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Jammu News: कश्मीरी संगीत और विरासत को पुनर्जीवित कर रहीं लोक गायिका मसर्रत
संवाद न्यूज एजेंसी, जम्मू
Updated Sun, 14 Sep 2025 01:47 AM IST
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लोक गायक अहजर हाजिनी। संवाद
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श्रीनगर। सॉन्ग्स ऑफ पैराडाइज, एक ऐसी फिल्म जो कश्मीर की पहली गायिका राज बेगम पर बनाई गई। एक शाहकार गायिका के किरदार के गानों को आवाज देना अपने आप में बहुत बड़ी बात है। इस फिल्म ने मसर्रत-उन-निसा को एक नई पहचान दी है। कश्मीरी संगीत और विरासत को सहेज रहीं युवा गायिका अपने सफर के बारे में बताया।
श्रीनगर की मसर्रत ने बताया कि गाने का शौक तो उन्हें बचपन से था। शुरुआती पढ़ाई चरार ए शरीफ गवर्नमेंट हाई स्कूल और कॉलेज राजकीय कन्या महाविद्यालय था। उनके भाई शहबाज गायक हैं, पांचवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान तो उन्हें भी शौक लगा। शुरू में नातें और कलाम गाती थी। काफी नात प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है। मैं और मेरे भाई घर पर ही गाने रिकॉर्ड करते थे, रिकॉर्ड करते करते अभ्यास हुआ। उनके साथ काम करते करते इसमें इंट्रेस्ट बढ़ा।
वर्ष 2016 में सामापा कार्यक्रम के दौरान पंडित अभय रुस्तम सोपोरी से मुलाकात हुई। उन्होंने प्रतिभा को पहचाना और मुझे ट्रेनिंग देना शुरू किया। परिवार खास तौर से पिता का काफी सपोर्ट मिला। सॉन्ग्स ऑफ पैराडाइज से मिली पूरे कश्मीर में पहचान मिली।
आलोचना के बाद भी नहीं हारी हौसला
मसर्रत ने बताया कि उनका स्ट्रगल काफी रहा है जैसे फिल्म में दिखाया भी गया है कि उसमें राज बेगम जी को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। अभी भी उस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। पिता सहित परिवार ने काफी सपोर्ट किया लेकिन आलोचना काफी होती रही कि लड़की से गवाते हैं। काफी लड़कियां आ रही हैं इस फील्ड में। शुरुआत में काफी कुछ सुनना और सहना पड़ता है। क्यों करना है, यह कौन सा कॅरिअर है, इसमें क्या बन सकती हो। कश्मीर में गायन को कोई प्रोफेशन नहीं माना जाता। आगे बढ़े तो यह चीजें अब काफी कम होती जा रही हैं। कोई मुकाम मिलता है तो आलोचनाएं कम हो जाती हैं।
लोक गायन को समकालीन बनाया
लोक गायक अजहर हाजिनी ने बताया कि हमारे नौजवान कश्मीरी में गाते हैं, दिल से गाते हैं। हमें चाहिए की युवा जो अपनी तहजीब और संस्कृति को जिंदा रखे हैं उनका हौसला बढ़ाएं। सॉन्ग्स ऑफ पैराडाइज के निर्माता शफात काजी, निर्देश दानिश मोहम्मद, संगीतकार अभय रुस्तम सोपोरी ने मसर्रत को पहचान दी है। मसर्रत को अब सांस्कृतिक और लोक गायक के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने कश्मीरी लोक गायन और समकालीन स्टाइल को उन्होंने बेहतरीन तरीके से मिलाया है।

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श्रीनगर की मसर्रत ने बताया कि गाने का शौक तो उन्हें बचपन से था। शुरुआती पढ़ाई चरार ए शरीफ गवर्नमेंट हाई स्कूल और कॉलेज राजकीय कन्या महाविद्यालय था। उनके भाई शहबाज गायक हैं, पांचवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान तो उन्हें भी शौक लगा। शुरू में नातें और कलाम गाती थी। काफी नात प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है। मैं और मेरे भाई घर पर ही गाने रिकॉर्ड करते थे, रिकॉर्ड करते करते अभ्यास हुआ। उनके साथ काम करते करते इसमें इंट्रेस्ट बढ़ा।
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वर्ष 2016 में सामापा कार्यक्रम के दौरान पंडित अभय रुस्तम सोपोरी से मुलाकात हुई। उन्होंने प्रतिभा को पहचाना और मुझे ट्रेनिंग देना शुरू किया। परिवार खास तौर से पिता का काफी सपोर्ट मिला। सॉन्ग्स ऑफ पैराडाइज से मिली पूरे कश्मीर में पहचान मिली।
आलोचना के बाद भी नहीं हारी हौसला
मसर्रत ने बताया कि उनका स्ट्रगल काफी रहा है जैसे फिल्म में दिखाया भी गया है कि उसमें राज बेगम जी को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। अभी भी उस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। पिता सहित परिवार ने काफी सपोर्ट किया लेकिन आलोचना काफी होती रही कि लड़की से गवाते हैं। काफी लड़कियां आ रही हैं इस फील्ड में। शुरुआत में काफी कुछ सुनना और सहना पड़ता है। क्यों करना है, यह कौन सा कॅरिअर है, इसमें क्या बन सकती हो। कश्मीर में गायन को कोई प्रोफेशन नहीं माना जाता। आगे बढ़े तो यह चीजें अब काफी कम होती जा रही हैं। कोई मुकाम मिलता है तो आलोचनाएं कम हो जाती हैं।
लोक गायन को समकालीन बनाया
लोक गायक अजहर हाजिनी ने बताया कि हमारे नौजवान कश्मीरी में गाते हैं, दिल से गाते हैं। हमें चाहिए की युवा जो अपनी तहजीब और संस्कृति को जिंदा रखे हैं उनका हौसला बढ़ाएं। सॉन्ग्स ऑफ पैराडाइज के निर्माता शफात काजी, निर्देश दानिश मोहम्मद, संगीतकार अभय रुस्तम सोपोरी ने मसर्रत को पहचान दी है। मसर्रत को अब सांस्कृतिक और लोक गायक के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने कश्मीरी लोक गायन और समकालीन स्टाइल को उन्होंने बेहतरीन तरीके से मिलाया है।
लोक गायक अहजर हाजिनी। संवाद