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Amar Ujala Samwad: अमर उजाला के मंच पर पूर्व सेनाध्यक्ष... ऑपरेशन सिंदूर, थिएटर कमांड से अग्निवीर तक पर संवाद

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, गुरुग्राम / नई दिल्ली। Published by: ज्योति भास्कर Updated Wed, 17 Dec 2025 03:04 PM IST
सार

Amar Ujala Samwad: अमर उजाला के विशेष आयोजन- अमर उजाला संवाद हरियाणा के मंच पर आज पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे भी पहुंचे। उन्होंने नेतृत्व, सुरक्षा और भावी रणनीति पर चर्चा की। अमर उजाला के मंच पर संवाद के आगाज से पहले माहौल राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत दिखा और भारत माता की जय के नारे लगे। पढ़िए नरवणे से बातचीत

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Amar Ujala Samwad Haryana Ex Army Chief Gen MM Naravane Talk Nation First Leadership Security hindi updates
अमर उजाला के मंच पर पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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विस्तार
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Amar Ujala Samwad: पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे ने आज अमर उजाला के मंच पर, नेतृत्व, सुरक्षा और भावी रणनीति विषय पर विस्तार से चर्चा की। अमर उजाला डिजिटल के संपादक जयदीप कर्णिक के साथ संवाद के दौरान पूर्व सेना प्रमुख ने भारतीय सेना के ऑपरेशन सिंदूर, पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल किए गए हथियारों और सेना की रणनीति से जुड़े तमाम सवालों पर बेबाकी के साथ-साथ विस्तार से जवाब दिए।
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सवाल: जो रूस-यूक्रेन, इस्राइल-हमास में हो रहा था, वह मई 2025 में हमने अपनी सरहदों पर देखा। क्या ऑपरेशन सिंदूर ने बता दिया है कि युद्ध का तरीका बदल गया है? 
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जनरल नरवणे:
इसके दो पहलू हैं। युद्ध की प्रक्रिया और युद्ध का स्वरूप। युद्ध की प्रक्रिया सदियों से नहीं बदली। वह एक ही है कि मारो या मरो। प्रक्रिया यही है कि खून बहेगा, जानें जाएंगी। नुकसान होगा। बदलाव सिर्फ स्वरूप में आया है। स्वरूप हमेशा बदलता रहा है। पुराने जमाने में लोग धनुष-बाण से लड़ते थे। अब ड्रोन आ गए हैं। जैसा हमने ऑपरेशन सिंदूर में देखा कि एक नया युग आ चुका है। संपर्क रहित युद्ध प्रणालियों पर जोर है। इसके ये मायने नहीं हैं कि सरहद पर आमने-सामने की लड़ाई या मुठभेड़ नहीं होगी। अगली लड़ाई कैसी होगी, वह हम इस वक्त नहीं कह सकते। हर जंग अलग होती है। हम सिर्फ पिछली जंग से सबक सीख सकते हैं और उस पर अमल कर हम ज्यादा तैयार रहें और सफल बनें।

सवाल: लोगों के मन में बहुत जिज्ञासा रही कि सीधे ब्रह्मोस को क्यों उतारना पड़ा? 
जनरल नरवणे: हमारे कई पास हथियार हैं। हम पहले देखते हैं कि लक्ष्य क्या है, उसे साधने के लिए क्या सही है, वही इस्तेमाल होता है। अगर लगता है कि ब्रह्मोस सही निशाना साधेगी, तो उसका इस्तेमाल होगा। कितनी जल्दी आप रणनीति बदल सकते हैं, वही सही तरीका होता है।

सवाल: पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का भारत में वापस आना कितना सच और कितना सपना है? 
जनरल नरवणे:
फरवरी 1994 का संसदीय प्रस्ताव कहता है कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, जिस पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है और भारत का यह प्रण है कि वह हरसंभव तरीके से उसे वापस लाने के प्रयास करेगा। ...इसे सुनकर किसी को भी इस बात पर संदेह नहीं होना चाहिए कि पीओके भारत का हिस्सा है। ...पीओके हमारा था, है और रहेगा।


