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Global Warming: सितंबर बना जलवायु इतिहास का तीसरा सबसे गर्म महीना, समुद्र की सतह पर भी उबला तापमान
अमर उजाला नेटवर्क
Published by: शिवम गर्ग
Updated Sat, 11 Oct 2025 05:24 AM IST
सार
Climate Crisis: सितंबर 2025 जलवायु इतिहास का तीसरा सबसे गर्म महीना रहा। इस दौरान धरती की सतह का औसत तापमान 16.11 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर से 1.47 डिग्री अधिक है। विशेषज्ञों ने इसे जलवायु संकट की चेतावनी बताया।
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बढ़ती गर्मी
- फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
इस साल वैश्विक तापमान के लिहाज से इतिहास का तीसरा सबसे गर्म महीना सितंबर रहा। इस दौरान धरती की सतह का औसत तापमान 16.11 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो औद्योगिक क्रांति (1850-1900) से पहले के औसत से 1.47 डिग्री सेल्सियस अधिक है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह बढ़ोतरी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि धरती अब जलवायु परिवर्तन के खतरे की रेखा के बेहद करीब पहुंच चुकी है।
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यूरोपीय एजेंसी कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी-3-एस) की ताजा रिपोर्ट अनुसार यह आंकड़ा न केवल जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि उस डेढ़ डिग्री की सीमा को भी छू रहा है, जिसे वैज्ञानिक अत्यधिक जोखिम की रेखा कहते हैं। अगर 1991से 2020 के सितंबर औसत से तुलना करें तो यह महीना 0.66 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म रहा। इस दौरान समुद्र की सतह का औसत तापमान (एसएसटी) 20.72 डिग्री सेल्सियस रहा जो अब तक का तीसरा सबसे अधिक है।
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उत्तरी प्रशांत महासागर के अधिकांश हिस्से असामान्य रूप से गर्म पाए गए। वहीं मध्य और पूर्वी प्रशांत में तापमान थोड़ा कम रहा, जो अल-नीनो की न्यूट्रल स्थिति को दर्शाता है। नॉर्वे सागर, काला सागर और भूमध्य सागर सामान्य से काफी गर्म पाए गए। आईएमडी और वर्ल्ड मेटेरोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएमओ) के आंकड़ों के अनुसार देश का औसत तापमान सामान्य से लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा, जो पिछले एक दशक का दूसरा सबसे ऊंचा स्तर है। उत्तर भारत और मध्य भारत के अधिकांश हिस्सों ने अत्यधिक गर्मी के 35 से 40 दिन झेले, जबकि दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत में औसत से 12% अधिक वर्षा दर्ज की गई।
चक्रवात 11% अधिक सक्रिय रहे
समुद्री तापमान में बढ़ोतरी के कारण अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में औसतन 11% अधिक चक्रवात सक्रिय रहे।
ध्रुवों पर तेजी से घट रही बर्फ
आर्कटिक क्षेत्र में सितंबर 2025 के दौरान समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से 12% कम रहा। हालांकि यह 2012 के रिकॉर्ड न्यूनतम स्तर (-32%) से बेहतर है, परंतु यह अब भी चिंता का कारण है। अंटार्कटिका में बर्फ का विस्तार औसत से 5% कम पाया गया जो अब तक का चौथा सबसे कम स्तर है।