए आखिर किसका इंतजार कर रहे हैं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे?","category":{"title":"India News","title_hn":"देश","slug":"india-news"}}
कानों देखी: मुंह खोलने के लिए आखिर किसका इंतजार कर रहे हैं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे?
सार
एकनाथ शिंदे के पास भाजपा के कुछ बड़े नेताओं का सहारा है। उनके पीछे छाया के तौर पर केवल उनके राजनीतिक गुरु आनंद दिघे ही हैं। दीघे ठाणे के बड़े शिवसैनिक थे, लेकिन उनके जैसे पार्टी में कई नेता भी थे। दूसरे भाजपा के नेता भी अब शिंदे सरकार में अपने पत्ते फेंटना शुरू कर चुके हैं।
विज्ञापन
उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे।
- फोटो : अमर उजाला
विज्ञापन
विस्तार
मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद शिवसेना प्रमुख घायल शेर की तरह व्यवहार कर रहे हैं। अपने संबोधनों में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को दगाबाज, धोखेबाज, पीठ में छुरा भोंकने वाला तक कह डालते हैं। सहज, सुलभ और सरल हो रहे उद्धव और उनके बेटे आदित्य ठाकरे का यह अंदाज मराठी मानुष और शिवसैनिकों को अपील करने लगा है। आदित्य और उद्धव यह कहना भी नहीं भूलते कि सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते, उसका स्वागत है।
Trending Videos
महाराष्ट्र के खबरचियों ने बताया कि यह ऑपरेशन उद्धव अब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का बीपी बढ़ा रहा है। एकनाथ शिंदे के पास भाजपा के कुछ बड़े नेताओं का सहारा है। उनके पीछे छाया के तौर पर केवल उनके राजनीतिक गुरु आनंद दिघे ही हैं। दीघे ठाणे के बड़े शिवसैनिक थे, लेकिन उनके जैसे पार्टी में कई नेता भी थे। दूसरे भाजपा के नेता भी अब शिंदे सरकार में अपने पत्ते फेंटना शुरू कर चुके हैं। मंत्रिमंडल का विस्तार भी नहीं हुआ है। ऐसे में एकनाथ शिंदे अब धमकी देने पर उतारू हैं। उन्होंने धमकाना शुरू किया है कि जब वह मुंह खोल देंगे तो भूकंप आ जाएगा। शिंदे की इस धमकी पर शिवसेना (उद्धव) के नेता कहते हैं कि आखिर उन्हें किसका इंतजार है? क्या गृहमंत्री अमित शाह को इसके लिए कहना पड़ेगा?
विज्ञापन
विज्ञापन
बढ़ाते जा रहे हैं योगी जी अपना कद
पांच साल मुख्यमंत्री रहने के बाद मिले अनुभव से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने दूसरे कार्यकाल को सजा रहे हैं। उनके गिर्द-गिर्द रहने वाली मंडली पिछले कार्यकाल के जोश में होश का मिश्रण करके अब सबकुछ बारीकी से देखकर आगे बढ़ रही है। मुख्यमंत्री योगी का यह नया अवतार उनके विरोधियों के लिए बड़ा झटका है। योगी जी नई दिल्ली, नागपुर एक्सप्रेस और लखनऊ में गोमती के रंग को लेकर लगातार संवेदनशीलता बनाए हुए हैं। कालिदास मार्ग में घूमने वाले खबरचियों की सूचना है कि इससे योगी जी के कुछ विरोधियों की परेशानी बढ़ रही है। मंत्री दिनेश खटीक तो लंबे समय के लिए चुप हो गए हैं। उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक की तबादले की नीति पर चोट की मुहिम रंग लाई है। मंत्री जितिन प्रसाद को अपनी लक्ष्मण रेखाओं का एहसास हो चुका है। बचे उपमुख्यमंत्री केशव बाबू। खबर है कि उन्हें कुछ बड़ी संभावना नजर आ रही है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह उन्हें पसंद करते हैं। केशव से अच्छा तालमेल रखने वाले पार्टी के संगठन मंत्री सुनील बंसल को काफी कुछ एहसास हो चुका है। उन्हें तेलंगाना में पार्टी को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी मिली है। लिहाजा अब योगी जी भी आश्वस्त हैं कि सबकुछ ठीक चलेगा। आश्वस्त हों भी क्यों न 2024 में कोई 75 के करीब सीटें लाने का लक्ष्य जो पाना है। दिल्ली को भी पता है कि बिना लखनऊ में गोमती का पानी पीए सबकुछ मुमकिन नहीं है।
सोनिया गांधी अब डर जाओ
