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BRICS Summit 2024: दो गुटों में दुनिया, पश्चिम एशिया में महाशक्तियों के खेल से गड़बड़ाया अमेरिका का गणित
सार
ब्रिक्स-2024 शिखर सम्मेलन में कुछ अलग तस्वीर देखने को मिली है। चीन और रूस की गर्मजोशी ने बताया है कि ईरान अलग-थलग नहीं है। रूस की अध्यक्षता में ब्रिक्स के मौजूदा स्वरूप ने भी अमेरिका को चुनौती दे दी है।
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ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 2024
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
रूस के कजान शहर में चल रहे ब्रिक्स-2024 शिखर सम्मेलन ने दुनिया को नया संदेश दिया है। चीन और रूस की गर्मजोशी ने बताया है कि ईरान अलग-थलग नहीं है। रूस की अध्यक्षता में ब्रिक्स के मौजूदा स्वरूप ने भी अमेरिका को चुनौती दे दी है। यूक्रेन के साथ सैन्य संघर्ष में उलझे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ जैसे खड़े होकर कहना चाह रहे हों को कि दुनिया में अमेरिका की मोनोपोली के दिन लद गए और अब दो गुटों का दौर है। सुरक्षा और रणनीतिक मामलों के जानकार एके मिश्रा कहते हैं कि कुछ तो बात है। आखिर इस्राइल को भी अब ईरान पर प्रतिक्रिया के लिए 100 बार सोचना पड़ रहा है।
ईरान ने इस्राइल पर एक अक्तूबर को 180 मिसाइलों से हमला किया था। एके मिश्रा कहते हैं कि आम तौर पर इस्राइल इस तरह के हमलों की प्रतिक्रिया में जरा भी न तो संकोच करता है और न ही समय लेता है, लेकिन इस्राइल समय ले रहा है। यह अनायास नहीं है। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ईरान की मौजूदगी और दुनिया की रूस और चीन जैसी महाशक्तियों के ईरान के राष्ट्राध्यक्ष के साथ दिखाई दे रहे समीकरण ने भी संदेश देने की कोशिश है।
इस्राइल के पास अब सीक्रेट क्या है?
सामरिक और रणनीतिक मामलों के जानकार का कहना है कि इस्राइल के लिए तीन चार घटनाक्रम बहुत चौकाने वाले हैं। पहला यह कि ईरान के हाइपरसोनिक प्रक्ष्येपा इस्राइल के सुरक्षा कवच के भरोसे को तोड़ते हुए उसकी जमीन पर नुकसान करने में सफल रहे। दूसरा, उसके सुरक्षा कवच आइरन डोम का उसके दुश्मनों ने तोड़ निकाल लिया है। तीसरा, घटनाक्रम थोड़ा और गंभीर है। जिस तरह से इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतेन्याहू के आवास को निशाना बनाया गया, वह भी कम चौकाने वाला नहीं है। जबकि अभी तक इस्राइल के सुरक्षा कवच, उसके अंडर कवर आपरेशन, तकनीकी कौशल ही चौंकाते रहे हैं। अब उसे अमेरिकी रक्षा कवच, सैन्य ताकत, हथियार और सहयोग की खुलकर (निर्भरता) जरूरत पड़ रही है। मिश्रा कहते हैं कि इससे इस्राइल के रणनीतिकार अपनी जमीन की तरफ बढ़ रहे खतरे की गंभीरता का आकलन कर रहे हैं। उन्हें भी साफ दिखाई दे रहा है कि उनके दुश्मन के पीछे लोग खड़े हैं।
शैडो बॉक्सिंग के स्टेट वॉर में बदलने का बढ़ रहा है खतरा
विदेश मालों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार रंजीत कुमार कहते हैं कि अब मध्य एशिया की स्थिति महाशक्तियों के आपसी खेल में पेंचीदा हो रही है। अभी तक इस्राइल से फिलिस्तीन का संगठन हमास लड़ाई लड़ रहा था। हमास का साथ लेबनान में ईरान के सहयोग से खड़ा हुआ संगठन हिजहुल्लाह दे रहा था। यमन के हूती विद्रोही रेड सी(भूमध्य सागर) में चुनौती दे रहे थे। इराक और सीरिया की शिया मिलिशिया के साथ देने तक ही सब सीमित था। लेकिन एक अक्टूबर को ईरान ने इस्राइल पर सीधा हमला बोलकर अमेरिका और इस्राइल दोनों को चुनौती दे दी है। पूर्व राजनयिक एसके शर्मा भी इससे सहमत हैं।
एसके शर्मा कहते हैं कि इस्राइल के लेबनान, हमास, हूती पर सैन्य कार्रवाई करने में कोई बड़ा खतरा नहीं है, लेकिन ईरान द्वारा दागी गई मिसाइल पर प्रतिक्रिया बहुत गंभीर स्थिति पैदा कर सकता है। इससे अपनी आत्मरक्षा में ईरान प्रतिक्रिया देगा। जवाबी कार्रवाई कर सकता है। इससे देशों के बीच में युद्ध छिड़ जाने की स्थिति आ जाएगी। अमेरिकी रक्षा और सुरक्षा एजेंसियों को अब इसका एहसास हो चुका है कि ईरान के पीछे भी कोई खड़ा है। हालांकि रंजीत कुमार कहते हैं कि दुनिया में अमेरिका सुपर पावर है। उसके साथ यूरोप समेत तमाम देश मजबूती से खड़े हैं। उनमें आपसी विरोधाभास बहुत कम है, रूस के साथ खड़े नजर आ रहे देशों के बीच में स्थिति थोड़ा अलग है।
क्या सच में गड़बड़ा रहा है दुनिया में अमेरिका का सुपर पॉवर गणित?
