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खामोश स्वास्थ्य संकट: इस अहम पोषक तत्व की कमी से जूझ रही 76% आबादी, बच्चों-बुजुर्गों में दिमागी बीमारी का खतरा
अमर उजाला नेटवर्क
Published by: हिमांशु चंदेल
Updated Wed, 17 Dec 2025 04:37 AM IST
सार
Omega-3 Deficiency: वैश्विक अध्ययन में सामने आया है कि दुनिया की 76 प्रतिशत आबादी को ओमेगा-3 फैटी एसिड, खासकर ईपीए और डीएचए, पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पा रहा है। यह कमी गर्भस्थ शिशु के दिमागी विकास से लेकर बुजुर्गों की याददाश्त और दिल की सेहत तक को प्रभावित कर रही है। विशेषज्ञ इसे एक खामोश वैश्विक स्वास्थ्य संकट मान रहे हैं।
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ओमेगा-3
- फोटो : Freepik.com
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विस्तार
गर्भ में पल रहे शिशु के दिमागी विकास से लेकर बुजुर्गों की याददाश्त और दिल की सेहत तक मानव जीवन की हर अवस्था एक अहम पोषक तत्त्व ओमेगा-3 से जुड़ी है। लेकिन एक नए वैश्विक अध्ययन ने चौंकाने वाली तस्वीर पेश की है। अध्ययन के अनुसार दुनिया की 76 फीसदी आबादी को ओमेगा-3 फैटी एसिड, खासकर ईपीए और डीएचए, की पर्याप्त मात्रा नहीं मिल पा रही है। विशेषज्ञ इसे एक खामोश लेकिन गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य संकट मान रहे हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों और आम लोगों की रोजमर्रा की थाली दोनों पर नए सिरे से सोच की मांग करता है।
यह अहम जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया, यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन और हॉलैंड एंड बैरेट से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए एक व्यापक वैश्विक अध्ययन से सामने आई है। अध्ययन के नतीजे जर्नल न्यूट्रिशन रिसर्च रिव्यु में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में सामान्य रूप से स्वस्थ लोगों के लिए जीवन के विभिन्न चरणों में ओमेगा-3 सेवन को लेकर दी गई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सिफारिशों की समीक्षा की और फिर उनकी तुलना लोगों के वास्तविक आहार से की। नतीजा यह निकला कि सलाह और हकीकत के बीच एक गहरी खाई मौजूद है।
यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया की शोधकर्ता प्रोफेसर ऐनी मैरी मिनिहेन के मुताबिक खाने की जिन मात्राओं की सलाह दी जाती है और जो मात्रा लोग वास्तव में ले पा रहे हैं, उनके बीच बड़ा अंतर है। उनका कहना है कि इस अंतर को पाटने के लिए ओमेगा-3 से भरपूर खाद्य पदार्थों के साथ-साथ सप्लीमेंट जैसे आसान और किफायती विकल्पों की अहम भूमिका हो सकती है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि यह अध्ययन पोषण विशेषज्ञों, डॉक्टरों, खाद्य व सप्लीमेंट उद्योग, नीति-निर्माताओं और आम जनता सभी को वैज्ञानिक आधार पर सही निर्णय लेने में मदद करेगा।
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शोध में खास तौर पर लॉन्ग चेन पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड इकोसैपेंटेनोइक एसिड यानी ईपीए और डोकोसाहेक्सैनोइक एसिड यानी डीएचए पर जोर दिया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इनके स्वास्थ्य लाभ इतने महत्वपूर्ण हैं कि इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हालांकि यह भी स्पष्ट किया गया है कि कई लोगों के लिए सिर्फ भोजन के जरिए ईपीए और डीएचए की सुझाई गई मात्रा हासिल कर पाना व्यावहारिक रूप से कठिन होता है। ऐसे में टिकाऊ और भरोसेमंद वैकल्पिक स्रोतों की जरूरत बढ़ जाती है।
