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Supreme Court: यूपी में एक हफ्ते तक नहीं चलेगा बुलडोजर! याचिकाकर्ताओं को मिली सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम सुरक्षा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: पवन पांडेय
Updated Thu, 04 Dec 2025 02:20 PM IST
सार
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में संपत्ति गिराने के दो मामलों में दखल दिया है, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से मामले की सुनवाई करने से इनकार करते हुए, याचिकाकर्ताओं को इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया है। फिलहाल, एक हफ्ते तक कोई तोड़फोड़ नहीं होगी और इस दौरान याचिकाकर्ता हाईकोर्ट में राहत मांग सकेंगे।
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सुप्रीम कोर्ट
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
उत्तर प्रदेश में घर और मैरिज हॉल के कथित अवैध निर्माण पर की जा रही कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को याचिकाकर्ताओं को एक हफ्ते की अंतरिम सुरक्षा दी है। इस दौरान अदालत ने स्पष्ट कहा कि अगले सात दिनों तक दोनों पक्ष स्टेटस को बनाए रखें, यानी अब इस अवधि में आगे कोई तोड़फोड़ नहीं की जाएगी।
यह भी पढ़ें - Supreme Court: 'एसिड अटैक के लंबित मामलों की जानकारी सौंपें..', शीर्ष कोर्ट का सभी उच्च न्यायालयों को निर्देश
याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने का सुप्रीम निर्देश
मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता शामिल रहे, ने कहा कि याचिकाकर्ता अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला उठाएं और वहां से राहत लें। इस दौरान बेंच ने शुरू में पूछा कि याचिकाकर्ता सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आए, जबकि पहले उन्हें हाईकोर्ट जाना चाहिए था। वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही 'बुलडोजर न्याय' के विषय पर फैसला दे चुकी है और इसलिए वे सीधे यहां आए हैं। इस पर अदालत ने कहा, 'अगर हर कोई सीधे सुप्रीम कोर्ट आ जाएगा तो अनुच्छेद 226 (यानी हाईकोर्ट की शक्तियां) का क्या मतलब रह जाएगा?'
बिना नोटिस तोड़ा गया ढांचा- याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि एक याचिकाकर्ता की उम्र 75 वर्ष है, उन्होंने प्रशासन से नोटिस और सुनवाई की मांग की थी, लेकिन बिना किसी नोटिस के ढांचे में आंशिक तोड़फोड़ कर दी गई। वकील ने आगे कहा कि अभी भी बुलडोजर मौके पर मौजूद हैं और कभी भी पूरा ढांचा गिराया जा सकता है। इस पर अदालत ने कहा, 'हम एक हफ्ते की सुरक्षा दे देते हैं, इस दौरान आप हाईकोर्ट में जाइए और तत्काल सुनवाई की मांग करें।'
यह सुरक्षा सिर्फ सात दिन के लिए- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी गई यह सुरक्षा सिर्फ सात दिन के लिए है। इस आदेश से इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर कोई दबाव नहीं होगा। हाईकोर्ट मामले को अपने स्तर पर और अपने नियमों के अनुसार देखेगा। वहीं जब याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि प्रशासन की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले का उल्लंघन है, तो इस पर बेंच ने जवाब दिया, 'अगर आपको लगता है कि आदेश की अवमानना हुई है तो अवमानना याचिका दायर कीजिए।'
यह भी पढ़ें - SC: 'बीएलओ के काम के घंटे घटाने के लिए अतिरिक्त स्टाफ तैनात करें', सुप्रीम कोर्ट का राज्य सरकारों को निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने पहले क्या दिया था फैसला?
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2023 में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया था जिसमें कहा गया था कि 'किसी भी संपत्ति को तोड़ने से पहले नोटिस देना और 15 दिन का जवाब देने का समय देना अनिवार्य है।' सरकार या प्रशासन नागरिकों को सजा देने के लिए सीधे संपत्ति नहीं तोड़ सकते। ऐसा करना मनमानी और कानून के खिलाफ माना जाएगा। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक स्थान (जैसे सड़क, रेलवे लाइन के पास, नदी किनारे समेत अन्य जगहों) पर अवैध निर्माण होने पर यह सुरक्षा लागू नहीं होगी और यदि अदालत पहले से ही किसी संपत्ति को गिराने का आदेश दे चुकी है तो वहां नोटिस देने की बाध्यता नहीं रहेगी।
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याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने का सुप्रीम निर्देश
मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता शामिल रहे, ने कहा कि याचिकाकर्ता अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला उठाएं और वहां से राहत लें। इस दौरान बेंच ने शुरू में पूछा कि याचिकाकर्ता सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आए, जबकि पहले उन्हें हाईकोर्ट जाना चाहिए था। वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही 'बुलडोजर न्याय' के विषय पर फैसला दे चुकी है और इसलिए वे सीधे यहां आए हैं। इस पर अदालत ने कहा, 'अगर हर कोई सीधे सुप्रीम कोर्ट आ जाएगा तो अनुच्छेद 226 (यानी हाईकोर्ट की शक्तियां) का क्या मतलब रह जाएगा?'
बिना नोटिस तोड़ा गया ढांचा- याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि एक याचिकाकर्ता की उम्र 75 वर्ष है, उन्होंने प्रशासन से नोटिस और सुनवाई की मांग की थी, लेकिन बिना किसी नोटिस के ढांचे में आंशिक तोड़फोड़ कर दी गई। वकील ने आगे कहा कि अभी भी बुलडोजर मौके पर मौजूद हैं और कभी भी पूरा ढांचा गिराया जा सकता है। इस पर अदालत ने कहा, 'हम एक हफ्ते की सुरक्षा दे देते हैं, इस दौरान आप हाईकोर्ट में जाइए और तत्काल सुनवाई की मांग करें।'
यह सुरक्षा सिर्फ सात दिन के लिए- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी गई यह सुरक्षा सिर्फ सात दिन के लिए है। इस आदेश से इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर कोई दबाव नहीं होगा। हाईकोर्ट मामले को अपने स्तर पर और अपने नियमों के अनुसार देखेगा। वहीं जब याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि प्रशासन की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले का उल्लंघन है, तो इस पर बेंच ने जवाब दिया, 'अगर आपको लगता है कि आदेश की अवमानना हुई है तो अवमानना याचिका दायर कीजिए।'
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सुप्रीम कोर्ट ने पहले क्या दिया था फैसला?
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2023 में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया था जिसमें कहा गया था कि 'किसी भी संपत्ति को तोड़ने से पहले नोटिस देना और 15 दिन का जवाब देने का समय देना अनिवार्य है।' सरकार या प्रशासन नागरिकों को सजा देने के लिए सीधे संपत्ति नहीं तोड़ सकते। ऐसा करना मनमानी और कानून के खिलाफ माना जाएगा। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक स्थान (जैसे सड़क, रेलवे लाइन के पास, नदी किनारे समेत अन्य जगहों) पर अवैध निर्माण होने पर यह सुरक्षा लागू नहीं होगी और यदि अदालत पहले से ही किसी संपत्ति को गिराने का आदेश दे चुकी है तो वहां नोटिस देने की बाध्यता नहीं रहेगी।
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