Supreme Court: जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग, 8 अगस्त को याचिका पर होगी सुनवाई


मंगलवार को 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने की छठी वर्षगांठ है। 11 दिसंबर, 2023 को, सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा, साथ ही आदेश दिया कि जम्मू-कश्मीर में सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराए जाएं और इसका राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए। पिछले साल, शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर केंद्र को दो महीने के भीतर जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के निर्देश देने की मांग की गई थी। यह याचिका शिक्षाविद जहूर अहमद भट और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक ने दायर की थी।
याचिका में कहा गया है, 'राज्य का दर्जा बहाल करने में देरी से जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार की क्षमता गंभीर रूप से प्रभावित होगी। इससे संघवाद की अवधारणा का गंभीर उल्लंघन होगा, जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है।'
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है, जिनमें तेलंगाना सरकार की उस याचिका को भी शामिल किया गया है, जो राज्य के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए लागू स्थायी निवास (डोमिसाइल) नियम को रद्द करने के आदेश को चुनौती देती है। तेलंगाना सरकार ने मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में एमबीबीएस और बीडीएस पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए वर्ष 2017 में बनाए गए नियमों में 2024 में संशोधन किया। इस संशोधन के तहत केवल उन्हीं छात्रों को राज्य कोटे के तहत दाखिले का अधिकार दिया गया जो कक्षा 12 तक की पिछली चार साल की पढ़ाई राज्य में कर चुके हैं।
तेलंगाना हाईकोर्ट ने इस नियम को रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट का कहना था कि राज्य के स्थायी निवासियों को सिर्फ इसलिए मेडिकल कॉलेजों में दाखिले से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वे कुछ समय के लिए राज्य से बाहर रहे हैं। मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने इस मामले में दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। तेलंगाना सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पैरवी की।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट को एक दीवानी विवाद को आपराधिक मामला मानने की अनुमति देने के लिए फटकार लगाई और हाईकोर्ट के आदेश को हाल के दिनों का सबसे खराब और त्रुटिपूर्ण आदेश करार दिया। शीर्ष कोर्ट की एक पीठ ने इस बात पर हैरानी जताई कि हाईकोर्ट ने एक दीवानी मामले में आपराधिक कार्यवाही को केवल इस आधार पर उचित ठहराया कि दीवानी मामले में सुधार में समय लग सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भोपाल की रहने वाली एक 'साध्वी' के भाई को 90 लाख रुपये की ठगी के मामले में जमानत दी। यह मामला मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले स्थित राम जानकी मंदिर के महंत की मौत के बाद सामने आया था। जस्टिस एम एम सुंदरेश और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि जमानत मिलना आरोपी का अधिकार है। अदालत ने यह फैसला हर्ष रघुवंशी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिन्होंने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा उनकी जमानत रद्द किए जाने को चुनौती दी थी।
आरोपी की ओर से पेश वकील अश्विनी दुबे ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और जांच के दौरान उसे सह-आरोपी बनाया गया। उन्होंने कहा कि उनका मुवक्किल अपराध में सीधे तौर पर शामिल नहीं था। हालांकि, मध्य प्रदेश सरकार की ओर से इस याचिका का विरोध किया गया। हाईकोर्ट ने 19 मई को साध्वी लक्ष्मी दास और उनके भाई की अग्रिम व नियमित जमानत रद्द कर दी थी। साध्वी लक्ष्मी दास उर्फ रीना रघुवंशी को 20 दिसंबर 2024 को इस शर्त पर अग्रिम जमानत दी गई थी कि वह कथित रूप से हड़पे गए पूरे 90 लाख रुपये बैंक में सुरक्षा राशि के तौर पर जमा करेंगी।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि न्यायालयों को असहाय महिलाओं के साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामलों में विशेष रूप से संवेदनशील रहना चाहिए। अदालत ने यह टिप्पणी छत्तीसगढ़ के एक मामले में दोषी की सजा को बरकरार रखते हुए की। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एन वी अंजारिया की पीठ ने कहा कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा और दोषसिद्धि को सही बरकरार रखा है।