जीवन के हर चरण में ओमेगा-3 की भूमिका
अध्ययन में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई है कि ओमेगा-3 फैटी एसिड जीवन के हर चरण में सेहत की बुनियाद हैं।ईपीए और डीएचए ओमेगा-3 फैटी एसिड के दो सबसे महत्वपूर्ण और वैज्ञानिक रूप से सिद्ध प्रकार हैं, जो शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक माने जाते हैं।ईपीए मुख्य रूप से सूजन को नियंत्रित करने वाला फैटी एसिड है। यह शरीर में होने वाली क्रॉनिक सूजन को कम करने में मदद करता है, जो हृदय रोग, गठिया, अवसाद और कई अन्य दीर्घकालिक बीमारियों की जड़ मानी जाती है। ईपीए रक्त को अधिक गाढ़ा होने से रोकता है, जिससे दिल का दौरा और स्ट्रोक का जोखिम घटता है।
मानसिक स्वास्थ्य के संदर्भ में भी ईपीए को अवसाद और मूड डिसऑर्डर से सुरक्षा देने वाला माना गया है। डीएचए दिमाग और आंखों के विकास व कार्यप्रणाली के लिए सबसे अहम ओमेगा-3 फैटी एसिड है। मानव मस्तिष्क का एक बड़ा हिस्सा डीएचए से बना होता है और यह न्यूरॉन्स के बीच सिग्नल ट्रांसमिशन को बेहतर बनाता है। गर्भावस्था और शैशवावस्था में डीएचए भ्रूण और शिशु के मस्तिष्क तथा दृष्टि के विकास के लिए अनिवार्य है। बुजुर्गों में यह याददाश्त बनाए रखने और अल्जाइमर जैसी बीमारियों के खतरे को कम करने से जुड़ा पाया गया है।
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शरीर इन्हें खुद क्यों नहीं बना पाता और उनके मुख्य स्रोत
ईपीए और डीएचए को आवश्यक फैटी एसिड कहा जाता है क्योंकि मानव शरीर इन्हें पर्याप्त मात्रा में स्वयं नहीं बना सकता। इसलिए इन्हें भोजन या सप्लीमेंट के माध्यम से लेना जरूरी होता है। ईपीए और डीएचए मुख्य रूप से समुद्री स्रोतों में पाए जाते हैं, जैसे सैल्मन, मैकेरल, सार्डिन और ट्यूना जैसी फैटी मछलियां। मछली का तेल और शैवाल-आधारित सप्लीमेंट भी इनके अच्छे स्रोत माने जाते हैं। कुल मिलाकर ईपीएहशरीर को अंदर से सूजन और हृदय रोगों से बचाने में मदद करता है, जबकि डीएचए दिमाग, आंखों और याददाश्त की बुनियाद को मजबूत करता है। यही वजह है कि विशेषज्ञ ओमेगा-3, खासकर ईपीए और डीएचए को जीवनभर के लिए आवश्यक पोषक तत्व मानते हैं।
जो लोग मछली नहीं खाते उन्हें ओमेगा-3 किस तरह मिलेगा
जो लोग मछली नहीं खाते हैं, उनके लिए ईपीए और डीएचए पाने का सबसे भरोसेमंद तरीका शैवाल (एल्गी) से बने ओमेगा-3 सप्लीमेंट हैं। ईपीए और डीएचए का मूल स्रोत समुद्री शैवाल ही होता है, जिसे मछलियां खाकर इन्हें अपने शरीर में जमा करती हैं। इसलिए एल्गी ऑयल सप्लीमेंट शाकाहारी, शुद्ध और वैज्ञानिक रूप से प्रभावी माने जाते हैं। अलसी, चिया सीड्स, अखरोट और सोयाबीन जैसे पौधों से मिलने वाला एएलए शरीर में सीमित मात्रा में ही ईपीए और डीएचए में बदल पाता है, इसलिए यह अकेला पर्याप्त नहीं होता।
