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'अमीरों की विशेष पूजा से भगवान का विश्राम भंग': SC ने जताई नाराजगी, बांके बिहारी मंदिर पर अधिकारी-UP सरकार तलब
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: लव गौर
Updated Mon, 15 Dec 2025 04:50 PM IST
सार
सुप्रीम कोर्ट ने मंदिरों में पैसे देकर लोगों को 'विशेष पूजा' करने की अनुमति देने की प्रथा पर नाराजगी जताई। शीर्ष अदालत ने वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी जी मंदिर में 'दर्शन' के समय और मंदिर की प्रथाओं में बदलाव को चुनौती देने वाली याचिका पर अधिकारियों से जवाब मांगा है।
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बांके बिहारी जी मंदिर और सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने मंदिरों में पैसे देकर कराई जाने वाली ‘विशेष पूजाओं’ को लेकर कड़ी नाराजगी जताई है। सोमवार (15 दिसंबर) को शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसी प्रथाओं के कारण देवता के विश्राम समय में बाधा पड़ती है, जो परंपरा और धार्मिक मर्यादा के खिलाफ है। यह टिप्पणी वृंदावन स्थित प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी जी मंदिर में दर्शन समय और पूजा पद्धतियों में बदलाव को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान की गई। इसी के साथ अदालत ने याचिका पर अधिकारियों से जवाब मांगा है।
यूपी सरकार और मंदिर प्रबंधन समिति को नोटिस जारी
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और विपुल एम. पामचोली शामिल थे, उन्होंने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार और सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त उच्चस्तरीय मंदिर प्रबंधन समिति को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई जनवरी के पहले सप्ताह में होगी।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची और विपुल एम पमचोली की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और वकील तन्वी दुबे की दलीलों पर ध्यान दिया, जिन्होंने बांके बिहारी जी मंदिर में देवता के 'दर्शन' के समय में बदलाव और वहां देहरी पूजा सहित कुछ आवश्यक धार्मिक प्रथाओं को रोकने का विरोध किया।
दीवान ने कहा, "ये दर्शन का समय परंपरा और रीति-रिवाजों का हिस्सा हैं। जिस समय मंदिर जनता के लिए खुला रहता है, वह एक लंबी परंपरा का हिस्सा है।" उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से सख्त समय का पालन किया जाता रहा है। उन्होंने आगे कहा, "मंदिर के समय में बदलाव से मंदिर के आंतरिक अनुष्ठानों में बदलाव आया है, जिसमें वह समय भी शामिल है, जब देवता सुबह जागते हैं और रात में सोते हैं।"
ये भी पढ़ें: UP: बांकेबिहारी में टूटी ये परंपरा, डेढ़ घंटे बाद लगा बाल भोग; जानें वजह
सीजेआई की सख्त टिप्पणी
सीजेआई ने मौखिक रूप से कहा, "मंदिर दोपहर 12 बजे बंद होने के बाद भगवान को एक पल भी विश्राम नहीं दिया जाता। जो लोग मोटी रकम दे सकते हैं, उन्हें विशेष पूजा की अनुमति दे दी जाती है। यह देवता के साथ शोषण जैसा है।” सीजेआई ने यह भी कहा कि “इसी समय में वे लोग बुलाए जाते हैं, जो पैसे दे सकते हैं और विशेष पूजाएं कराई जाती हैं, जबकि यह भगवान के विश्राम का अत्यंत पवित्र समय होता है।”
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और अधिवक्ता तन्वी दुबे, जो मंदिर के सेवायतों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि पूजा और दर्शन के समय को पवित्र माना जाए और उसमें किसी भी तरह का बदलाव न किया जाए। याचिकाकर्ताओं ने यह भी बताया कि मंदिर में मौसम के अनुसार अलग-अलग समय-सारिणी रही है। गर्मी और सर्दी में दर्शन और पूजा के अलग नियम हैं, जो सीधे तौर पर आंतरिक अनुष्ठानों से जुड़े हैं।
