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कौन हैं देवव्रत महेश रेखे: 19 साल का वो तपस्वी, जिसने 200 साल बाद काशी में दोहराया इतिहास, पीएम-सीएम भी मुरीद

स्पेशल न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कुमार विवेक Updated Wed, 03 Dec 2025 04:27 PM IST
सार

Who is Devvrat Mahesh Rekhe: काशी में 19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने 200 साल बाद 'दंडकर्म पारायण' कर इतिहास रचा। 50 दिनों की इस कठिन साधना पर पीएम मोदी और सीएम योगी ने भी दी बधाई। जानिए कौन हैं देवव्रत महेश रेखे। उनकी उपलब्धि क्यों है खास?

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Who is Devvrat Mahesh Rekhe: The 19-Year-Old Prodigy Who Revived a 200-Year-Old Tradition in Kashi
वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे - फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
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बिना किसी किताब को देखे, बिना रुके, लगातार 50 दिनों तक हजारों कठिन संस्कृत मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करना आज के दौरान में किसी के लिए असंभव सा लगता है, पर इसे 19 वर्ष के एक युवक ने इसे सच कर दिखाया। महाराष्ट्र के एक 19 वर्षीय युवा देवव्रत महेश रेखे ने वह कर दिखाया है जो पिछले 200 वर्षों में किसी ने नहीं किया। उनकी इस कठिन 'साधना' ने न केवल काशी के विद्वानों को चौंका दिया, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी उनका मुरीद बना दिया।

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कौन हैं देवव्रत महेश रेखे?

देवव्रत महेश रेखे मूल रूप से महाराष्ट्र के अहिल्या नगर के रहने वाले हैं। महज 19 वर्ष की आयु में उन्होंने वेदों के प्रति वह समर्पण दिखाया है जो बड़े-बड़े विद्वानों के लिए भी दुर्लभ है। देवव्रत वर्तमान में वाराणसी (काशी) के रामघाट स्थित वल्लभराम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय के छात्र हैं। देवव्रत एक वैदिक परिवार से आते हैं। उनके पिता वेदब्रह्मश्री महेश चंद्रकांत रेखे स्वयं एक प्रतिष्ठित वैदिक विद्वान हैं और उन्होंने ही देवव्रत को इस कठिन मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित और प्रशिक्षित किया है।

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क्या है 'दंडकर्म पारायण साधना' जिसकी हर तरफ चर्चा?

देवव्रत ने जिस उपलब्धि को हासिल किया है, उसे वैदिक शब्दावली में 'दंडकर्म पारायण' कहा जाता है। यह वेदों के पाठ की सबसे जटिल विधियों में से एक है। यह पाठ शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा से संबंधित है। इसमें करीब 2,000 मंत्र शामिल हैं। इसके पाठ के नियम भी कठिन हैं।  देवव्रत को बिना किसी ग्रंथ को देखे (कंठस्थ), पूरी शुद्धता और लय के साथ इन मंत्रों का उच्चारण करना था, और उन्होंने इसे कर दिखाया। यह अनुष्ठान लगातार 50 दिनों तक चला। उन्होंने 2 अक्तूबर से 30 नवंबर तक बिना किसी बाधा के इस उपलब्धि हो हासिल किया।  30 नवंबर को दंडक्रम पारायण की पूर्णाहुति के बाद उन्हें शृंगेरी शंकराचार्य ने सम्मान स्वरूप सोने का कंगन और 1,01,116 रुपये दिया गया। दंडक्रम पारायणकर्ता अभिनंदन समिति के पदाधिकारियों चल्ला अन्नपूर्णा प्रसाद, चल्ला सुब्बाराव, अनिल किंजवडेकर, चंद्रशेखर द्रविड़ घनपाठी, प्रो. माधव जर्नादन रटाटे व पांडुरंग पुराणिक ने बताया कि नित्य साढ़े तीन से चार घंटे पाठ कर देवव्रत ने इसे पूरा किया।

देवव्रत महेश रेखे की उपलब्धि क्यों 'ऐतिहासिक'?

देवव्रत की उपलब्धि का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इसका इतिहास है।  ऐसा माना जाता है कि 'दंडकर्म पारायण' का यह कठिन स्वरूप पिछले 200 वर्षों में किसी ने पूर्ण नहीं किया था। इससे पहले, लगभग दो सदी पूर्व नासिक के वेदमूर्ति नारायण शास्त्री देव ने यह उपलब्धि हासिल की थी। आज के डिजिटल दौर में, जब याददाश्त पर तकनीक हावी है, एक 19 साल के युवा द्वारा हजारों मंत्रों को कंठस्थ करना और उन्हें त्रुटिहीन सुनाना एक चमत्कार जैसा है। देवव्रत की इस सिद्धि ने देश के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अपनी ओर खींचा।

पीएम मोदी और सीएम योगी ने क्या दी प्रतिक्रिया?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर देवव्रत की प्रशंसा करते हुए लिखा, "19 वर्ष के देवव्रत महेश रेखे जी ने जो उपलब्धि हासिल की है, वो जानकर मन प्रफुल्लित हो गया है। उनकी ये सफलता हमारी आने वाली पीढ़ियों की प्रेरणा बनने वाली है... काशी से सांसद होने के नाते मैं विशेष रूप से आनंदित हूं।"

उनकी उपलब्धि पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा के 'दण्डकर्म पारायणम्' का 50 दिनों तक अखंड, शुद्ध और पूर्ण अनुशासन के साथ पाठ करना हमारी प्राचीन गुरू-परंपरा के गौरव का पुनर्जागरण है। उन्होंने इसे भारतीय वैदिक परंपरा की शक्ति और अनुशासन का जीवंत उदाहरण बताया। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि यह महत्वपूर्ण वैदिक अनुष्ठान पवित्र काशी की धरती पर सम्पन्न हुआ। सीएम ने देवव्रत रेखे के परिवार, आचार्यों, संत-मनीषियों और उन सभी संस्थाओं का अभिनंदन भी किया, जिनके सहयोग से यह महान तपस्या सफल हो सकी।

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