कुछ जगहों पर ओमेगा-3 से फोर्टिफाइड दूध, दही और कुकिंग ऑयल अतिरिक्त मदद कर सकते हैं। मछली न खाने वालों के लिए एल्गी-आधारित ओमेगा-3 सप्लीमेंट सबसे कारगर विकल्प है, जबकि पौधों से मिलने वाला ओमेगा-3 सहायक भूमिका निभाता है। एक अन्य अध्ययन का हवाला देते हुए शोधकर्ताओं ने बताया कि रक्त में ओमेगा-3 की पर्याप्त मौजूदगी कोविड-19 से होने वाली मृत्यु के जोखिम को कम कर सकती है। इसके पीछे ईपीए और डीएचए में मौजूद एंटी-इन्फ्लैमेटरी गुणों को जिम्मेदार माना गया है, जो शरीर में अत्यधिक सूजन की प्रतिक्रिया को संतुलित करने में मदद करते हैं।
कितनी मात्रा है जरूरी
हॉलैंड एंड बैरेट की साइंस डायरेक्टर डॉक्टर एबी कैवुड के अनुसार केवल भोजन के जरिए ईपीए और डीएचए की जरूरत पूरी कर पाना कई लोगों के लिए मुश्किल है। खासकर गर्भवती महिलाओं और कम मछली खाने वाली आबादी में सप्लीमेंट की आवश्यकता अधिक देखी जाती है। अध्ययन के मुताबिक वयस्कों के लिए रोजाना 250 मिलीग्राम ईपीए और डीएचए की संयुक्त मात्रा जरूरी मानी गई है, जबकि गर्भवती महिलाओं के लिए अतिरिक्त 100 से 200 मिलीग्राम डीएचए की सिफारिश की जाती है। यह जरूरत सैल्मन या मैकेरल जैसी मछलियों से या आवश्यकता पड़ने पर सप्लीमेंट के जरिए पूरी की जा सकती है।
अलग-अलग देशों के नियम, बढ़ता भ्रम
यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन के प्रोफेसर फिलिप कैल्डर का कहना है कि लोगों को तभी वास्तविक लाभ मिलेगा, जब उन्हें यह स्पष्ट रूप से पता होगा कि उन्हें कितनी मात्रा चाहिए। लेकिन दुनिया भर में ओमेगा-3 को लेकर अलग- अलग दिशानिर्देश हैं, जिससे भ्रम की स्थिति बनती है। ऐसे में यह समीक्षा यूरोप और उत्तर अमेरिका के बाहर जैसे भारत, एशिया और दक्षिण अमेरिका के लिए भी स्पष्ट, एकरूप और वैज्ञानिक दिशानिर्देश तैयार करने की जरूरत पर जोर देती है।
सेहत के लिए वैश्विक चेतावनी
अध्ययन यह भी रेखांकित करता है कि कई देशों में समुद्री भोजन का सीमित सेवन, स्थिरता से जुड़ी चिंताएं और सप्लीमेंट के सही उपयोग की जानकारी का अभाव ओमेगा-3 की पर्याप्त आपूर्ति में बड़ी बाधाएं हैं। विशेषज्ञों के अनुसार ओमेगा-3 की कमी अब एक खामोश वैश्विक स्वास्थ्य संकट का रूप ले रही है। इससे निपटने के लिए सतत खाद्य विकल्पों, व्यापक जन-जागरूकता और स्पष्ट सार्वजनिक नीतियों की जरूरत है। समग्र रूप से देखा जाए तो यह अध्ययन केवल वैज्ञानिक चेतावनी नहीं बल्कि आम लोगों और नीति-निर्माताओं दोनों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि बेहतर सेहत की शुरुआत सही पोषण से होती है और ओमेगा-3 उस पोषण श्रृंखला की एक अनिवार्य कड़ी है।
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यह अहम जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया, यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन और हॉलैंड एंड बैरेट से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए एक व्यापक वैश्विक अध्ययन से सामने आई है। अध्ययन के नतीजे जर्नल न्यूट्रिशन रिसर्च रिव्यु में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में सामान्य रूप से स्वस्थ लोगों के लिए जीवन के विभिन्न चरणों में ओमेगा-3 सेवन को लेकर दी गई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सिफारिशों की समीक्षा की और फिर उनकी तुलना लोगों के वास्तविक आहार से की। नतीजा यह निकला कि सलाह और हकीकत के बीच एक गहरी खाई मौजूद है।