पूर्व विदेश सचिव अमर उजाला से विदेश बातचीत में कहते हैं कि चीन और रूस जैसे देश अमेरिका की नाक नीची करना चाहते हैं। अमेरिका प्रशासन पर दुनिया में अपनी बादशाहत बचाए रखने का भारी दबाव है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अमेरिका को लेकर पहले वाली बात नहीं रही। पूर्व एयर वाइस मार्शल का कहना है कि अमेरिका ने बड़ी कूटनीतिक चाल चलकर क्वॉड (अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, आस्ट्रेलिया) फोरम का गठन किया था, लेकिन यह अभी भी अमेरिकी दांव भर रह गया है। रंजीत कुमार भी मानते हैं कि क्वॉड को लेकर भारत के पास अपने हितों की चिंता है, लेकिन अमेरिकी मंशा के अनुरुप पड़ोसी देश चीन को वह इसमें अपनी भूमिका से चिढ़ाना नहीं चाहता। यही स्थिति जापान की भी है। इसी तरह से यूरोप अमेरिका के साथ जरूर खड़ा है, लेकिन यूरोप अमेरिका से सशंकित भी रहता है।
तुर्किए नाटो का सदस्य देश है, लेकिन तुर्किए के मिजाज में बदलाव आया है। अमेरिका भारत का सामरिक रणनीतिक साझीदार देश है, लेकिन अमेरिका और भारत के बीच में पिछले दशक वाली भरोसे की स्थिति में कमजोरी महसूस की जा रही है। इसलिए ऐसा नहीं है कि केवल रूस-चीन के गुट में आपसी विरोधाभास है। यह दोनों तरफ है। अगर इसे भारत के संदर्भ में देशा जाए तो भारत हमेशा से बहुध्रुवीय व्यवस्था का समर्थक रहा है। अर्थ यह कि अमेरिका के सुपर पॉवर की स्थिति को अब चुनौती देने की खुली कोशिश होने लगी है। अमेरिका के लिए दुविधा की स्थिति भी है। वहां राष्ट्रपति के चुनाव होने हैं। 5 नवंबर को वोटिंग होनी है। माना जा रहा है कि इसलिए अमेरिका तमाम अंतरराष्ट्रीय मामले में जरूरत से अधिक सावधानी बरतकर चल रहा है।
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ईरान ने इस्राइल पर एक अक्तूबर को 180 मिसाइलों से हमला किया था। एके मिश्रा कहते हैं कि आम तौर पर इस्राइल इस तरह के हमलों की प्रतिक्रिया में जरा भी न तो संकोच करता है और न ही समय लेता है, लेकिन इस्राइल समय ले रहा है। यह अनायास नहीं है। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ईरान की मौजूदगी और दुनिया की रूस और चीन जैसी महाशक्तियों के ईरान के राष्ट्राध्यक्ष के साथ दिखाई दे रहे समीकरण ने भी संदेश देने की कोशिश है।
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इस्राइल के पास अब सीक्रेट क्या है?