पीठ ने कहा, असहाय महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के आरोपों की सुनवाई करते समय अदालत को संवेदनशील रहना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि दुष्कर्म केवल शारीरिक हमला नहीं होता, यह पीड़िता की निजता, सम्मान और मानसिक स्थिति को भी गहरी क्षति पहुंचाता है। शीर्ष कोर्ट ने कहा, दुष्कर्म पीड़िता की पूरी शख्सियत को झकझोर देने वाला अपराध है, जो न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी गंभीर प्रभाव डालता है।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रश्नपत्र में पृष्ठों के क्रम में गड़बड़ी का आरोप लगाने वाले नीट-यूजी 2025 के एक अभ्यर्थी की उत्तर पुस्तिका का मैन्युअल मूल्यांकन करने का निर्देश दिया। जस्टिस बीवी नागरत्ना व जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मूल्यांकन के परिणाम को रिकॉर्ड में दर्ज करने का भी आदेश दिया। पीठ ने कहा, उसे (याचिकाकर्ता को) अपने प्रश्नपत्रों की मैन्युअल जांच करवाने का संतोष होगा। उम्मीदवार ने नीट-यूजी प्रश्नपत्र में पृष्ठों के क्रम में गड़बड़ी का दावा किया था।प्रतिवादियों की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे ने प्रश्नपत्र की एक प्रति रिकॉर्ड में पेश करते हुए बताया कि यह गलती गलत स्टेपलिंग के कारण हुई। पीठ ने कहा, हालांकि, अपनी संतुष्टि के लिए, हम निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता के प्रश्नपत्र का मैन्युअल मूल्यांकन किया जाए और मूल्यांकन के परिणाम को रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए। यह प्रक्रिया एक सप्ताह के भीतर पूरी की जाए। दवे ने कहा कि प्रश्नपत्र की स्टेपलिंग एक मैन्युअल प्रक्रिया है। पीठ ने कहा, कम से कम इतना तो किया ही जा सकता है कि प्रश्नों को क्रमवार दिया जाए। पीठ ने कहा, अभ्यर्थी की घबराहट देखिए। यह कोई साधारण परीक्षा नहीं है। विधि अधिकारी ने बताया कि स्टेपलिंग के काम के लिए केवल अर्ध-कुशल या अर्ध-शिक्षित लोगों को ही नियुक्त किया गया था। यदि हम इसे किसी साक्षर व्यक्ति को देते हैं और यदि वह इसे स्टेपल करता है, तो हम निश्चित रूप से जानते हैं कि एक या दो प्रश्न वह याद कर सकता है और उन्हें बाहर भेजा जा सकता है। उन्होंने इसे दुर्लभतम उदाहरण बताया। इस पर पीठ ने कहा, आज 17-18 साल के छात्र आत्महत्या कर रहे हैं। आप कृपया औचित्य सिद्ध करने का प्रयास न करें। इस मामले में अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जटिल आर्थिक अपराधों के आरोपियों को पकड़ने के लिए वित्त और अन्य क्षेत्र के विशेषज्ञों की ओर से वैज्ञानिक जांच की जरूरत है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे अपराधों के मामलों में फैसला सुनाने के लिए अब विशेष अदालतों के गठन का समय आ गया है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने छत्तीसगढ़ के कोयला लेवी घोटाले में आरोपी व्यवसायी सूर्यकांत तिवारी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि विशेष अदालतों में नियुक्त होने वाले न्यायाधीशों को ऐसे जटिल वित्तीय अपराधों से निपटने और मुकदमे को शीघ्रता से निपटाने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। दोषियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए और उन्हें शीघ्रता से दोषी ठहराया जाना चाहिए। इसी प्रकार, यदि कोई निर्दोष है, तो उसे शीघ्रता से रिहा किया जाना चाहिए।
