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UP Assembly Election 2022: ब्रांड अखिलेश यादव और समाजवादी इत्र, क्या इस बार बदलेगी ‘चुनावी फिजा’

Pratibha Jyoti प्रतिभा ज्योति
Updated Tue, 09 Nov 2021 07:28 PM IST
सार

समाजवादी पार्टी में गीत- संगीत पहले से था, लाल टोपी भी थी, अब खुशबू भी आ गई है। अखिलेश यादव अपने इस चुनाव अभियान को बड़े पेशेवर अंदाज में नए ढंग से चला रहे हैं जो नेता और उनके संदेश को मतदाताओं तक तेजी से पहुंचा रहा है। 
 
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समाजवादी इत्र - फोटो : amar ujala

विस्तार
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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले ‘चुनावी फिजा’ महकाने के लिए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने मंगलवार को 'समाजवादी इत्र'  नाम से परफ्यूम लॉन्च किया।  इस इत्र को कन्नौज के सपा एमएलसी पम्पी जैन ने तैयार किया है। इस मौके पर अखिलेश यादव ने कहा कि इसकी खुशबू का असर 2022 में दिखाई देगा। 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आंधी के सामने अखिलेश की करारी हार हुई थी। कांग्रेस से गठजोड़ के बाद भी दोनों को मिलाकर कुल 52 सीटें ही मिल पाई थीं। लेकिन इस बार वे वापसी की उम्मीद कर रहे हैं। 


अखिलेश यादव समाजवाद का नया चेहरा हैं। उनके पिता इंग्लिश और कंप्यूटर के खिलाफ थे, लेकिन वे ऑस्ट्रेलिया से इंग्लिश में पढ़ कर आए हैं। वह वेस्टर्न म्यूजिक सुनते हैं। लिहाजा 2022 का चुनाव भी सपा अध्यक्ष नए अंदाज में लड़ रहे हैं, जिसके केंद्र में युवा हैं, महिलाएं हैं, सोशल मीडिया है और यूपी का जातीय समीकरण है। यूपी की सत्ता में वापसी के लिए इस बार सपा प्रमुख राजनीतिक दांवपेंच के अलावा चुनाव प्रचार के लिए भी अलग-अलग तरीके निकाल रहे हैं। वे इस चुनाव में बेहद आक्रमक अंदाज में दिख रहे हैं और हर वर्ग के लिए अलग तरीके से पार्टी की रणनीति तैयार कर रहे हैं। 'समाजवादी इत्र' इसकी ही एक कड़ी है। जबकि इससे पहले अखिलेश यादव पूरे प्रदेश में विजय रथ यात्रा निकाल कर जनता के बीच पहुंचने की शुरुआत कर चुके हैं। 


जानकार बताते हैं कि अखिलेश हर चुनाव में कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करते हैं जिससे ‘ब्रांड अखिलेश’ अपनी पार्टी की चुनावी नैया पार करा सकें। 2022 का चुनाव सपा के लिए जीने-मरने का सवाल बन गई है लिहाजा अखिलेश यादव इस चुनाव में पूरे दमखम के साथ उतरे हैं। सूत्र बताते हैं कि अखिलेश यादव ने 2017 के चुनाव में कुछ अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से चुनाव जीतने की कई बारीकियां सीखी थीं जिसका इस्तेमाल वे इस चुनाव में भी कर रहे हैं। 
 

अखिलेश यादव
अखिलेश यादव - फोटो : amar ujala
अखिलेश के फोकस में क्या
समाजवादी पार्टी हर वर्ग को साधने में लगी है। पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। अखिलेश यादव सोशल मीडिया तंत्र पर पूरा फोकस कर रहे हैं। ताकि युवाओं तक पार्टी के संदेशों को पहुंचाया जा सके। पार्टी युवाओं के साथ स्थानीय समस्याओं से जुड़ने का भी प्रयास कर रही है।  '22 में बाईसाइकल' के नारे से जोड़ते हुए सभी विधान सभा क्षेत्र में स्पेशल- 22 की एक टीम बनाई है, जिसमें ज्यादातर युवा हैं। जो घर-घर जाकर पार्टी की नीतियों और अखिलेश यादव के कार्यकाल के कार्यों के बारे में लोगों को बता रहे हैं। 

समाजवादी पार्टी वकीलों के साथ डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार, सेवानिवृत्त अधिकारी और शिक्षक को भी चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी में है। विभिन्न विधानसभा क्षेत्र से टिकट के लिए आवेदन करने वालों की सूची तैयार की जा रही है। इसके लिए प्रोफेशनल एजेंसी की मदद ली जा रही है। विभिन्न सीटों पर सपा के संभावित प्रत्याशियों की स्थिति का आकलन भी कराया जा रहा है। सूत्र बता रहे हैं कि सपा के घोषणा पत्र का फोकस किसानों, रोजगार निर्माण के साथ-साथ महिलाओं, स्वास्थ्य और शिक्षा पर होगा। बताया जा रहा है कि छात्रों को लुभाने के लिए सपा के पुराने शासन की तरह उन्हें केवल लैपटॉप ही नहीं, बल्कि मुफ्त डेटा और स्मार्टफोन की उम्मीद भी दिए जाने का वादा किया जा सकता है। 
 