सवाल: पाकिस्तान के साथ-साथ चीन से निपटना भी टेढ़ी खीर रहा है। वास्तविक नियंत्रण रेखा का परिदृश्य कैसे देखते हैं?
जनरल नरवणे:
हमारे दो पड़ोसी हैं, जिनके साथ हमारे सीमा विवाद हैं- पाकिस्तान और चीन। चीन के साथ दिक्कत इसलिए है वहां बाउंड्री है, न कि बॉर्डर। वह अभी वास्तविक अंतरराष्ट्रीय सीमा में नहीं बदल पाई है। हर साल अरुणाचल या सिक्किम जैसे 10-12 इलाकों में कहीं न कहीं टकराव की स्थिति बनती है। पिछले कुछ वर्षों में एक बात सरल तरीके से सामने आई है कि बाउंड्री के इस मसले को बातचीत के जरिए ही सुलझाया जा सकता है। यह साफ है कि इसका सैन्य समाधान नहीं है। इसे राजनीतिक या कूटनीतिक तरीके से ही सुलझाया जा सकता है। सभी इस बात को समझ चुके हैं।

सवाल: क्या ऑपरेशन सिंदूर जल्दी रुक गया? क्या समझौते की मेज पर हम कमजोर पड़ जाते हैं? 
जनरल नरवणे: जंग बॉलीवुड फिल्म की तरह नहीं होती। यहां जानें जाती हैं। यह गंभीर विषय है। इसे जितना जल्द से जल्द हम खत्म कर सकें, उसी में सभी की भलाई होती है। बाद में यह कहना आसान है कि हम कहीं नर्म तो नहीं पड़ गए? कोई भी जानबूझकर गलत फैसला नहीं लेता या गलत समझौते को नहीं मानता। जो भी लोग उस वक्त जिम्मेदार पदों पर थे, उन्हें लगा होगा कि शायद ऐसा करने से स्थिति अच्छी हो जाएगी। उस वक्त जो भी फैसला, जिसने भी लिया हो, वह सही फैसला था, यही मानकर चलना चाहिए।



सवाल: अग्निवीर योजना को लेकर आपके क्या विचार हैं?
जनरल नरवणे:
लोगों को पहले चार साल के लिए भर्ती किया जाएगा। फिर चार साल कुछ लोगों को रखा जाएगा। वो स्थायी हो जाएंगे। कुछ लोगों को रिलीज कर दिया जाएगा। वे बाद में अपना कुछ व्यवसाय कर सकते हैं। इसका विरोध हुआ, लेकिन लोगों को इतिहास नहीं पता। 1975-76 तक पेंशनेबल सेवा नाम की कोई चीज नहीं थी। सात साल की सेवा के बाद जवान बाहर हो जाते थे। 1971 की लड़ाई के बाद तब की सरकार ने सोचा कि यह नीति ठीक नहीं है। पेंशन सेवा को सात साल में लागू नहीं किया जा सकता था। इसलिए सेवा शर्तों को बदला गया। उसे बढ़ाकर 15 साल किया गया और पेंशन लागू की गई। अग्निवीर योजना बीच का रास्ता है। चार साल में कुछ लोग बाहर होंगे, कुछ बने रहेंगे। जो बने रहेंगे, उन्हें पेंशन भी मिलेगी। कोई भी योजना 100 फीसदी सही नहीं हो सकती। कोई न कोई कमी-पेशी उसमें हो सकती है। सरकार को सेना की तरफ से जमीनी स्तर से जो फीडबैक मिलेगा, उस पर विचार होगा। बुनियादी स्तर पर इस योजना में ऐसा कुछ नहीं है, जो देश या फौज के लिए अच्छा न हो। ऑपरेशन सिंदूर में कौन लड़ा? यही अग्निवीर लड़े हैं। हमें कोई कमी नजर नहीं आई। हम ऐसा क्यों मानते हैं कि चार साल में लोग अच्छा काम नहीं कर सकते। जब 15 साल बात आई थी, तब फौज में इसका विरोध किया था। कहा गया कि हमारी सेना बूढ़ी हो जाएगी। अग्निवीर के जरिए सेना के जवानों की औसत आयु को कम रखने के लिए लाया गया है। बाकी देशों में तो दो साल के लिए ही सेना में रखा जाता है। हमें एक युवा फौज चाहिए, जो हर मैदान में फतह कर सके।

