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SIR: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आधार व वोटर ID नागरिकता के सबूत नहीं; EC बोला- ड्राफ्ट सूची की गड़बड़ी सुधार लेंगे
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: पवन पांडेय
Updated Tue, 12 Aug 2025 07:07 PM IST
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सार
Supreme Court On SIR: बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि ये मामला भरोसे की कमी का है। इस दौरान अदालत ने ये भी माना कि आधार कार्ड और वोटर आईडी नागरिकता के सबूत नहीं है। जबकि गड़बड़ियों पर चुनाव आयोग ने कहा कि ये ड्राफ्ट सूची है, इसमें सुधार किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट
- फोटो : ANI
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विस्तार
बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों का आरोप है कि इस प्रक्रिया के तहत करोड़ों मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं, जबकि चुनाव आयोग का दावा है कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची को पारदर्शी और सही रखने के लिए है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी- भरोसे की कमी, तथ्य साफ
मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि यह मामला ज्यादातर भरोसे की कमी का है। चुनाव आयोग ने अदालत को बताया कि 7.9 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 6.5 करोड़ लोगों को कोई दस्तावेज देने की जरूरत ही नहीं पड़ी, क्योंकि वे या उनके माता-पिता 2003 की मतदाता सूची में पहले से दर्ज थे। अदालत ने याचिकाकर्ताओं से कहा- अगर 7.9 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने एसआईआर का जवाब दिया है, तो '1 करोड़ मतदाताओं के नाम गायब होने' का तर्क नहीं टिकता है।
यह भी पढ़ें - Opposition On SIR: संसद में एसआईआर पर बवाल, विपक्ष का आरोप- वोट डिलीट कर लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है
दस्तावेजों पर क्या है विवाद?
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के इस निर्णय से सहमति जताई कि आधार और मतदाता पहचान पत्र को अकेले नागरिकता का पुख्ता सबूत नहीं माना जा सकता। इसके साथ अन्य दस्तावेज भी होने चाहिए। वहीं कपिल सिब्बल (याचिकाकर्ता की ओर से) ने कहा कि लोगों के पास आधार, राशन और ईपीआईसी कार्ड होते हुए भी अधिकारी इन्हें मान्य नहीं मान रहे। अदालत ने पूछा- 'क्या आपका मतलब है कि जिनके पास कोई दस्तावेज नहीं है, उन्हें भी मतदाता मान लिया जाए?'
राजनीतिक दलों और कार्यकर्ताओं की आपत्तियां
अभिषेक मनु सिंघवी और प्रशांत भूषण ने इस प्रक्रिया की समय सीमा और 65 लाख मतदाताओं को 'मृत, पलायन कर चुके या अन्य जगह पंजीकृत' बताने के आंकड़ों पर सवाल उठाए। वहीं योगेंद्र यादव ने कहा- बिहार में वयस्क आबादी 8.18 करोड़ है, जबकि मतदाता संख्या 7.9 करोड़ बताई गई। उनका आरोप है कि एसआईआर का डिजाइन ही 'नाम हटाने' के लिए है। उदाहरण दिए गए कि कुछ क्षेत्रों में जिंदा लोगों को मृत घोषित किया गया और मृत लोगों को जिंदा।
ड्राफ्ट सूची की गड़बड़ी सुधार लेंगे- चुनाव आयोग
वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी (ईसीआई की ओर से) ने कहा- यह ड्राफ्ट सूची है, इसमें कुछ गड़बड़ियां स्वाभाविक हैं, जिन्हें अंतिम सूची में सुधार लिया जाएगा। इसका उद्देश्य है मतदाता सूची से अयोग्य नामों को हटाकर चुनाव की शुद्धता बढ़ाना। बता दें कि ड्राफ्ट रोल 1 अगस्त को प्रकाशित होगा और फाइनल रोल 30 सितंबर को जारी होगा। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कहा था कि अगर बड़े पैमाने पर नाम काटने की स्थिति बनी, तो वह तुरंत दखल देगा। बुधवार को सुनवाई जारी रहेगी, जिसमें अदालत ने ईसीआई से पूरा डाटा तैयार रखने को कहा है।
यह भी पढ़ें - OCI Card: 'दोषी पाए गए लोगों का रद्द किया जाएगा ओसीआई कार्ड', केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जारी की अधिसूचना
कौन-कौन से सांसद पहुंचे शीर्ष अदालत?