पीठ ने छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी से कहा कि न्यायाधीश शून्य में न्याय नहीं करते। उन्हें पूर्ण न्याय के लिए सक्षम अभियोजकों और जांचकर्ताओं की आवश्यकता होती है। पीठ ने आगे कहा, क्या आपके राज्य में वित्तीय अपराधों के लिए एक समर्पित जांच शाखा है? आपके पास एक आर्थिक अपराध शाखा तो है, लेकिन हो सकता है कि आपके पास फोरेंसिक अकाउंटेंट न हों, जो लेन-देन के जाल का विश्लेषण कर सकें। आमतौर पर, वित्तीय अपराधों का निपटारा वर्तमान में स्वीकारोक्ति के आधार पर होता है। स्वीकारोक्ति के लिए, आपको किसी को जेल में डालना पड़ता है और जानकारी निकालने और मामले को साबित करने की कोशिश करनी पड़ती है।
सरकारी अफसरों पर भ्रष्टाचार के मामलों में सुप्रीम कोर्ट बोला-संतुलन बनाना जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले ईमानदार सरकारी कर्मचारियों को तुच्छ शिकायतों से बचाने के लिए एक संतुलन बनाने पर जोर दिया। साथ ही कहा कि यह भी सुनिश्चित किया जाए कि भ्रष्ट अधिकारियों को बचाया न जाए।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि अगर ईमानदार लोक सेवकों को परेशान करने वाली शिकायतों के कारण असुरक्षित बना दिया गया, तो वे बिल्कुल भी काम नहीं कर पाएंगे और इससे नीतिगत पक्षाघात हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए की सांविधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें भ्रष्टाचार के मामलों में सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू करने के लिए पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है। पीठ ने कहा, अंततः एक संतुलन बनाना होगा।
अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले ईमानदार अधिकारियों को तुच्छ या परेशान करने वाली शिकायतों से बचाया जाना चाहिए। दूसरी बात, बेईमान अधिकारियों को संरक्षण देने की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने कहा कि अगर अधिकारी अपने आधिकारिक कार्यों के निर्वहन में कोई निर्णय लेते हैं या सिफारिश करते हैं, तो उन पर पुलिस जांच की तलवार नहीं लटकाई जा सकती।
चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा पर रुख स्पष्ट करे राष्ट्रीय कार्यबल
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय कार्यबल (एनटीएफ) को चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा के मामले में अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने अस्पतालों में सुरक्षा प्रोटोकॉल और लैंगिक हिंसा रोकने को लेकर राज्यों और अन्य हितधारकों की रिपोर्ट पर जवाब दाखिल करने को कहा है। दरअसल आरजी कर मेडिकल कॉलेज में महिला डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या के बाद देशभर में आक्रोश फैल गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस जघन अपराध पर स्वत: संज्ञान लेते हुए पिछले साल 20 अगस्त को राष्ट्रीय कार्यबल गठित की थी। कोलकाता के आरजी कर मामले के बाद चिकित्सा क्षेत्र के पेशेवरों की संरक्षा और सुरक्षा प्रोटोकॉल तैयार करने के उद्देश्य से एनटीएफ का गठन किया था। जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कार्यबल को जवाब दाखिल करने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया है
प्रश्नपत्र के पन्नों के क्रम में गड़बड़ी नीट यूजी अभ्यर्थी की उत्तर पुस्तिका के मैन्युएल मूल्यांकन का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने प्रश्नपत्र में पृष्ठों के क्रम में गड़बड़ी का आरोप लगाने वाले नीट-यूजी 2025 के एक अभ्यर्थी की उत्तर पुस्तिका का मैन्युअल मूल्यांकन करने का निर्देश दिया। जस्टिस बीवी नागरत्ना व जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मूल्यांकन के परिणाम को रिकॉर्ड में दर्ज करने का भी आदेश दिया। पीठ ने कहा, उसे अपने प्रश्नपत्रों की मैन्युअल जांच करवाने का संतोष होगा। उम्मीदवार ने नीट-यूजी प्रश्नपत्र में पृष्ठों के क्रम में गड़बड़ी का दावा किया था। प्रतिवादियों की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे ने प्रश्नपत्र की एक प्रति रिकॉर्ड में पेश करते हुए बताया कि यह गलती गलत स्टेपलिंग के कारण हुई। पीठ ने कहा, हालांकि, अपनी संतुष्टि के लिए, हम निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता के प्रश्नपत्र का मैन्युअल मूल्यांकन किया जाए और मूल्यांकन के परिणाम को रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए। यह प्रक्रिया एक सप्ताह के भीतर पूरी की जाए। दवे ने कहा कि प्रश्नपत्र की स्टेपलिंग एक मैन्युअल प्रक्रिया है।