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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कमजोर नहीं मानी जा सकती दिव्यांगों की गवाही
अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली
Published by: देव कश्यप
Updated Thu, 29 Apr 2021 03:24 AM IST
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सार
- आपराधिक न्याय प्रणाली को और अधिक दिव्यांग अनुकूल बनाने के लिए दिशानिर्देश जारी

सर्वोच्च न्यायालय
- फोटो : पीटीआई
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि दिव्यांग पीड़िता व दिव्यांग लोगों की गवाही को कमजोर नही माना जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए आपराधिक न्याय प्रणाली को और अधिक दिव्यांग अनुकूल बनाने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि दिव्यांग पीड़िता और दिव्यांग गवाहों के बयान को सिर्फ इसलिए कमजोर नहीं माना जा सकता कि ऐसा व्यक्ति दुनिया के साथ एक अलग तरीके से बातचीत या बर्ताव करता है। पीठ ने कहा, इस सबंध में कानून में महत्वपूर्ण बदलाव भी हुए। लेकिन इसमें और भी काम करने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उन लोगों तक इसका लाभ पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध के कई दिशानिर्देश जारी किए हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी और राज्य न्यायिक अकादमियों से अनुरोध है कि वे यौन शोषण मामलों से निपटने में ट्रायल जज और अपीलीय न्यायाधीशों को संवेदनशील बनाएं। प्रशिक्षण के दौरान ऐसे पीड़ितों से संबंधित विशेष प्रावधानों से न्यायाधीशों को परिचित कराना चाहिए। सरकारी वकीलों को भी इसी तरह का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया, एलएलबी प्रोग्राम में ऐसे कोर्स शुरू करने पर विचार कर सकता है। इसके अलावा प्रशिक्षित विशेष शिक्षकों और द्विभाषिये की नियुक्ति की जाए।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो को लैंगिग हिंसा पर डाटा तैयार करने की संभावना पर विचार करना चाहिए। दिव्यांगता इनमें से एक होनी चाहिए। साथ ही पुलिस अधिकारियों को नियमित रूप से दिव्यांग महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों से उचित तरीके से निपटने के लिए संवेदनशीलता प्रदान की जानी चाहिए। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कई अन्य दिशानिर्देश दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने एक अपील का निपटारा करते हुए ये दिशानिर्देश दिए हैं। वर्ष 2011 में एक 20 वर्षीय दिव्यांग (नेत्रहीन) लड़की से दुष्कर्म करने के आरोप में ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा-376 (1) और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) की धारा 3 (2) (वी) के तहत दोषी ठहराया था। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा की पुष्टि की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपीलकर्ता को अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) की धारा 3 (2) (वी) के अपराध से तो बरी कर दिया लेकिन धारा-376 के तहत दोषसिद्धि को सही ठहराया है।