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यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया की शोधकर्ता प्रोफेसर ऐनी मैरी मिनिहेन के मुताबिक खाने की जिन मात्राओं की सलाह दी जाती है और जो मात्रा लोग वास्तव में ले पा रहे हैं, उनके बीच बड़ा अंतर है। उनका कहना है कि इस अंतर को पाटने के लिए ओमेगा-3 से भरपूर खाद्य पदार्थों के साथ-साथ सप्लीमेंट जैसे आसान और किफायती विकल्पों की अहम भूमिका हो सकती है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि यह अध्ययन पोषण विशेषज्ञों, डॉक्टरों, खाद्य व सप्लीमेंट उद्योग, नीति-निर्माताओं और आम जनता सभी को वैज्ञानिक आधार पर सही निर्णय लेने में मदद करेगा।
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शोध में खास तौर पर लॉन्ग चेन पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड इकोसैपेंटेनोइक एसिड यानी ईपीए और डोकोसाहेक्सैनोइक एसिड यानी डीएचए पर जोर दिया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इनके स्वास्थ्य लाभ इतने महत्वपूर्ण हैं कि इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हालांकि यह भी स्पष्ट किया गया है कि कई लोगों के लिए सिर्फ भोजन के जरिए ईपीए और डीएचए की सुझाई गई मात्रा हासिल कर पाना व्यावहारिक रूप से कठिन होता है। ऐसे में टिकाऊ और भरोसेमंद वैकल्पिक स्रोतों की जरूरत बढ़ जाती है।
जीवन के हर चरण में ओमेगा-3 की भूमिका
अध्ययन में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई है कि ओमेगा-3 फैटी एसिड जीवन के हर चरण में सेहत की बुनियाद हैं।ईपीए और डीएचए ओमेगा-3 फैटी एसिड के दो सबसे महत्वपूर्ण और वैज्ञानिक रूप से सिद्ध प्रकार हैं, जो शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक माने जाते हैं।ईपीए मुख्य रूप से सूजन को नियंत्रित करने वाला फैटी एसिड है। यह शरीर में होने वाली क्रॉनिक सूजन को कम करने में मदद करता है, जो हृदय रोग, गठिया, अवसाद और कई अन्य दीर्घकालिक बीमारियों की जड़ मानी जाती है। ईपीए रक्त को अधिक गाढ़ा होने से रोकता है, जिससे दिल का दौरा और स्ट्रोक का जोखिम घटता है।
मानसिक स्वास्थ्य के संदर्भ में भी ईपीए को अवसाद और मूड डिसऑर्डर से सुरक्षा देने वाला माना गया है। डीएचए दिमाग और आंखों के विकास व कार्यप्रणाली के लिए सबसे अहम ओमेगा-3 फैटी एसिड है। मानव मस्तिष्क का एक बड़ा हिस्सा डीएचए से बना होता है और यह न्यूरॉन्स के बीच सिग्नल ट्रांसमिशन को बेहतर बनाता है। गर्भावस्था और शैशवावस्था में डीएचए भ्रूण और शिशु के मस्तिष्क तथा दृष्टि के विकास के लिए अनिवार्य है। बुजुर्गों में यह याददाश्त बनाए रखने और अल्जाइमर जैसी बीमारियों के खतरे को कम करने से जुड़ा पाया गया है।
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शरीर इन्हें खुद क्यों नहीं बना पाता और उनके मुख्य स्रोत
ईपीए और डीएचए को आवश्यक फैटी एसिड कहा जाता है क्योंकि मानव शरीर इन्हें पर्याप्त मात्रा में स्वयं नहीं बना सकता। इसलिए इन्हें भोजन या सप्लीमेंट के माध्यम से लेना जरूरी होता है। ईपीए और डीएचए मुख्य रूप से समुद्री स्रोतों में पाए जाते हैं, जैसे सैल्मन, मैकेरल, सार्डिन और ट्यूना जैसी फैटी मछलियां। मछली का तेल और शैवाल-आधारित सप्लीमेंट भी इनके अच्छे स्रोत माने जाते हैं। कुल मिलाकर ईपीएहशरीर को अंदर से सूजन और हृदय रोगों से बचाने में मदद करता है, जबकि डीएचए दिमाग, आंखों और याददाश्त की बुनियाद को मजबूत करता है। यही वजह है कि विशेषज्ञ ओमेगा-3, खासकर ईपीए और डीएचए को जीवनभर के लिए आवश्यक पोषक तत्व मानते हैं।
