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Naravane on POK: पूर्व सेनाध्यक्ष अमर उजाला के मंच से बोले- पीओके हमारा था, है और रहेगा; 1994 में हो चुका तय

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली। Published by: ज्योति भास्कर Updated Wed, 17 Dec 2025 03:25 PM IST
सार

अमर उजाला संवाद हरियाणा के मंच से आज देश के पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने बड़ा बयान दिया। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि पीओके हमारा था, है और रहेगा। संसदीय दस्तावेज के हवाले से उन्होंने बताया कि पीओके पर फैसला 1994 में ही हो चुका है। उन्होंने सेना में भर्ती के लिए अग्निवीर योजना और सेना की भावी रणनीति और देश की आतंरिक सुरक्षा जैसे अहम मुद्दों पर भी विस्तार से बात की। जानिए जनरल नरवणे ने क्या कुछ कहा

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Amar Ujala Samwad Haryana Gen MM Naravane on POK Op Sindoor Agniveer Scheme Indian army Strategy for wars
अमर उजाला संवाद के मंच पर पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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विस्तार
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अमर उजाला संवाद हरियाणा के मंच से आज भारतीय थल सेना के पूर्व प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) पर भारत के अधिकार, पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद करने के लिए चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर और अन्य ज्वलंत मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखी। अमर उजाला डिजिटल के संपादक जयदीप कर्णिक के साथ चर्चा के दौरान पूर्व सेनाध्यक्ष ने दिल्ली में लाल किले के पास हुए धमाके को लेकर भी चर्चा की। पूर्व सेना प्रमुख ने सवाल-जवाब के दौरान किन बातों पर दिया जोर, पढ़िए
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पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का भारत में वापस आना कितना सच और कितना सपना है? 

जनरल नरवणे: फरवरी 1994 का संसदीय प्रस्ताव कहता है कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, जिस पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है और भारत का यह प्रण है कि वह हरसंभव तरीके से उसे वापस लाने के प्रयास करेगा। ...इसे सुनकर किसी को भी इस बात पर संदेह नहीं होना चाहिए कि पीओके भारत का हिस्सा है। ...पीओके हमारा था, है और रहेगा।
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अग्निवीर योजना को लेकर आपके क्या विचार हैं?
जनरल नरवणे: लोगों को पहले चार साल के लिए भर्ती किया जाएगा। फिर चार साल कुछ लोगों को रखा जाएगा। वो स्थायी हो जाएंगे। कुछ लोगों को रिलीज कर दिया जाएगा। वे बाद में अपना कुछ व्यवसाय कर सकते हैं। इसका विरोध हुआ, लेकिन लोगों को इतिहास नहीं पता। 1975-76 तक पेंशनेबल सेवा नाम की कोई चीज नहीं थी। सात साल की सेवा के बाद जवान बाहर हो जाते थे। 1971 की लड़ाई के बाद तब की सरकार ने सोचा कि यह नीति ठीक नहीं है। पेंशन सेवा को सात साल में लागू नहीं किया जा सकता था। इसलिए सेवा शर्तों को बदला गया। उसे बढ़ाकर 15 साल किया गया और पेंशन लागू की गई। अग्निवीर योजना बीच का रास्ता है। चार साल में कुछ लोग बाहर होंगे, कुछ बने रहेंगे। जो बने रहेंगे, उन्हें पेंशन भी मिलेगी। कोई भी योजना 100 फीसदी सही नहीं हो सकती। कोई न कोई कमी-बेशी उसमें हो सकती है। सरकार को सेना की तरफ से जमीनी स्तर से जो फीडबैक मिलेगा, उस पर विचार होगा।

ये भी पढ़ें- Amar Ujala Samwad: पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे अमर उजाला के मंच पर, नेतृत्व, सुरक्षा और भावी रणनीति पर चर्चा

अग्निवीर के जरिए सेना के जवानों की औसत आयु कम रखने का प्रयास
पूर्व सेनाध्यक्ष ने साफ किया कि अग्निवीर योजना में बुनियादी स्तर पर ऐसा कुछ नहीं है, जो देश या फौज के लिए अच्छा न हो। ऑपरेशन सिंदूर में कौन लड़ा? यही अग्निवीर लड़े हैं। हमें कोई कमी नजर नहीं आई। हम ऐसा क्यों मानते हैं कि चार साल में लोग अच्छा काम नहीं कर सकते। जब 15 साल बात आई थी, तब फौज में इसका विरोध किया था। कहा गया कि हमारी सेना बूढ़ी हो जाएगी। अग्निवीर के जरिए सेना के जवानों की औसत आयु को कम रखने के लिए लाया गया है। बाकी देशों में तो दो साल के लिए ही सेना में रखा जाता है। हमें एक युवा फौज चाहिए, जो हर मैदान में फतह कर सके।

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