ये भी पढ़ें: Supreme Court: बांके बिहारी मंदिर में जगमोहन हॉल से दर्शन करने पर लगी रोक, सुप्रीम कोर्ट समिति का फैसला
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सितंबर 2025 में जारी कार्यालय ज्ञापनों के बाद समय में जो बदलाव किए गए, उससे ‘देहरी पूजा’ जैसी सदियों पुरानी परंपरा बाधित हो गई। देहरी पूजा केवल गोस्वामियों द्वारा गुरु–शिष्य परंपरा के तहत की जाती है और यह मंदिर बंद होने के समय सीमित स्थान पर होती है, इसलिए भीड़ प्रबंधन के नाम पर इसे रोकना अनुचित है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी दलीलें सुनने के बाद संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करने का आदेश दिया।
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यूपी सरकार और मंदिर प्रबंधन समिति को नोटिस जारी
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और विपुल एम. पामचोली शामिल थे, उन्होंने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार और सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त उच्चस्तरीय मंदिर प्रबंधन समिति को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई जनवरी के पहले सप्ताह में होगी।
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मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची और विपुल एम पमचोली की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और वकील तन्वी दुबे की दलीलों पर ध्यान दिया, जिन्होंने बांके बिहारी जी मंदिर में देवता के 'दर्शन' के समय में बदलाव और वहां देहरी पूजा सहित कुछ आवश्यक धार्मिक प्रथाओं को रोकने का विरोध किया।
दीवान ने कहा, "ये दर्शन का समय परंपरा और रीति-रिवाजों का हिस्सा हैं। जिस समय मंदिर जनता के लिए खुला रहता है, वह एक लंबी परंपरा का हिस्सा है।" उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से सख्त समय का पालन किया जाता रहा है। उन्होंने आगे कहा, "मंदिर के समय में बदलाव से मंदिर के आंतरिक अनुष्ठानों में बदलाव आया है, जिसमें वह समय भी शामिल है, जब देवता सुबह जागते हैं और रात में सोते हैं।"
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सीजेआई की सख्त टिप्पणी
सीजेआई ने मौखिक रूप से कहा, "मंदिर दोपहर 12 बजे बंद होने के बाद भगवान को एक पल भी विश्राम नहीं दिया जाता। जो लोग मोटी रकम दे सकते हैं, उन्हें विशेष पूजा की अनुमति दे दी जाती है। यह देवता के साथ शोषण जैसा है।” सीजेआई ने यह भी कहा कि “इसी समय में वे लोग बुलाए जाते हैं, जो पैसे दे सकते हैं और विशेष पूजाएं कराई जाती हैं, जबकि यह भगवान के विश्राम का अत्यंत पवित्र समय होता है।”
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और अधिवक्ता तन्वी दुबे, जो मंदिर के सेवायतों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि पूजा और दर्शन के समय को पवित्र माना जाए और उसमें किसी भी तरह का बदलाव न किया जाए। याचिकाकर्ताओं ने यह भी बताया कि मंदिर में मौसम के अनुसार अलग-अलग समय-सारिणी रही है। गर्मी और सर्दी में दर्शन और पूजा के अलग नियम हैं, जो सीधे तौर पर आंतरिक अनुष्ठानों से जुड़े हैं।
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उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सितंबर 2025 में जारी कार्यालय ज्ञापनों के बाद समय में जो बदलाव किए गए, उससे ‘देहरी पूजा’ जैसी सदियों पुरानी परंपरा बाधित हो गई। देहरी पूजा केवल गोस्वामियों द्वारा गुरु–शिष्य परंपरा के तहत की जाती है और यह मंदिर बंद होने के समय सीमित स्थान पर होती है, इसलिए भीड़ प्रबंधन के नाम पर इसे रोकना अनुचित है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी दलीलें सुनने के बाद संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करने का आदेश दिया।
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