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Women Health: प्रसव के बाद हर साल चार करोड़ महिलाओं को सेहत से जुड़ी समस्याएं; लंबे समय तक खराब रहती है तबियत
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ज्योति भास्कर
Updated Sat, 09 Dec 2023 04:14 PM IST
सार
महिलाओं की सेहत बड़ी चिंता का विषय है। एक स्टडी में सामने आया है कि हर साल कम से कम 40 मिलियन यानी लगभग चार करोड़ महिलाओं को प्रसव के बाद गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ता है। खास बात ये भी है कि महिलाओं की तबियत लंबे समय तक खराब रहती है।
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प्रसव के बाद महिलाओं की बीमारी चिंताजनक (सांकेतिक तस्वीर)
- फोटो : istock
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विस्तार
महिलाओं की सेहत को लेकर एक अहम स्टडी में चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। अध्ययन में पाया गया है कि हर साल करीब चार करोड़ महिलाओं की तबियत प्रसव के बाद खराब होती है। खास और चिंताजनक पहलू ये है कि बच्चों को जन्म देने के बाद इन महिलाओं की तबियत लंबे समय तक खराब रहती है। प्रसव के कारण होने वाली दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्या के बारे में शोधकर्ताओं ने पाया कि महिलाओं की सबसे अधिक संख्या 'संभोग के दौरान दर्द का अनुभव' या डिस्पेर्यूनिया (dyspareunia) करने की श्रेणी में है।
एक तिहाई से अधिक यानी करीब 35 प्रतिशत महिलाओं को प्रसव के बाद परेशानी हुई। 35 फीसदी महिलाओं ने डिस्पेर्यूनिया की शिकायत की, जबकि 32 प्रतिशत महिलाओं ने पीठ के निचले हिस्से में दर्द की शिकायत की। मां बनने वाली महिलाओं को प्रभावित करने वाले अन्य प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं में अनैच्छिक पेशाब भी है। करीब 8-31 प्रतिशत महिलाओं को पेशाब से जुड़ी समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके अलाा 9 से 24 प्रतिशत चिंता से घिरी रहती हैं। बच्चे के जन्म के बाद 11 से 17 प्रतिशत महिलाएं अवसाद से जूझती हैं।
पेरिनियल दर्द यानी गुदा और जननांगों के बीच शरीर के सामान्य क्षेत्र में दर्द भी प्रमुख परेशानी है। इससे 11 प्रतिशत महिलाएं प्रभावित होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सहित शोधकर्ताओं की अंतरराष्ट्रीय टीम ने अपने अध्ययन में कहा प्रसव के बाद सेहत का बड़ा बोझ जन्म देने के बाद के महीनों या वर्षों तक बना रहता है। हालांकि, सेहत को लेकर इनमें से कई परेशानियां ऐसी भी हैं जो महिलाओं में बच्चा जनने की क्षमता खत्म होने के बाद होती हैं।
महिलाओं की सेहत से जुड़ी परेशानी की गंभीरता को देखते हुए शोध करने वाली टीम ने इन सामान्य समस्याओं को अधिक से अधिक मान्यता देने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था और प्रसव के दौरान प्रभावी देखभाल भी सेहत से जुड़े खतरों का पता लगाने का अहम उपाय है। जटिल स्वास्थ्य समस्या से निपटने में यह बेहद कारगर उपाय है। इनसे जूझने वाली महिलाओं के बच्चों में जन्म के बाद स्थायी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होने का खतरा बना रहता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक मातृ मृत्यु दर लगातार अधिक रहने के कारण कम आय और मध्यम आय वाले कई देशों में स्थिति और खराब हो सकती है। उच्च आय वाले देशों में इसका खतरा तुलनात्मक रूप से कम होता है। डब्ल्यूएचओ में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अनुसंधान के निदेशक डॉ. पास्केल एलोटे ने कहा, प्रसव के बाद कई शारीरिक बदलाव होते हैं। बच्चे के जन्म के बाद लंबे समय तक महिलाओं को दैनिक जीवन में भावनात्मक और शारीरिक पीड़ा से जूझना पड़ता है। फिर भी इन परेशानियों के बारे में कम रिपोर्ट सामने आती है।