सवाल: थिएटर कमांड के अमल में क्या चुनौती आ रही है?
जनरल नरवणे:
इस पर काम चल रहा है। थिएटर कमांड का होना जरूरी है। युद्ध की प्रक्रिया जिस तरह जटिल और तेज होती जा रही है और तकनीक में जिस तरह सुधार आ रहा है, उसे देखते हुए निर्णय लेने की प्रक्रिया को भी तेज करने की जरूरत है। इसमें एक टॉप-डाउन अप्रोच हो सकती है। यानी पहले आदेश जारी करें और फिर सब उसका पालन करें। या फिर बॉटम-अप अप्रोच हो सकती है कि योजना को छोटे स्तर पर लागू कर फिर आगे बढ़ा जाए। हमने समेकित लॉजिस्टिक यूनिट्स शुरू कर दिए हैं। मुंबई में थलसेना, नौसेना, वायुसेना है। सभी के अलग-अलग सप्लाई डिपो थे। इन सभी को एक कर एक ही यूनिट बना दी गई है। इससे प्रभाव क्षमता बढ़ जाती है। बॉटम-अप अप्रोच पर काम चल रहा है। आने वाले वक्त में ऑपरेशनल इंटिग्रेशन हो जाएगा। एक सिस्टम को दूसरे सिस्टम में तब्दील करने में 10-10 साल लग जाते हैं। ऐसा भारत ही नहीं, कई देशों के साथ है।

सवाल: दिल्ली में हाल ही में एक धमाका हुआ था। सफेद आतंकी मॉड्यूल देखा। आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों को कैसे देखते हैं?
जनरल नरवणे:
दो किस्म के खतरे हैं। एक बाहरी और एक अंदरूनी। बाहरी खतरे से निपटना आसान है। उसे टारगेट करना आसान है। अंदरूनी सुरक्षा की जब बात आती है, तब यह पहचानना मुश्किल हो जाता है कि कौन देश के खिलाफ काम कर रहा है। देश के कानूनों का पालन करते हुए कार्रवाई करनी होती है। फौज के पास जो बड़े-बड़े हथियार हैं, वह अंदरूनी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकते। अंदरूनी सुरक्षा में फौज का जितना कम से कम इस्तेमाल हो, वही अच्छा है। पहले हम मानते थे कि आतंकवाद से अनपढ़ लोग जुड़ जाते हैं, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि अब डॉक्टर-इंजीनियर ऐसी हरकतें कर रहे हैं। यह सोच का विषय है कि कमी कहां रह गई है, जो लोग बहकावे में आ रहे हैं। आतंकवादी को मारना काफी नहीं है, वह आतंकी क्यों बना, उस पर विमर्श करने की ज्यादा जरूरत है। हम 10 आतंकी को मारेंगे, तो 10 और पैदा होंगे। हमें यह विमर्श करना है कि लोग क्यों बहकावे में आ रहे हैं?

सवाल: युवाओं का रुझान कैसा है?
जनरल नरवणे:
ऐसा नहीं है कि सब कॉर्पोरेट की तरफ भाग रहे हैं। युवाओं में देशभक्ति कायम है। जैसे- हरियाणा के युवक हैं, उन्होंने बहुत देश की सेवा की है। हम यही चाहेंगे कि वे देश की ऐसे ही सेवा करते रहें। 

सवाल: आपने कलम कैसे थामी?
जनरल नरवणे:
मैं फौजी से किस्सागो बना हूं। किसी भी शख्स को एक ही क्षेत्र में अटके नहीं रहना चाहिए। कुछ अलग-अलग करते रहने की कोशिश करना चाहिए। यही सोचकर किताब लिखी। रिटायर होने के बाद मैंने नगालैंड पर अपनी पीएचडी खत्म की। फिर यह किताब 'द कैंटोनमेंट कॉन्ट्रोवर्सी' लिखी। यह मर्डर मिस्ट्री पर लिखी किताब है, जो आर्मी कैंटोनमेंट की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है। इसके नायक और नायिका दोनों सेना में हैं और वे कैसे फौज की इज्जत बरकरार रखते हुए अपना काम करते हैं, इसी बारे में किताब लिखी गई है। इस पर ओटीटी जैसा कुछ बन सकता है, लेकिन अभी यह दूर की बात है।

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