जो लोग मछली नहीं खाते उन्हें ओमेगा-3 किस तरह मिलेगा
जो लोग मछली नहीं खाते हैं, उनके लिए ईपीए और डीएचए पाने का सबसे भरोसेमंद तरीका शैवाल (एल्गी) से बने ओमेगा-3 सप्लीमेंट हैं। ईपीए और डीएचए का मूल स्रोत समुद्री शैवाल ही होता है, जिसे मछलियां खाकर इन्हें अपने शरीर में जमा करती हैं। इसलिए एल्गी ऑयल सप्लीमेंट शाकाहारी, शुद्ध और वैज्ञानिक रूप से प्रभावी माने जाते हैं। अलसी, चिया सीड्स, अखरोट और सोयाबीन जैसे पौधों से मिलने वाला एएलए शरीर में सीमित मात्रा में ही ईपीए और डीएचए में बदल पाता है, इसलिए यह अकेला पर्याप्त नहीं होता।
कुछ जगहों पर ओमेगा-3 से फोर्टिफाइड दूध, दही और कुकिंग ऑयल अतिरिक्त मदद कर सकते हैं। मछली न खाने वालों के लिए एल्गी-आधारित ओमेगा-3 सप्लीमेंट सबसे कारगर विकल्प है, जबकि पौधों से मिलने वाला ओमेगा-3 सहायक भूमिका निभाता है। एक अन्य अध्ययन का हवाला देते हुए शोधकर्ताओं ने बताया कि रक्त में ओमेगा-3 की पर्याप्त मौजूदगी कोविड-19 से होने वाली मृत्यु के जोखिम को कम कर सकती है। इसके पीछे ईपीए और डीएचए में मौजूद एंटी-इन्फ्लैमेटरी गुणों को जिम्मेदार माना गया है, जो शरीर में अत्यधिक सूजन की प्रतिक्रिया को संतुलित करने में मदद करते हैं।
कितनी मात्रा है जरूरी
हॉलैंड एंड बैरेट की साइंस डायरेक्टर डॉक्टर एबी कैवुड के अनुसार केवल भोजन के जरिए ईपीए और डीएचए की जरूरत पूरी कर पाना कई लोगों के लिए मुश्किल है। खासकर गर्भवती महिलाओं और कम मछली खाने वाली आबादी में सप्लीमेंट की आवश्यकता अधिक देखी जाती है। अध्ययन के मुताबिक वयस्कों के लिए रोजाना 250 मिलीग्राम ईपीए और डीएचए की संयुक्त मात्रा जरूरी मानी गई है, जबकि गर्भवती महिलाओं के लिए अतिरिक्त 100 से 200 मिलीग्राम डीएचए की सिफारिश की जाती है। यह जरूरत सैल्मन या मैकेरल जैसी मछलियों से या आवश्यकता पड़ने पर सप्लीमेंट के जरिए पूरी की जा सकती है।
अलग-अलग देशों के नियम, बढ़ता भ्रम
यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन के प्रोफेसर फिलिप कैल्डर का कहना है कि लोगों को तभी वास्तविक लाभ मिलेगा, जब उन्हें यह स्पष्ट रूप से पता होगा कि उन्हें कितनी मात्रा चाहिए। लेकिन दुनिया भर में ओमेगा-3 को लेकर अलग- अलग दिशानिर्देश हैं, जिससे भ्रम की स्थिति बनती है। ऐसे में यह समीक्षा यूरोप और उत्तर अमेरिका के बाहर जैसे भारत, एशिया और दक्षिण अमेरिका के लिए भी स्पष्ट, एकरूप और वैज्ञानिक दिशानिर्देश तैयार करने की जरूरत पर जोर देती है।
सेहत के लिए वैश्विक चेतावनी
अध्ययन यह भी रेखांकित करता है कि कई देशों में समुद्री भोजन का सीमित सेवन, स्थिरता से जुड़ी चिंताएं और सप्लीमेंट के सही उपयोग की जानकारी का अभाव ओमेगा-3 की पर्याप्त आपूर्ति में बड़ी बाधाएं हैं। विशेषज्ञों के अनुसार ओमेगा-3 की कमी अब एक खामोश वैश्विक स्वास्थ्य संकट का रूप ले रही है। इससे निपटने के लिए सतत खाद्य विकल्पों, व्यापक जन-जागरूकता और स्पष्ट सार्वजनिक नीतियों की जरूरत है। समग्र रूप से देखा जाए तो यह अध्ययन केवल वैज्ञानिक चेतावनी नहीं बल्कि आम लोगों और नीति-निर्माताओं दोनों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि बेहतर सेहत की शुरुआत सही पोषण से होती है और ओमेगा-3 उस पोषण श्रृंखला की एक अनिवार्य कड़ी है।
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