किश्तवाड़ के जंगल आतंकियों का नया अड्डा: हमला कर जंगलों में गायब हो जाते आतंकी, दच्छन-छात्रू बन रहा पनाहगार
किश्तवाड़ के दच्छन, नागसेनी और छात्रू के घने जंगल आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगार बनते जा रहे हैं, जहां से वे हमले कर छिप जाते हैं। सुरक्षाबलों के कई सर्च ऑपरेशन और मुठभेड़ों के बावजूद आतंकियों की सक्रियता बनी हुई है।
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किश्तवाड़ के दच्छन, नागसेनी, छात्रू के घने जंगल आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगार बन रहे हैं। जिले में सक्रिय आतंकी, हमले के बाद इन्हीं जंगलों में गायब हो रहे हैं। सुरक्षाबलों के लिए इनकी खोज चुनौती और पहली बनती जा रही है। आतंकी सुरक्षित ठिकानों से बाहर निकलकर हमले करते हैं, फिर वापस वहां चले जाते हैं।
जैश और लश्कर की मौजूदगी से बढ़ी चिंता
किश्तवाड़ जिले में लंबे समय से आतंकी सक्रिय हैं। लंबे समय से इनका तलाश है, लेकिन सुरक्षाबलों को इसमें सफलता नहीं मिल रही है। इस साल अभी तक सुरक्षाबलों द्वारा जिले में ही आतंकियों की खोज के लिए एक दर्जन से अधिक सर्च अभियान चलाए हैं। इस बीच कई मुठभेड़ भी हुई, लेकिन जिले में आतंकियों की सक्रियता बनी हुई है।
किश्तवाड़ में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी आतंकी संगठनों से जुड़े आतंकी सक्रिय हैं। अप्रैल से अभी तक तीन मुठभेड़ हो चुकी हैं, जिसमें आतंकी को मौत के घाट उतारा गया है। सुरक्षा एजेंसियों ने जिले के घने जंगलों में सक्रिय आतंकियों की खोज के लिए ऑपरेशन छात्रू भी चलाया था। इसमें सुरक्षा एजेंसियों का संयुक्त दल ड्रोन, डॉग स्क्वायड और आधुनिक उपकरणों की मदद से जंगलों की खाक छान रहे हैं।क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति चुनौतीपूर्ण
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90 के दशक के पुराने रूट फिर सक्रिय
क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण है। आतंकी फिर उन्हीं रूट का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिन्हें कभी 90 के दशक में इस्तेमाल किया जाता था। संवेदनशील इलाकों में सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ाई गई है। आतंकी हमले करने के बाद अपने सुरक्षित पनाह में दुबक जाते हैं, जिससे सुरक्षा एजेंसियों को उनकी स्टीक जानकारी नहीं मिल पा रही है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है डोडा, किश्तवाड़ के जंगलों में आतंकियों की मौजूदगी से इंकार नहीं किया जा सकता।
आतंकियों ने जंगलों में हाइड आउट बनाए हैं। पुरानी ढोक का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिन जंगलों में आतंकी सक्रिय हैं वहां हमारी मौजूदगी होनी चाहिए। यानी की हमारी पेट्रोलिंग होनी चाहिए या स्थायी पोस्ट होनी चाहिए। सीमा पार से घुसपैठ को रोकने के साथ-साथ अतिरिक्त जवानों की तैनाती करनी होगी। खुफिया तंत्र को मजबूत करना होगा। इन जंगलों में मौजूद खानाबदोश के साथ संपर्क रखना होगा ताकि हर गतिविधि की जानकारी मिली। सुशील पठानिया, सेवानिवृत्त कर्नल