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Kishtwar disaster: भूस्खलन या ग्लेशियर के मलबे से भी हादसा संभव, नाले के नजदीक थी बसावट... इसलिए बह गया सब कुछ

प्रवेश कुमारी, अमर उजाला, जम्मू Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Fri, 15 Aug 2025 06:10 AM IST
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सार

बेशक इसे बादल फटने का नतीजा बताया जा रहा है, पर कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार चिशोती नाले में टूटकर गिरा ग्लेशियर का मलबा या भूस्खलन हादसे की वजह हो सकते हैं। 

Kishtwar disaster: Accident is also possible due to landslide or glacier debris
किश्तवाड़ में बादल फटने से भारी तबाही - फोटो : PTI
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आखिर वैज्ञानिकों की आशंका सच साबित हुई। वे लगातार जम्मू-कश्मीर में भी उत्तराखंड जैसी तबाही की आशंका जता रहे थे। बेशक इसे बादल फटने का नतीजा बताया जा रहा है, पर कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार चिशोती नाले में टूटकर गिरा ग्लेशियर का मलबा या भूस्खलन हादसे की वजह हो सकते हैं। 

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  • वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान, देहरादून के पूर्व ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. डीपी डोभाल के अनुसार, अभी तक जो तस्वीर सामने आई है, उससे नाले में लैंडस्लाइड होने की आशंका है। हो सकता है कि इसकी वजह से नाला चोक हो गया हो और लगातार बारिश से उसमें फ्लैश फ्लड आ गया। 
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  • एक आशंका यह भी है कि ग्लेशियर से मलबा टूटकर नाले में गिरा हो। लगातार बारिश से ग्लेशियर पिघलते हैं। ऐसे में तेज ढलान पर वेग इतना होता है कि वह सब कुछ बहा ले जाता है। यह भी हादसे की वजह हो सकती है। डोभाल के अनुसार अभी ये सब प्रारंभिक आकलन हैं। जांच के बाद ही असल वजह सामने आ सकेगी। 
  • जम्मू विश्वविद्यालय के सुदूर संवेदन विभाग के अध्यक्ष प्रो. अवतार सिंह जसरोटिया के अनुसार बड़ी तबाही इसलिए हुई, क्योंकि चिशोती में बसावट नाले के एकदम करीब थी। पानी अपने साथ सबको बहा ले गया। 

तापमान में वृद्धि से बढ़ रहीं बादल फटने की घटनाएं 
पोलर साइंस पत्रिका में प्रकाशित नवीनतम शोध के अनुसार, वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण हिमालयी क्षेत्र में नमी और संवहन यानी कन्वेक्शन (ऊष्मा से ऊपरी वायुमंडल में उठने वाली हवा) की प्रक्रिया तेज हो गई है। गर्म हवाएं जब समुद्र से भारी मात्रा में नमी लेकर हिमालय की तलहटी तक पहुंचती हैं, तो पहाड़ इन हवाओं को ऊपर की ओर ले जाते हैं। इस प्रक्रिया को ओरोग्राफिक लिफ्ट कहा जाता है। इससे विशाल क्यूम्यलोनिम्बस नामक बादल बनते हैं, जो बारिश की बड़ी बूंदों को धारण कर सकते हैं। इससे नमी से भरी हुई हवा का प्रवाह ऊपर उठता है और बादल बड़ा होता जाता है। बारिश की कोई संभावना न होने के कारण, यह इतना भारी हो जाता है कि एक बिंदु पर यह फटने लगता है। ऊपर उठते समय जब यह नमी ठंडी हवाओं से मिलती है, तो तीव्र संघनन (कंडंजेशन) होता है और भारी वर्षा के रूप में गिरता है। 

जलवायु परिवर्तन की भूमिका
हिमालय में तापमान वृद्धि की दर वैश्विक औसत से अधिक है। इससे वाष्पीकरण बढ़ता है, वातावरण में नमी अधिक होती है व इससे भारी वर्षा की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से भी वायुमंडलीय नमी में वृद्धि होती है, जो स्थानीय स्तर पर अचानक बाढ़ की घटनाओं में योगदान देती है। पोलर साइंस के अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर कर रहा है, जिससे अल्ट्रा लोकलाइज्ड (अत्यधिक सीमित दायरे में होने वाली) वर्षा की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिन पर पूर्व चेतावनी देना अत्यंत कठिन है।

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