सामरिक और रणनीतिक मामलों के जानकार का कहना है कि इस्राइल के लिए तीन चार घटनाक्रम बहुत चौकाने वाले हैं। पहला यह कि ईरान के हाइपरसोनिक प्रक्ष्येपा इस्राइल के सुरक्षा कवच के भरोसे को तोड़ते हुए उसकी जमीन पर नुकसान करने में सफल रहे। दूसरा, उसके सुरक्षा कवच आइरन डोम का उसके दुश्मनों ने तोड़ निकाल लिया है। तीसरा, घटनाक्रम थोड़ा और गंभीर है। जिस तरह से इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतेन्याहू के आवास को निशाना बनाया गया, वह भी कम चौकाने वाला नहीं है। जबकि अभी तक इस्राइल के सुरक्षा कवच, उसके अंडर कवर आपरेशन, तकनीकी कौशल ही चौंकाते रहे हैं। अब उसे अमेरिकी रक्षा कवच, सैन्य ताकत, हथियार और सहयोग की खुलकर (निर्भरता) जरूरत पड़ रही है। मिश्रा कहते हैं कि इससे इस्राइल के रणनीतिकार अपनी जमीन की तरफ बढ़ रहे खतरे की गंभीरता का आकलन कर रहे हैं। उन्हें भी साफ दिखाई दे रहा है कि उनके दुश्मन के पीछे लोग खड़े हैं।
शैडो बॉक्सिंग के स्टेट वॉर में बदलने का बढ़ रहा है खतरा
विदेश मालों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार रंजीत कुमार कहते हैं कि अब मध्य एशिया की स्थिति महाशक्तियों के आपसी खेल में पेंचीदा हो रही है। अभी तक इस्राइल से फिलिस्तीन का संगठन हमास लड़ाई लड़ रहा था। हमास का साथ लेबनान में ईरान के सहयोग से खड़ा हुआ संगठन हिजहुल्लाह दे रहा था। यमन के हूती विद्रोही रेड सी(भूमध्य सागर) में चुनौती दे रहे थे। इराक और सीरिया की शिया मिलिशिया के साथ देने तक ही सब सीमित था। लेकिन एक अक्टूबर को ईरान ने इस्राइल पर सीधा हमला बोलकर अमेरिका और इस्राइल दोनों को चुनौती दे दी है। पूर्व राजनयिक एसके शर्मा भी इससे सहमत हैं।
एसके शर्मा कहते हैं कि इस्राइल के लेबनान, हमास, हूती पर सैन्य कार्रवाई करने में कोई बड़ा खतरा नहीं है, लेकिन ईरान द्वारा दागी गई मिसाइल पर प्रतिक्रिया बहुत गंभीर स्थिति पैदा कर सकता है। इससे अपनी आत्मरक्षा में ईरान प्रतिक्रिया देगा। जवाबी कार्रवाई कर सकता है। इससे देशों के बीच में युद्ध छिड़ जाने की स्थिति आ जाएगी। अमेरिकी रक्षा और सुरक्षा एजेंसियों को अब इसका एहसास हो चुका है कि ईरान के पीछे भी कोई खड़ा है। हालांकि रंजीत कुमार कहते हैं कि दुनिया में अमेरिका सुपर पावर है। उसके साथ यूरोप समेत तमाम देश मजबूती से खड़े हैं। उनमें आपसी विरोधाभास बहुत कम है, रूस के साथ खड़े नजर आ रहे देशों के बीच में स्थिति थोड़ा अलग है।
क्या सच में गड़बड़ा रहा है दुनिया में अमेरिका का सुपर पॉवर गणित?
पूर्व विदेश सचिव अमर उजाला से विदेश बातचीत में कहते हैं कि चीन और रूस जैसे देश अमेरिका की नाक नीची करना चाहते हैं। अमेरिका प्रशासन पर दुनिया में अपनी बादशाहत बचाए रखने का भारी दबाव है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अमेरिका को लेकर पहले वाली बात नहीं रही। पूर्व एयर वाइस मार्शल का कहना है कि अमेरिका ने बड़ी कूटनीतिक चाल चलकर क्वॉड (अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, आस्ट्रेलिया) फोरम का गठन किया था, लेकिन यह अभी भी अमेरिकी दांव भर रह गया है। रंजीत कुमार भी मानते हैं कि क्वॉड को लेकर भारत के पास अपने हितों की चिंता है, लेकिन अमेरिकी मंशा के अनुरुप पड़ोसी देश चीन को वह इसमें अपनी भूमिका से चिढ़ाना नहीं चाहता। यही स्थिति जापान की भी है। इसी तरह से यूरोप अमेरिका के साथ जरूर खड़ा है, लेकिन यूरोप अमेरिका से सशंकित भी रहता है।
तुर्किए नाटो का सदस्य देश है, लेकिन तुर्किए के मिजाज में बदलाव आया है। अमेरिका भारत का सामरिक रणनीतिक साझीदार देश है, लेकिन अमेरिका और भारत के बीच में पिछले दशक वाली भरोसे की स्थिति में कमजोरी महसूस की जा रही है। इसलिए ऐसा नहीं है कि केवल रूस-चीन के गुट में आपसी विरोधाभास है। यह दोनों तरफ है। अगर इसे भारत के संदर्भ में देशा जाए तो भारत हमेशा से बहुध्रुवीय व्यवस्था का समर्थक रहा है। अर्थ यह कि अमेरिका के सुपर पॉवर की स्थिति को अब चुनौती देने की खुली कोशिश होने लगी है। अमेरिका के लिए दुविधा की स्थिति भी है। वहां राष्ट्रपति के चुनाव होने हैं। 5 नवंबर को वोटिंग होनी है। माना जा रहा है कि इसलिए अमेरिका तमाम अंतरराष्ट्रीय मामले में जरूरत से अधिक सावधानी बरतकर चल रहा है।
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