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सुप्रीम कोर्ट का फैसला: 'अदालत बिल मंजूरी की टाइमलाइन तय नहीं कर सकती'; 'राष्ट्रपति संदर्भ' केस में CJI की पीठ

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शुभम कुमार Updated Thu, 20 Nov 2025 01:52 PM IST
सार

Supreme Court On President Reference: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत राज्य विधानसभा की तरफ से पास किए गए बिलों को मंजूरी देने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय सीम तय नहीं कर सकते। सीजेआई बीआर गवई की अगुवाई वाली पीठ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ से भेजे गए 14 सवालों का जवाब देते हुए अपनी राय दी है।

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राष्ट्रपति के सवालों पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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विस्तार
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सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को राष्ट्रपति के उस संदर्भ पर अपना फैसला सुनाया है, जिसमें पूछा गया था कि क्या कोई सांविधानिक अदालत, राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा तय कर सकती है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की संविधान पीठ ने 10 दिनों तक दलीलें सुनीं और 11 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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'अदालत बिलों को मंजूरी की टाइमलाइन तय नहीं कर सकती'
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों पर अनुमोदन देने के लिए न्यायपालिका कोई समयसीमा तय नहीं कर सकती। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने राष्ट्रपति की तरफ से अनुच्छेद 143 के तहत भेजे गए 14 संवैधानिक प्रश्नों पर अपनी राय देते हुए कहा कि यह विषय संवैधानिक पदाधिकारियों के विवेक और संघीय ढांचे की मर्यादा से जुड़ा है। अदालत ने माना कि विधायी प्रक्रिया में राष्ट्रपति और राज्यपाल की भूमिका 'संवैधानिक कर्तव्य' है, पर न्यायिक हस्तक्षेप के जरिए इसकी समय सीमा तय नहीं की जा सकती। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि अत्यधिक देरी लोकतांत्रिक शासन की आत्मा को क्षति पहुंचाती है, इसलिए इन पदों से अपेक्षा है कि वे उचित समय के भीतर निर्णय लें।
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यह भी पढ़ें - SC: तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में 8 अप्रैल को सुनाए गए 'सुप्रीम' फैसले के बाद अब क्या हुआ, आगे क्या?

संविधानिक प्रावधान और राष्ट्रपति का कदम
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मई में संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी थी। उन्होंने पूछा था कि क्या न्यायालय यह तय कर सकता है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल को बिलों पर कब तक निर्णय लेना चाहिए। राष्ट्रपति ने अपने पांच पन्नों के संदर्भ पत्र में 14 सवाल रखे हैं, जिनका जवाब सुप्रीम कोर्ट से मांगा गया है। यह सवाल मुख्य रूप से अनुच्छेद 200 और 201 से जुड़े हैं, जिनमें राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों का जिक्र है।

राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से पूछे ये 14 सवाल

  1. राज्यपाल के समक्ष अगर कोई विधेयक पेश किया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उनके पास क्या विकल्प हैं?
  2. क्या राज्यपाल इन विकल्पों पर विचार करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं?
  3. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा लिए गए फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है?
  4. क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों पर न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह से रोक सकता है?
  5. क्या अदालतें राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों की समयसीमा तय कर सकती हैं, जबकि संविधान में ऐसी कोई समयसीमा तय नहीं की गई है?
  6. क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा लिए गए फैसले की समीक्षा हो सकती है?
  7. क्या अदालतें अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा फैसला लेने की समयसीमा तय कर सकती हैं?
  8. अगर राज्यपाल ने विधेयक को फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया है तो क्या अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेनी चाहिए?
  9. क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा क्रमशः अनुच्छेद 200 और 201 के तहत लिए गए फैसलों पर अदालतें लागू होने से पहले सुनवाई कर सकती हैं। 
  10. क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों में बदलाव कर सकता है?
  11. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी के बिना राज्य सरकार कानून लागू कर सकती है?
  12. क्या सुप्रीम कोर्ट की कोई पीठ अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच को भेजने पर फैसला कर सकती है? 
  13. क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्देश/आदेश दे सकता है जो संविधान या वर्तमान कानूनों मेल न खाता हो?
  14. क्या अनुच्छेद 131 के तहत संविधान इसकी इजाजत देता है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है?

यह भी पढ़ें - एक गलत को दूसरे से सही नहीं कर सकते: राष्ट्रपति के 14 सवाल अहम... व्याख्या कर नए प्रावधान बनाना गलती

तमिलनाडु केस और समय सीमा
8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु विधानसभा से पास हुए बिलों पर फैसला देते हुए पहली बार यह कहा था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल की तरफ से भेजे गए किसी भी बिल पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। यह फैसला अपने आप में ऐतिहासिक माना गया क्योंकि इससे पहले ऐसी कोई समय सीमा तय नहीं थी।
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