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SC Updates: एल्गार परिषद केस में ज्योति जगताप को फिर झटका, शीर्ष अदालत ने जमानत देने से किया इनकार

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: काव्या मिश्रा Updated Mon, 15 Jul 2024 12:52 PM IST
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supreme court news and update Elgar Parishad case, KCR, Sukanta Majumdar, pollution control boards, Arun Gawli
Supreme Court - फोटो : ANI
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ज्योति जगताप को एक बार फिर शीर्ष अदालत से झटका लगा है। उच्चतम न्यायालय ने एल्गार परिषद माओवादी से जुड़े मामले में जेल में बंद कार्यकर्ता ज्योति को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया।

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न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने जगताप की मुख्य जमानत याचिका पर भी सुनवाई टाल दी। न्यायमूर्ति सुंदरेश ने कहा, ‘हम अंतरिम जमानत देने के इच्छुक नहीं हैं।’
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जगताप ने उन्हें जमानत देने से इनकार करने के उच्च न्यायालय के 17 अक्तूबर 2022 के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। उच्च न्यायालय ने कहा था कि जगताप के खिलाफ राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) का मामला प्रथम दृष्टया सही है और वह प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) द्वारा रची गई साजिश का हिस्सा थी।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि जगताप उस कबीर कला मंच (केकेएम) समूह की सक्रिय सदस्य थीं, जिसने 31 दिसंबर, 2017 को पुणे शहर में एल्गार परिषद सम्मेलन में अपने नाटक के दौरान न केवल आक्रामक, बल्कि अत्यधिक भड़काऊ नारे लगाए। सम्मेलन में केकेएम के अन्य सदस्यों के साथ भड़काऊ नारे लगाने की आरोपी जगताप को सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह मुंबई के भायखला महिला कारागार में हैं।

जांचकर्ताओं के अनुसार, सम्मेलन में दिए भड़काऊ भाषणों के कारण एक जनवरी 2018 को पुणे के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़की। जगताप पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के तहत मुकदमा दर्ज है।

अरुण गवली को दी गयी सजा में छूट को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर शीर्ष कोर्ट सुनवाई के लिए सहमत
हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे गैंगस्टर से नेता बने अरुण गवली को दी गयी सजा में छूट को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सहमति दे दी है। सोमवार को शीर्ष अदालत की न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने यह बात कही। पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजा ठाकरे से कहा कि वह अब 71-72 वर्ष के हैं। वह 1980 के अरुण गवली नहीं हैं जब लोग उनके बारे में बात करते थे। अब आप उनके द्वारा अपराध के पैमाने की संभावनाओं के बारे में हमें संतुष्ट करें। उन्होंने जो अपराध किए हैं, वे व्यक्तियों के खिलाफ नहीं बल्कि समाज के खिलाफ हैं। माफी का कानून बहुत स्पष्ट है कि अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

इस पर महाराष्ट्र सरकार का पक्ष रख रहे ठाकरे ने कहा कि गवली एक विधायक था, उसे आजीवन कारावास की सजा दी गई थी और उसे महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया था।

वहीं, गवली की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता नित्य रामकृष्णन ने कहा कि गवली राज्य की 2006 की नीति के तहत समय से पहले रिहाई का हकदार है, जो विशेष रूप से उन कैदियों के लाभ के लिए बनाई गई थी जो अधिक उम्र के और शारीरिक रूप से कमजोर थे।

उन्होंने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने भी प्रमाणित किया है कि गवली अधिक उम्र के कारण अस्वस्थ है। पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे की जांच करना चाहेगी और बताया कि पहले भी गवली को अदालत ने पैरोल दी थी और इसे समय-समय पर बढ़ाया गया था।

एजीआर बकाया में खामियां दूर करने वाली याचिका को लेकर दलीलें पेश
कोर्ट ने समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) से संबंधित बकाया में कथित त्रुटियों को सुधारने की एक दूरसंचार कंपनी की याचिका पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाने संबंधी दलीलों को सुना। भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इन पर गौर किया। दूरसंचार कंपनी वोडाफोन आइडिया की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलीलें दीं। साल्वे ने जोर देकर कहा कि इस याचिका पर विचार करने की जरूरत है। दरअसल, पिछले साल नौ अक्तूबर को शीर्ष अदालत ने कुछ दूरसंचार कंपनियों की दलीलों को सुना था, जिसमें स्पेक्ट्रम आवंटन के एवज में देय एजीआर के बकाया मुद्दे पर उनकी याचिकाएं सूचीबद्ध करने की मांग की गई थी।

शंभू सीमा पर हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा हरियाणा
हरियाणा सरकार ने अंबाला के पास शंभू सीमा से एक हफ्ते के भीतर बैरिकेड हटाने के पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस सीमा पर पंजाब की तरफ 13 फरवरी से ही किसान बैठे हुए हैं।

वकील अक्षय अमृतांशु के माध्यम से दायर राज्य सरकार की अपील में नाकाबंदी के लिए कानून व्यवस्था की स्थिति का हवाला दिया है। इसी से संबंधित एक मामले में 12 जुलाई को सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने हरियाणा सरकार से बैरिकेड हटाने को कहा था और हाईवे ब्लॉक करने के उसके अधिकार पर सवाल उठाए थे।

संयुक्त किसान मोर्चा और किसान मजदूर मोर्चा ने फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य समेत अपनी अन्य मांगों को लेकर दिल्ली कूच करने की घोषणा की थी। इसके बाद ही फरवरी में हरियाणा सरकार ने अंबाला-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर शंभू सीमा बैरिकेड लगाकर बंद कर दिया था।

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