लोकसभा में जो हुआ, वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए अप्रत्याशित था। उनसे ज्यादा कांग्रेस और विपक्ष के नेताओं को हैरान कर गया। हैरानी तो दूसरे दिन ज्यादा हुई जब राष्ट्रपति से मिलने केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह गए और संदेश देने के लिए केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को ले गए। अंदाज और राजनीतिक आक्रमण, अपने नेता के पीछे खड़े होने का तरीका ठीक उसी तरह का था, जैसे आजम खान की टिप्पणी के बाद पूरी पार्टी, नेता, सांसद सब सभापति के आसन पर बैठी रमा देवी के साथ हो गए थे। कांग्रेस पार्टी के पूर्व महासचिव कहते हैं कि दरअसल भाजपा असल की मर्यादा वाली राजनीति की बजाय परसेप्शन के संदेश देने वाली राजनीति कर रही है। अब यहां कमर के नीचे वार और कमर के ऊपर वार में कोई खास अंतर नहीं रह गया है। वैसे भी यहां कांग्रेस से ज्यादा विपक्षी दलों को संदेश दिया जा रहा है। जबकि इस मामले में विपक्ष के ही एक घुटे हुए एक गैर कांग्रेसी सांसद का कहना है कि कांग्रेस ने राजनीतिक समझदारी से सोनिया गांधी का एक औरा बना रखा था। सत्ता पक्ष पिछले कुछ समय से इसे तोड़ना चाहता था। यह इत्तेफाक है कि उसे अचानक यह अवसर मिल गया है। वह कहते हैं कि इस तरह के हालात के लिए जितनी जिम्मेदार भाजपा है, उतनी ही कांग्रेस।
ममता के पार्थ एपीसोड की गूंज रांची, दिल्ली, हैदराबाज के नक्कारखाने में
प्रवर्तन निदेशालय की गिरफ्त में आए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पार्थ चटर्जी की खामोश गूंज कई राज्यों में तरंगे बिखेर रही है। ममता के कुछ करीबी मंत्री भी सावधान होकर चल रहे हैं। झारखंड में अब सोरेन भी रुख देखकर रुख तय कर रहे हैं। बिहार में दो एकनाथ शिंदे होने की सूचना ने जद(यू) में नई खलबली पैदा कर दी है। दिल्ली में इसकी हलचल तो अब दिखने लगी है। आबकारी नीति में बदलाव, सत्येन्द्र जैन की मुसीबत, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर लटक रही तलवार कई राज खोलने को तैयार है। खबर यह है कि गुजरात चुनाव से ऐन पहले ही कुछ बड़ी हलचल होनी है। इसके अलावा हैदराबाद के नक्कारखाने में भी बेहद सतर्कता बरती जा रही है। वहां एमआईएमआईएम के ओवैसी बंधु हैं। अपने बयानों के लिए विख्यात हैं। नबावी शहर है और बड़ी संख्या में वहां की फिजां में राष्ट्रवाद को गुंजायमान करना है। इसका पॉलिटिकल लिटमस टेस्ट हैदराबाद के निकाय चुनाव में हो गया है। उत्तर प्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल को वहां की जिम्मेदारी देकर तेलंगाना के कीचड़ में कमल की फसल लहलहाने का टारगेट दिया गया है। जब बात कीजिए तो एक केन्द्रीय मंत्री पहले मुस्कराते हैं। फिर धीमे से कहते हैं कि यही तो नए दौर की चाणक्यगिरी है। बस आप देखते रहिए।
क्या हवन करने के चक्कर में स्मृति ईरानी ने जलाए अपने हाथ?
बेटी जोइश ईरानी पर गोवा में बार और रेस्तरां को लेकर कांग्रेस पार्टी के नेता पवन खेड़ा के आरोपों से तिलमिलाई स्मृति ईरानी अदालत में पहुंच चुकी हैं। केन्द्रीय मंत्री ने ऐसा करके क्या हवन करने के चक्कर में अपने हाथ जला लिए हैं? कांग्रेस के नेता तो यही मानते हैं। कांग्रेस की गोवा ईकाई के एक नेता कहते है कि कोई भी आरोप जल्दबाजी में नहीं लगे हैं। इसकी पूरी जांच पड़ताल करके लगे हैं। पवन खेड़ा खुद काफी उत्साहित हैं। खेड़ा का कहना है कि अदालत में सभी सबूत रखे जाएंगे और इस मामले का जवाब दिया जाएगा। पार्टी को उम्मीद है कि मामला हाई प्रोफाइल है और अदालती कार्रवाई की रिपोर्टिंग भी बड़े काम की होगी। काफी कुछ मीडिया पर भी निर्भर करेगा। भाजपा के भी एक नेता हैं। वह स्मृति ईरानी के अदालत की शरण लेने को बहुत अच्छा नहीं मान रहे हैं। उनका कहना है कि इस मुद्दे पर थोड़ा संयम और संवेदनशीलता का सहारा लिया जाना चाहिए था। सूत्र का कहना है कि धुआं तो कहीं चिनगारी सुलगने के बाद ही उठता है।