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Rakesh Chopdar: कभी लोग कहते थे नकारा, खुद के सीखे हुनर से खड़ी की एक अरब डॉलर की कंपनी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला Published by: शुभम कुमार Updated Mon, 23 Dec 2024 07:25 AM IST
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सार

आजाद इंजीनियरिंग के संस्थापक राकेश चोपदार ने पिता के कारखाने में काम करते हुए इंजीनियरिंग के कौशल सीखे। अपनी मेहनत के बलबूते एक सफल कंपनी खड़ी करके उन्होंने साबित किया कि सफल होने के लिए किसी विशेष शिक्षा की जरूरत नहीं होती...
 

Rakesh Chopdar: with the skills he learned himself, he built a billion dollar company
राकेश चोपदार - फोटो : अमर उजाला
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एक पच्चीस-छब्बीस साल का लड़का, जो अपने पिता के साथ कारखाने में काम करता था। एक दिन एक व्यक्ति कारखाने में आया और उस लड़के के पिता से फास्टनर खरीदने के लिए चर्चा करने लगा। उसके हाथ में एक एयरोफॉइल था। वह आदमी दुनिया भर में एयरोफॉइल का एक बेहतर आपूर्तिकर्ता, बेहतर कीमत और बेहतर गुणवत्ता की तलाश में था, जो उसे नहीं मिल रहा था। उस लड़के ने जैसे-तैसे उस व्यक्ति को मना लिया कि वह उसे अपना खुद का एयरोफॉइल बनाने की कोशिश करने दे। जब उस लड़के ने कुछ महीनों बाद उत्पाद तैयार करके उस आदमी को दिया, तो वह हैरान रह गया।
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वह उस लड़के की शुरुआत थी, जिसके बाद उसे कोई रोक नहीं पाया। वह लड़का कोई और नहीं राकेश चोपदार हैं। राकेश ने साबित किया कि अवसरों को पाने के लिए किस्मत के बजाय जुनून की जरूरत होती है। राकेश की कंपनी ने न केवल विनिर्माण उद्योग में मानक स्थापित किए हैं, बल्कि वैश्विक एयरोस्पेस और ऊर्जा क्षेत्रों में भी नाम कमाया है। राकेश चोपदार का स्कूल छोड़ने से लेकर हैदराबाद स्थित कंपनी आजाद इंजीनियरिंग के संस्थापक बनने तक का सफर लगन, नवाचार और उत्कृष्टता का जीवंत उदाहरण है।
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असफल और नकारा  
राकेश चोपदार ने 17 साल की छोटी-सी उम्र में हाई स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी। राकेश चोपदार पढ़ाई में काफी कमजोर थे। इस कारण उन्हें घर-परिवार और दोस्तों से काफी ताने सुनने को मिलते थे। यहां तक कि दसवीं पास न कर पाने के कारण लोग उन्हें नकारा और असफल तक कहकर बुलाते थे। घरवालों के तानों से बचने के लिए राकेश ने पिता की नट-बोल्ट बनाने के कारखाने में काम करना शुरू कर दिया।

बिना पढ़ा-लिखा इंजीनियर  
चोपदार की सफलता की राह उनके पिता की फैक्ट्री एटलस फास्टनर्स से शुरू हुई। वहां काम करते हुए वह एक ऐसे इंजीनियर बन गए, जिन्होंने न तो कॉलेज का मुंह देखा और न ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। पिता के साथ कारखाने में ही उन्होंने मशीनरी में महारत हासिल की और व्यवसाय की पेचीदिगियों को सीखा। उनके व्यावहारिक अनुभव ने आजाद इंजीनियरिंग के विकास और नवाचार की नींव रखी। उन्होंने 2008 में खुद के कौशल पर भरोसा करते हुए आजाद इंजीनियरिंग की शुरुआत की।

सेकंड-हैंड सीएनसी मशीन से शुरुआत
राकेश ने एक सेकंड-हैंड सीएनसी मशीन के साथ 200 स्क्वायर मीटर के शेड में बालानगर में शुरुआत की। कंपनी को धीरे-धीरे आगे बढ़ा रहे थे, तभी उन्हें यूरोपीय कंपनी के लिए थर्मल पावर टर्बाइनों के लिए एयरोफॉइल बनाने का एक ऑर्डर मिला। यह ऑर्डर आजाद इंजीनियरिंग की सफलता का पहला पड़ाव था, क्योंकि इससे उन्हें और उनकी कंपनी को वैश्विक पहचान मिलनी शुरू हो गई। विभिन्न स्टेनलेस-स्टील सामग्रियों के साथ काम करके उन्होंने महत्वपूर्ण घटकों के निर्माण में महारत हासिल की।

नवाचार के लिए जुनून
राकेश को नए-नए नवाचार करना बेहद पसंद है। उन्होंने कई ऐसे उत्पाद और उपकरण बनाए हैं, जो विश्व स्तर पर कई कंपनियों और इंजीनियरिंग में महारत हासिल इंजीनियरों की क्षमताओं को चुनौती देते हैं। उन्हें गैस, भाप, और एयरो इंजन से जुड़े जटिल और आधुनिक तकनीक पर आधारित उपकरण बनाना ज्यादा पसंद है। इसी का परिणाम है कि भारत की रक्षा उपकरण बनाने वाले संगठन डीआरडीओ ने आजाद इंजीनियरिंग के साथ एक समझौता किया है। कंपनी डीआरडीओ के लिए हाइब्रिड टर्बो-गैस जनरेटर इंजन का निर्माण करेगी। इसके अलावा कंपनी ने रोल्स-रॉयस के साथ भी कई समझौते किए हैं।

माइनिंग और जहाजों के पुर्जे
राकेश चोपदार की कंपनी के पुर्जे तेल और गैस ड्रिलिंग डिवाइस को जमीन से 30,000 फीट नीचे और विमान को जमीन से 30,000 फीट ऊपर चलने में मदद करते
हैं और जमीन पर रोटेटिंग पुर्जे न्यूक्लियर टर्बाइनों को शक्ति देते हैं। उनकी कंपनी आजाद इंजीनियरिंग का कुल रेवेन्यू 350 करोड़ रुपये था। आज उनकी कंपनी का बाजार पूंजीकरण एक अरब डॉलर से अधिक हो गया।

युवाओं को सीख
  • संघर्ष से कभी घबराना नहीं चाहिए।
  • किताबों से ज्ञान मिलता है, लेकिन जो अनुभव से सीखता है, वो दुनिया बदलता है।
  • हार तब होती है जब हम उम्मीद छोड़ देते हैं, वरना कोशिश से तो कामयाबी मिल ही जाती है।
  • आपकी इच्छाशक्ति मंजिल तक पहुंचने की सबसे बड़ी सीढ़ी है।
  • सफर में गिरना जरूरी है, क्योंकि वही उठने की कला सिखाता है।
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