उन्होंने कहा, अपने पूरे जीवन और मां बनने के बाद महिलाओं को स्वास्थ्य देखभाल की अधिक जरूरत होती है। इसका मकसद सेहत से जुड़ी परेशानी की गंभीरता को देखते हुए उन्हें प्रसव से बचाना है। डॉ. पास्केल एलोटे ने कहा, इसके अलावा महिलाओं की अच्छी स्वास्थ्य देखभाल और गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए भी उनकी सेहत से जुड़ी समस्याओं को बेहतर तरीके से समझना जरूरी है।
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एक तिहाई से अधिक यानी करीब 35 प्रतिशत महिलाओं को प्रसव के बाद परेशानी हुई। 35 फीसदी महिलाओं ने डिस्पेर्यूनिया की शिकायत की, जबकि 32 प्रतिशत महिलाओं ने पीठ के निचले हिस्से में दर्द की शिकायत की। मां बनने वाली महिलाओं को प्रभावित करने वाले अन्य प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं में अनैच्छिक पेशाब भी है। करीब 8-31 प्रतिशत महिलाओं को पेशाब से जुड़ी समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके अलाा 9 से 24 प्रतिशत चिंता से घिरी रहती हैं। बच्चे के जन्म के बाद 11 से 17 प्रतिशत महिलाएं अवसाद से जूझती हैं।
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पेरिनियल दर्द यानी गुदा और जननांगों के बीच शरीर के सामान्य क्षेत्र में दर्द भी प्रमुख परेशानी है। इससे 11 प्रतिशत महिलाएं प्रभावित होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सहित शोधकर्ताओं की अंतरराष्ट्रीय टीम ने अपने अध्ययन में कहा प्रसव के बाद सेहत का बड़ा बोझ जन्म देने के बाद के महीनों या वर्षों तक बना रहता है। हालांकि, सेहत को लेकर इनमें से कई परेशानियां ऐसी भी हैं जो महिलाओं में बच्चा जनने की क्षमता खत्म होने के बाद होती हैं।
महिलाओं की सेहत से जुड़ी परेशानी की गंभीरता को देखते हुए शोध करने वाली टीम ने इन सामान्य समस्याओं को अधिक से अधिक मान्यता देने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था और प्रसव के दौरान प्रभावी देखभाल भी सेहत से जुड़े खतरों का पता लगाने का अहम उपाय है। जटिल स्वास्थ्य समस्या से निपटने में यह बेहद कारगर उपाय है। इनसे जूझने वाली महिलाओं के बच्चों में जन्म के बाद स्थायी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होने का खतरा बना रहता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक मातृ मृत्यु दर लगातार अधिक रहने के कारण कम आय और मध्यम आय वाले कई देशों में स्थिति और खराब हो सकती है। उच्च आय वाले देशों में इसका खतरा तुलनात्मक रूप से कम होता है। डब्ल्यूएचओ में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अनुसंधान के निदेशक डॉ. पास्केल एलोटे ने कहा, प्रसव के बाद कई शारीरिक बदलाव होते हैं। बच्चे के जन्म के बाद लंबे समय तक महिलाओं को दैनिक जीवन में भावनात्मक और शारीरिक पीड़ा से जूझना पड़ता है। फिर भी इन परेशानियों के बारे में कम रिपोर्ट सामने आती है।
उन्होंने कहा, अपने पूरे जीवन और मां बनने के बाद महिलाओं को स्वास्थ्य देखभाल की अधिक जरूरत होती है। इसका मकसद सेहत से जुड़ी परेशानी की गंभीरता को देखते हुए उन्हें प्रसव से बचाना है। डॉ. पास्केल एलोटे ने कहा, इसके अलावा महिलाओं की अच्छी स्वास्थ्य देखभाल और गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए भी उनकी सेहत से जुड़ी समस्याओं को बेहतर तरीके से समझना जरूरी है।