24 अप्रैल 2014 को मोदी का वाराणसी में रोड शो (फाइल फोटो)
24 अप्रैल 2014 को मोदी का वाराणसी में रोड शो (फाइल फोटो) - फोटो : सोशल मीडिया
क्या मोदी के चुनाव अभियान से सीखा? 
सूत्रों के मुताबिक माजवादी पार्टी ने 2014 में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के लोकसभा चुनाव अभियान को देखकर बहुत कुछ सीखा है। माना जाता है कि 2014 का चुनाव इस मायने में अलग था क्योंकि इसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए पार्टी के बाहर समानांतर प्रचार तंत्र बना लिया था। राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर के नेतृत्व में नरेंद्र मोदी को एक आक्रामक राजनीतिक अभियान चलाने में मदद मिली।

जिस बात ने उनके चुनाव प्रचार को सबसे अलग बनाया वह यह था कि उनके अभियान का फोकस आधुनिक तकनीक था। जिसमें फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल मोदी के प्रचार के लिए किया गया। इसने पूरे चुनाव को बहुत प्रभावी ढंग से बदल दिया। नतीजतन नरेंद्र मोदी ही इकलौते उम्मीदवार नजर आ रहे थे।

अखिलेश की टीम ने सिखी थीं बारीकियां
सपा ही नहीं बल्कि तमाम विपक्षी पार्टियां भाजपा के इस चुनावी अभियान से अचंभे में थी। यहीं से सपा ने भी चुनाव प्रचार के लिए नए तरीकों को खोजने का अभियान शुरू किया। सूत्रों के मुताबिक यह प्रक्रिया 2015 में शुरू हुई, जब अखिलेश यादव पहली बार 31 अक्टूबर, 2015 को गेराल्ड जे ऑस्टिन से मिले।

ऑस्टिन दशकों से अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के अभियानों का नेतृत्व कर रहे थे और उन्होंने जिमी कार्टर, बिल क्लिंटन और बराक ओबामा जैसे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपतियों के चुनाव अभियानों के लिए काम किया था। प्रसिद्ध अभियान रणनीतिकार तब 72 साल के थे और इसी वजह से वे भारत नहीं आ सके लेकिन उन्होंने राजनीतिक सहयोगियों और समर्थकों को प्रशिक्षित करने में मदद करने का आश्वासन दिया था।


 

अखिलेश यादव
अखिलेश यादव - फोटो : amar ujala
सूत्रों के मुताबिक बाद में, यादव की टीम के छह सदस्य ओहियो में एक्रोन विश्वविद्यालय पहुंचे और दो महीने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय फेलोशिप कार्यक्रम में भाग लिया। टीम ने चुनाव अभियान के नए तकनीकों और मतदाताओं तक पहुंचने के बारे में काफी कुछ सीखा।

बताया जाता है कि अखिलेश यादव ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्टीव जार्डिंग से यूपी में चुनाव प्रचार के लिए पार्टी की योजना बनाने में मदद ली। यह काम 2016 के मध्य में किया गया था। जार्डिंग ने अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के अभियान प्रबंधक और राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में भी काम किया। उन्होंने हिलेरी क्लिंटन, स्पेनिश पीएम मारियानो राजॉय और पूर्व अमेरिकी उपराष्ट्रपति अल गोर के लिए काम किया था। जार्डिंग ने यादव को अपनी पार्टी की सामाजिक कल्याण योजनाओं को फिर से डिजाइन करने में मदद की। हालांकि उस चुनाव में अखिलेश को अपेक्षित सफलता नहीं मिली लेकिन बताया जा रहा है कि 2017 के अनुभवों से इस चुनाव अभियान को धार देने में काफी मदद मिली है। 

पार्टी के एक नेता बताते हैं- सीखा हुआ कभी भी बेकार नहीं जाता है। 2017 के चुनाव में रणनीति बनाने में कई चूक रह गई थी जो इस बार दूर कर ली गई है। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा आंतरिक संघर्ष से जूझ रही थी। मुश्किल हालात में पार्टी प्रमुख ने सपा की कमान संभाली थी। लेकिन इस बार स्थिति अनुकूल है। हम भाजपा को उसी के अंदाज में जवाब दे रहे हैं, इसलिए नतीजे हमारे पक्ष में आने की पूरी उम्मीद है। 
हालांकि राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि यूपी की राजनीति जातीय और विभिन्न वर्गों के समीकरणों पर आधारित है, जिसमें जिसने जैसा सामंजस्य बिठा लिया उसकी चुनावी जीत निश्चित हो जाती है।  

 
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