संवाद: बेटे-बेटी को जिम्मेदारी बांटने की आदत बचपन से ही सिखाएं माता-पिता, बेटियों को मिले उड़ान भरने का अवसर
अमर उजाला संवाद कार्यक्रम में महिलाओं और छात्राओं ने बेटा-बेटी में समानता, जिम्मेदारियों की साझेदारी और महिला सशक्तिकरण पर जोर देते हुए समाज में सोच बदलने की जरूरत बताई। सभी ने कहा कि बदलाव की शुरुआत घर से होनी चाहिए।

विस्तार
समाज में महिलाओं को सशक्त बनाए जाने की शुरुआत घर से होनी चाहिए। बेटे-बेटी में जिम्मेदारी बांटने की आदत माता -पिता बचपन से डालें तब जाकर यही बेटे व बेटियां बड़े होने पर अपनी सामाजिक व पारिवारिक जिम्मेदारियों को सही से निभा सकेंगे। मौजूदा दौर में घर व बाहर बदल रही कार्यशैली के बीच महिलाओं की भूमिका बदली है इसलिए उनकी जिम्मेदारियों को बांटने की जरूरत है। यह निष्कर्ष रहा सोमवार को आयोजित अमर उजाला संवाद में चर्चा का।

घर और कार्यालय में संतुलन बना रही हैं महिलाएं
संवाद में पहुंचीं विभिन्न वर्गों की महिलाओं और छात्राओं ने विस्तार से अपनी बात रखी। इनमें प्रमुख रूप से अधिवक्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, छात्राओं, ब्रह्मकुमारी समेत विभिन्न कार्यक्षेत्र में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करने वाली महिलाएं थीं।
सभी ने कहा कि घर व कार्यालय के बीच महिलाएं और बेटियां सामंजस्य बैठाकर चल रही हैं। जम्मू शहर की बात करें तो उन्होंने सोच में बदलाव की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि हमारी सामाजिक परिस्थितियां अभी भी पूरी तरह से नहीं बदल पाई हैं। बेटियों पर आज भी पढ़ाई पूरी करते ही शादी की दबाव डाला जाता है। संकोच आज भी उनके स्वभाव का हिस्सा है।
छात्रा माही और आकृदा ने कहा कि बेटियों के सपनों को पोषित करने की जिम्मेदारी समाज की है। बेटों की तरह बेटियों को भी घर पर अभिभावक उनकी इच्छा के अनुसार जीवन में फैसले लेने दें।
बेटों को भी घर पर हाथ बंटाना सिखाना जरूरी
घर पर बेटियों की तरह बेटों को भी रसोई के कामों में हाथ बंटाना सिखाना चाहिए। यह जरूरी नहीं कि हर काम सिर्फ बेटियां, बहू ही करें। महिलाओं को सशक्त बनाए जाने व उनकी इच्छाओं का सम्मान करने में छोटी-छोटी जरूरतों, कार्यों की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसकी शुरुआत घर से ही होनी चाहिए। यह कहना गलत है कि घर का काम सिर्फ बेटियों की जिम्मेदारी है।
माता-पिता के साथ सास-ससुर के प्रति भी समान प्रेम रखना होगा
कानून की आड़ में एक-दूसरे पर आक्षेप न लगाए जाएं। बहू को समझना होगा कि ससुराल उसका घर है। सास-ससुर भी उसके माता-पिता की तरह हैं। इनकी सेवा, सम्मान करना उसकी जिम्मेदारी के साथ कर्तव्य है। यही बात सास-ससुर पर भी है कि वह बहू के अधिकारों, उसकी इच्छाओं का सम्मान करें।
खुद को सशक्त करने की जिम्मेदारी बेटियों को लेनी होगी
घर पर रहकर खुद को सशक्त बनाने की दिशा में पहल करनी होगी। साबित करना होगा कि वह सभी काम कर सकती हैं जो बेटा कर सकता है या पुरुष कर सकता है। मन के अंदर कुछ करने का साहस व जज्बा बनाना होगा। तब जाकर समाज में आगे बढ़ सकेंगी। हाथ पर हाथ रखकर बैठना सही नहीं है। अपने लिए लड़ने की हिम्मत जुटानी होगी।
घरेलू हिंसा से निपटने के लिए कानून का लेना होगा सहारा
घरेलू हिंसा से निपटने के लिए बेटियों को कानून के बारे में बताना होगा। अपने अधिकार महिलाओं व बेटियों को कैसे मिलेंगे, इसके बारे में जागरूक करना होगा। उनके प्रति किसी भी तरह की हिंसा को रोकने के लिए कई सख्त कानून हैं। इनका ज्ञान होना आवश्यक है। यह तभी होगा जब महिलाएं सशक्त होंगी और अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगी। यह जज्बा खुद पैदा करना होगा।
इन सभी ने अपनी बात विस्तार से रखीसंवाद कार्यक्रम में वन स्टॉप सेंटर की पल्लवी शर्मा, मीनाक्षी, आर्टिस्ट शिवानी खजूरिया, भाजपा नेता अनु गुप्ता, उपाध्यक्ष भाजपा आशा गुप्ता, एडवोकेट किरन ठाकुर, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. देविंदर कौर, डाॅ. घारा चौधरी, ब्रह्मकुमारी बीके रामा रवी, ब्रह्मकुमारी बीके सुदर्शन, बीके नेहा, सीमा सहगल, छात्रा माही गुप्ता, आकिृदा महाजन, डाॅ. सुधा जामवाल, प्रोफेसर सुगंधा महाजन, एडवोकेट मीनू पाधा, प्रोफेसर गरिमा गुप्ता, डाॅ. प्रियंका मल्होत्रा आदि ने विचार रखे।