लोकसभा के पहले सत्र में हुआ रिकॉर्ड काम, लेकिन एक काम फिर भी रह गया
- 37 दिन के सत्र में 32 विधेयक पारित किए गए।
- 2009 में सत्र शुरू होने के छठे दिन भाजपा के वरिष्ठ सांसद करिया मुंडा को उपाध्यक्ष चुना गया था।
विस्तार
नवगठित लोकसभा ने अपने पहले सत्र में रिकॉर्ड काम किया। 37 दिन के सत्र में 32 विधेयक पारित किए गए। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया गया, आम बजट पारित हुआ और तीन तलाक विधेयक पारित करने से लेकर अनुच्छेद 370 पर लाए संवैधानिक प्रस्ताव जैसे महत्वपूर्ण काम किए गए। लेकिन एक काम फिर भी रह गया - लोकसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं हो पाया।
परंपरागत रूप से लोकसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव पहले सत्र में ही हो जाता है। और अधिकतर इस पर विपक्षी दलों के ही किसी सांसद को चुना जाता है और वह भी निर्विरोध।
उस पहले यूपीए की सरकार में 2009 में सत्र शुरू होने के छठे दिन भाजपा के वरिष्ठ सांसद करिया मुंडा को उपाध्यक्ष चुना गया था। उससे पहले 2004 में यूपीए की पहली सरकार बनने पर पहला सत्र शुरू होने के पहले सप्ताह में ही चरनजीत सिंह अटवाल को लोकसभा का उपाध्यक्ष बना दिया गया था। वे भाजपा के सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ सांसद थे।
1996 में भी कांग्रेस के समर्थन से देवगौड़ा के नेतृत्व में बनी जनता दल सरकार के कार्यकाल में भाजपा के वरिष्टतम सांसदों में से एक सूरजभान को इस पद के लिए सर्वसम्मति से चुना गया था। वह भी पहला सत्र शुरू होने के 19वें दिन।
केवल दो बार ही यह अवधि 30 दिनों से ज्यादा हुई है। 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद अन्ना डीएमके के एम थंबीदुरई को लोकसभा का सत्र आरंभ होने के चौतीसवें दिन इस पद पर निर्विरोध चुना गया था। और उससे पहले 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद लक्षद्वीप से आठवीं बार लगातार सांसद चुने गए कांग्रेस के पीएम सईद को जब लोकसभा का उपाध्यक्ष बनाया गया तो लोकसभा का सत्र शुरू हए 59 दिन हो चुके थे।
दरअसल, तब एनडीए सरकार इस पद अपनी सांसद रीता वर्मा को आसीन कराना चाहता था। जबकि विपक्ष की पसंद पीएम सईद थे। विपक्ष द्वारा परंपराओं का दुहाई देने और ममता बनर्जी के आग्रह पर वाजपेयी के दख़ल के बाद पीएम सईद ही लोकसभा के उपाध्यक्ष बने। हालाँकि कारगिल युद्ध के बाद 1999 में हुए चुनाव में जब वाजपेयी सरकार वापस बनी तो पहला सत्र शुरू होने के छठे दिन ही सईद को दोबारा उपाध्यक्ष पद के लिए चुन लिया गया।
यह है संवैधानिक स्थिति
संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा के गठन के बाद सदन की कार्वाही चलाने के लिए शीघ्रातिशीघ्र एक-एक सांसद को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुना जाएगा।
सत्रहवीं लोकसभा
इस बार लोकसभा का पहला सत्र 17 जून से शुरू हुआ और कार्यवाहक अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार द्वारा नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाने के बाद 19 जून के ओम बिड़ला अध्यक्ष चुने गए। पहले सत्र की अवधि 26 जुलाई तक थी। लेकिन सरकार ने कुंछ महत्वपूर्ण काम निपटाने के लिए इसे दस दिन के लिए बढा दिया था। लेकिन इस दौरान उपाध्यक्ष का चुनाव न हो सका।
क्या है विकल्प
भाजपा इस बार भी यह पद सबसे बड़ी विपक्षी दल कांग्रेस को नहीं देना चाहती है। उसके बाद सबसे बड़ा दल 23 सांसदों वाला डीएमके है। फिर 22 सांसदों वाले तृणमूल और वाईएसआर कांग्रेस हैं। राजनीतिक कारणों से ये दोनों ही नहीं बल्कि 12 सांसदों वाली बीजू जनता दल भी यह पद लेने से इंकार कर चुके हैं।
ऐसे में विकल्प 18 सांसदों वाली शिवसेना या 16 सांसदों वाली जद यू है। लेकिन यह दोनों सत्तारूढ गठबंधन का हिस्सा हैं। फिर 10 सांसदों वाली बसपा या 9 सांसदों वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति का नंबर है।