सऊदी-पाक रक्षा करार: क्या भारत के लिए अब मुश्किल होगा ऑपरेशन सिंदूर 2.0, इस समझौते के क्या मायने? जानें सबकुछ
आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई और 'ऑपरेशन सिंदूर' से घबराए पाकिस्तान ने अब दूसरों के सामने अपनी सुरक्षा के लिए मदद की भीख मांगना शुरू कर दिया है। इसके तहत पाकिस्तान और सऊदी अरब ने बुधवार को एक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत किसी भी देश के खिलाफ किसी भी हमले को दोनों के खिलाफ आक्रमण माना जाएगा। ऐसे में आतंकवाद के खिलाफ भारत की इस समझौते का भारत

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पाकिस्तान ने सऊदी अरब के साथ एक रक्षा समझौता किया है जिसमें कहा गया है कि इनमें से किसी भी देश के विरुद्ध हमला दोनों देशों के खिलाफ हमला माना जाएगा। रियाद दौरे पर गए पाकिस्तान के पीएम शहबाज़ शरीफ और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने इस साझा समझौते पर हस्ताक्षर किए।

‘स्ट्रैटीजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट’ पर जारी संयुक्त बयान में लिखा है कि यह समझौता दोनों देशों के बीच दशकों पुरानी सुरक्षा साझेदारी को और मज़बूत करता है। ज़ाहिर है इस साझा समझौते का असर भारत पर भी पड़ सकता है। हालांकि विदेश मंत्रालय ने इस समझौते पर सधा हुआ बयान दिया। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि हम इस समझौते का भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक शांति पर पड़ने वाले असर का अध्ययन करेंगे, सरकार भारत की राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाक में खलबली
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ और सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर कूटनीतिक कवायद के तहत सऊदी अरब, यूके और अमेरिका के दौरे पर हैं। मुनीर ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद कई देशों का दौरा किया है। पाक सेना प्रमुख ने जून में अमेरिका का दौरा किया था, इसके बाद अगस्त में वो दो महीने से भी कम समय में दोबारा अमेरिका गए। जबकि जुलाई में मुनीर चीन गए थे। यह सारे दौरे मई में भारत से हुए सैन्य संघर्ष के बाद हुए हैं। दरअसल ऑपरेशन सिंदूर में मात खाने के बाद एक तरफ जहां आतंकी तंज़ीमों में दहशत का माहौल है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तानी हुक्मरान और सेना प्रमुख दुनिया भर में घबराए हुए घूम रहे हैं।
भारत के लिए पाक- सऊदी करार के मायने
भारत ने कई बार दोहराया है कि ऑपरेशन सिन्दूर अभी खत्म नहीं हुआ है, आतंकियों की कारगुज़ारी पर भारत दोबारा कार्रवाई करेगा। ऐसे में प्रश्न यह है कि किसी आतंकी हमले के बाद यदि भारत ने पाकिस्तान के भीतर घुसकर कार्रवाई की तो क्या उसकी मदद के लिए सऊदी अरब साथ आएगा या फिर भारत से संबंधों की खातिर तटस्थ रवैया अपनाएगा। ऑपरेशन सिंदूर में तुर्की और चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया। भारत-पाक संघर्ष की सूरत में यदि अप्रत्यक्ष रूप से पाक का साथ देने वाले देशों के गठबंधन में वृद्धि होती है तो क्या भारत को नये सिरे से सोचने की जरुरत है?
समझौते को लेकर क्या मानते हैं रक्षा विशेषज्ञ
लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद ने अमर उजाला से कहा कि पाक-सऊदी समझौते से भारत को चौकन्ना रहने की ज़रूरत है, लेकिन बहुत चिंतित होने जैसी बात नहीं है। पाक-सऊदी समझौते का मध्य-पूर्व में पैदा हुए हालात से कहीं ज़्यादा संबंधित है। वहीं रक्षा विशेषज्ञ कर्नल राकेश शर्मा ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान को आर्थिक दृष्टि से बड़ा नुकसान पहुंचाया है। पाकिस्तान की स्थिति ऐसी है कि कहीं से भी पैसा आए उसे स्वीकार है। भारत-पाक संघर्ष की सूरत में पाकिस्तान कश्मीर में बड़ा हमला यूं भी नहीं कर पाएगा क्योंकि वहां सऊदी अरब ने भी निवेश किया है। शर्मा ने कहा कि अभी सिर्फ पाक-सऊदी समझौते का संयुक्त बयान सामने आया है, हमें उसकी अंदरूनी बारीकियां पता चलनी बाकी हैं।
पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने कहा कि यह एक गंभीर घटना है, भारत इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानता है, यह करार सऊदी अरब की एक गंभीर चूक है, राजनीतिक और आर्थिक तौर पर टूटा हुआ पाकिस्तान एक सुरक्षा प्रदाता के तौर पर खतरनाक है।
हालांकि आसान नहीं सऊदी की राह
हालांकि पाकिस्तान के भीतर भारत की किसी कार्रवाई पर सऊदी अरब के लिए फैसला लेना आसान नहीं होगा। सऊदी अरब भारत के खिलाफ पाकिस्तान को आर्थिक मदद ज़रूर कर सकता है। भविष्य की राह थोड़ी पेचीदा है, लेकिन सामरिक मामलों के कुछ जानकार मानते हैं कि बदलती भू-राजनीतिक स्थिति में भारत को अपनी सैन्य ताक़त बढ़ानी चाहिए क्योंकि सऊदी अरब की सेना आकार में छोटी है लेकिन उसको अमेरिका, चीन और रूस से अत्याधुनिक हथियार मिलते हैं।
भारत को है ये आशंका
पाकिस्तान व सऊदी अरब में रणनीतिक पारस्परिक समझौते के बाद भारत को आशंका है कि पाकिस्तान उसकी मदद से अपनी सेना को मजबूत करेगा। सरकारी सूत्र ने कहा कि यह समझौता पाकिस्तान को सऊदी अरब से आर्थिक मदद का रास्ता खोल सकता है। पाकिस्तान इकलौता परमाणु शक्ति संपन्न देश होने के सहारे इस्लामिक देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इस समझौते के बाद उसे सैन्य साझेदारी बढ़ाने के नाम पर सऊदी से आर्थिक मदद मिलेगी। इसका इस्तेमाल पाकिस्तान अपनी सेना को मजबूत करने के लिए करेगा। वैसे भी युद्ध या संघर्ष की स्थिति में सऊदी अरब पाकिस्तान को सैन्य सहायता देने की स्थिति में नहीं है।
इसलिए भी चिंतित भारत
करीब 11 साल पहले केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद मोदी सरकार ने इस्लामिक देशों में पाकिस्तान की पैठ खत्म करने की मुहिम शुरू की थी। इसे व्यापक सफलता भी मिली। पीएम नरेंद्र मोदी को प्रमुख इस्लामिक देशों का सर्वोच्च सम्मान मिला। यहां तक जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को खत्म करने के फैसले पर भी पाकिस्तान इस्लामिक देशों को एकजुट नहीं कर पाया। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच हुई सैन्य झड़प में भी समर्थन के सवाल पर पाकिस्तान का हाथ करीब-करीब खाली रहा।