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CJI: 'जीवनरक्षक स्थायी आर्थिक सहायता पर सुनवाई करें..', दुर्लभ बीमारियों के मरीजों का चीफ जस्टिस गवई से आग्रह

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली। Published by: निर्मल कांत Updated Wed, 05 Nov 2025 06:07 PM IST
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Rare disease patients write to CJI, seek assurance of sustainable funding in upcoming SC hearing
चीफ जस्टिस बीआर गवई - फोटो : पीटीआई
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देशभर के दुर्लभ बीमारियों (रेयर डिजीज) से जूझ रहे मरीजों और उनसे जुड़ी संस्थाओं ने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। उन्होंने सात नवंबर को होने वाली सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से पहले बच्चों और युवाओं के जीवन बचाने के लिए स्थायी आर्थिक सहायता (फंडिंग) सुनिश्चित करने की मांग की है।
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'50 लाख रुपये की सीमा से नहीं हो पा रहा उपचार'
पत्र में कहा गया कि प्रशासनिक देरी और 'दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति (एनपीआरडी) 2021' के तहत एकमुश्त 50 लाख रुपये की सीमा के कारण सैकड़ों बच्चों का उपचार नहीं हो पा रहा है। नीति के मुताबिक, देशभर में चिन्हित 12 उत्कृष्टता केंद्र में पंजीकृत दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित हर मरीज को इलाज के लिए अधिकतम 50 लाख रुपये तक की आर्थिक मदद दी जाती है।
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'दो वर्ष में साठ मरीजों की मौत, बिना उपचार के 55 रोगी'
इसमें आगे कहा गया, पिछले दो वर्षों में ही लगभग 60 मरीजों की मौत हो चुकी है, क्योंकि वे 50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता की सीमा पूरी कर चुके थे। वहीं 55 से अधिक मरीज महीनों से बिना इलाज के हैं, जबकि वे पंजीकृत हैं और जीवनरक्षक थेरेपी के योग्य हैं। यदि जल्द दखल नहीं दिया गया, तो साल के अंत तक यह संख्या 100 से अधिक हो जाएगी। 

हाईकोर्ट ने दिया था राष्ट्रीय कोष बनाने का आदेश
दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल चार अक्तूबर 2023 को आदेश दिया था कि 'दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय कोष' बनाया जाए और इसके लिए 974 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाए, ताकि फंडिंग की सीमा हटाई जा सके और उपचार लगातार जारी रहे। लेकिन इसके बजाय, स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर कर दी, जिससे मरीजों को मिलने वाली राहत रुक गई। पत्र में कहा गया कि यह मामला लगभग एक साल से लंबित है और इस दौरान कई मरीजों ने दम तोड़ दिया है।

लायसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर सपोर्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया (एलएसडीएसएस) मनजीत सिंह ने कहा, हम दया नहीं मांग रहे, हम केवल हाईकोर्ट के उस आदेश के पालन की मांग कर रहे हैं जो हमारे बच्चों के गरिमा के साथ जीने के अधिकार को मान्यता देता है। 

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