इस मामले में कई बड़े राजनीतिक नेता और संगठन सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे हैं। इस आरजेडी सांसद मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल, एनसीपी (शरद पवार गुट) की सांसद सुप्रिया सुले, सीपीआई महासचिव डी. राजा, समाजवादी पार्टी के सांसद हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के सांसद अरविंद सावंत, जेएमएम सांसद सरफराज अहमद, सीपीआईएमएल महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य के साथ ही पीयूसीएल, एडीआरऔर योगेंद्र यादव जैसे कार्यकर्ता भी शामिल हैं।

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दस्तावेजों पर क्या है विवाद?
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के इस निर्णय से सहमति जताई कि आधार और मतदाता पहचान पत्र को अकेले नागरिकता का पुख्ता सबूत नहीं माना जा सकता। इसके साथ अन्य दस्तावेज भी होने चाहिए। वहीं कपिल सिब्बल (याचिकाकर्ता की ओर से) ने कहा कि लोगों के पास आधार, राशन और ईपीआईसी कार्ड होते हुए भी अधिकारी इन्हें मान्य नहीं मान रहे। अदालत ने पूछा- 'क्या आपका मतलब है कि जिनके पास कोई दस्तावेज नहीं है, उन्हें भी मतदाता मान लिया जाए?'
राजनीतिक दलों और कार्यकर्ताओं की आपत्तियां
अभिषेक मनु सिंघवी और प्रशांत भूषण ने इस प्रक्रिया की समय सीमा और 65 लाख मतदाताओं को 'मृत, पलायन कर चुके या अन्य जगह पंजीकृत' बताने के आंकड़ों पर सवाल उठाए। वहीं योगेंद्र यादव ने कहा- बिहार में वयस्क आबादी 8.18 करोड़ है, जबकि मतदाता संख्या 7.9 करोड़ बताई गई। उनका आरोप है कि एसआईआर का डिजाइन ही 'नाम हटाने' के लिए है। उदाहरण दिए गए कि कुछ क्षेत्रों में जिंदा लोगों को मृत घोषित किया गया और मृत लोगों को जिंदा।
ड्राफ्ट सूची की गड़बड़ी सुधार लेंगे- चुनाव आयोग
वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी (ईसीआई की ओर से) ने कहा- यह ड्राफ्ट सूची है, इसमें कुछ गड़बड़ियां स्वाभाविक हैं, जिन्हें अंतिम सूची में सुधार लिया जाएगा। इसका उद्देश्य है मतदाता सूची से अयोग्य नामों को हटाकर चुनाव की शुद्धता बढ़ाना। बता दें कि ड्राफ्ट रोल 1 अगस्त को प्रकाशित होगा और फाइनल रोल 30 सितंबर को जारी होगा। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कहा था कि अगर बड़े पैमाने पर नाम काटने की स्थिति बनी, तो वह तुरंत दखल देगा। बुधवार को सुनवाई जारी रहेगी, जिसमें अदालत ने ईसीआई से पूरा डाटा तैयार रखने को कहा है।
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कौन-कौन से सांसद पहुंचे शीर्ष अदालत?
इस मामले में कई बड़े राजनीतिक नेता और संगठन सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे हैं। इस आरजेडी सांसद मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल, एनसीपी (शरद पवार गुट) की सांसद सुप्रिया सुले, सीपीआई महासचिव डी. राजा, समाजवादी पार्टी के सांसद हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के सांसद अरविंद सावंत, जेएमएम सांसद सरफराज अहमद, सीपीआईएमएल महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य के साथ ही पीयूसीएल, एडीआरऔर योगेंद्र यादव जैसे कार्यकर्ता भी शामिल हैं।
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