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Jharkhand: पीएम मोदी ने मन की बात में लिया गुमला के ओमप्रकाश साहू का नाम, संथाल की सिल्क साड़ियों की सराहना की
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, रांची/गुमला
Published by: हिमांशु प्रियदर्शी
Updated Sun, 27 Jul 2025 02:41 PM IST
सार
Gumla News: प्रधानमंत्री मोदी ने गुमला के ओमप्रकाश साहू की कहानी को साझा करते हुए कहा कि वह पहले नक्सलवाद की राह पर थे, लेकिन उन्होंने हिंसा का मार्ग छोड़कर मुख्यधारा में लौटने का साहसी फैसला लिया। पढ़ें पूरी खबर...।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
- फोटो : PTI
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विस्तार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 124वें संस्करण में झारखंड के दो प्रेरणादायक उदाहरणों का जिक्र करते हुए गुमला जिले के ओमप्रकाश साहू और संथाल परगना की हैंडलूम सिल्क साड़ियों की विशेष रूप से सराहना की। प्रधानमंत्री ने इन दोनों उदाहरणों को स्थानीय संसाधनों के प्रभावशाली उपयोग और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण का प्रतीक बताया।
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नक्सलवाद छोड़ मछली पालन से जुड़कर रच रहे बदलाव की कहानी
प्रधानमंत्री मोदी ने गुमला के ओमप्रकाश साहू की कहानी को साझा करते हुए कहा कि वह पहले नक्सलवाद की राह पर थे, लेकिन उन्होंने हिंसा का मार्ग छोड़कर मुख्यधारा में लौटने का साहसी फैसला लिया। आज वे मछली पालन के व्यवसाय से लाखों की आमदनी कर रहे हैं और दूसरों को भी आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दे रहे हैं। मोदी ने कहा कि अंधेरे से उजाले की ओर बढ़ने की यह मिसाल दिखाती है कि अगर किसी को अवसर और सही दिशा मिले, तो वह समाज के लिए बदलाव का वाहक बन सकता है।
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इस पहल से न केवल साहू समुदाय बल्कि पूरे गुमला जिले में ग्रामीणों की सोच में बदलाव आया है। पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर अब लोग जलस्रोतों का उपयोग कर मछली पालन जैसे स्थायी आजीविका साधनों को अपना रहे हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार भी बढ़ रहा है।
संथाल परगना की हैंडलूम सिल्क साड़ियों को बताया सांस्कृतिक धरोहर
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र की प्रसिद्ध सिल्क हैंडलूम साड़ियों का उल्लेख करते हुए कहा कि वहां की महिलाएं और कारीगर पारंपरिक बुनाई और रंगाई की कला को आज भी जीवित रखे हुए हैं। उन्होंने इसे भारत की सांस्कृतिक विरासत का सुंदर प्रतिबिंब बताया।
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पीएम मोदी ने लोगों से ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान के तहत संथाल की इन साड़ियों को अपनाने की अपील की और कहा कि इन साड़ियों को खरीदकर न केवल देश की संस्कृति को सहेजा जा सकता है, बल्कि उन कारीगरों को भी आर्थिक सहयोग मिलेगा जो पीढ़ियों से इस कला को जीवित रखे हुए हैं।