Tips: आइंस्टीन ने कहा था, 'समस्या से ज्यादा समाधान पर ध्यान दें', क्योंकि जो दिखता है, वह सही नहीं भी हो सकता
The Conversation: आइंस्टीन का भी कहना था कि समाधान पर कम और समस्या को समझने पर ज्यादा समय देना चाहिए। यह समस्याएं अक्सर जटिल होती हैं, इसलिए जो दिखाई दे रहा है, वही असली समस्या हो, यह जरूरी नहीं।
विस्तार
Career Tips: कई बार ऐसा होता है कि समस्या आते ही हम जल्दबाजी में समाधान ढूंढने लगते हैं, लेकिन हड़बड़ी के कारण असली समस्या समझ नहीं पाते और समाधान गलत दिशा में चला जाता है। आइंस्टीन का भी कहना था कि समाधान पर कम और समस्या को समझने पर ज्यादा समय देना चाहिए। यह समस्याएं अक्सर जटिल होती हैं, इसलिए जो दिखाई दे रहा है, वही असली समस्या हो, यह जरूरी नहीं।
असल में, पहले समस्या के लक्षणों और उसके मूल कारणों को गहराई से समझना जरूरी है। इसे ही 'समस्या निरूपण' कहा जाता है। जब समस्या सही तरह समझ आती है, तभी समाधान भी सटीक बनता है। इसलिए जटिल समस्याओं को समझना एक बार की बात नहीं, बल्कि कई चरणों में पूरा होने वाली प्रक्रिया है, जिस पर ध्यान देना आवश्यक है।
शुरुआती संकेतों को पहचाने
समस्या का पता लगना पहला और सबसे महत्वपूर्ण चरण है। इसमें हम उन शुरुआती संकेतों या लक्षणों को पहचानते हैं, जो बताते हैं कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है। ये लक्षण सीधे समस्या नहीं होते, लेकिन संकेत देते हैं कि भीतर कोई बड़ा कारण छिपा है।
उदाहरण के लिए, उत्पादन समय पर पूरा न होना, बिक्री लक्ष्य चूक जाना या काम का बार-बार लेट होना, ये सभी सिर्फ शुरुआती चेतावनियां हैं कि समस्या मौजूद है। इस चरण में हमारा काम सिर्फ इतना है कि क्या-क्या गलत या असामान्य हो रहा है, इसे ध्यान से नोटिस करें, ताकि आगे चलकर समस्या को सही दिशा में समझा और हल किया जा सके।
सभी दिशाओं पर हो नजर
इस चरण में आप समस्या को सिर्फ एक लक्षण के आधार पर नहीं समझते, बल्कि उससे जुड़े सभी संकेतों को इकट्ठा करके पूरे पैटर्न को पहचानने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, आपको यह दिख सकता है प्रबंधक की सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने के बावजूद टीम लक्ष्य हासिल नहीं कर पा रही है।
इससे स्पष्ट होता है कि समस्या कई दिशाओं से उभर रही है और केवल सतही कारणों से नहीं समझी जा सकती। यही वजह है कि स्थिति की सही समझ पाने के लिए संगठन के विभिन्न स्तरों पर काम करने वाले लोगों की राय, अनुभव और दृष्टिकोण बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। जब आप इन सभी पहलुओं को एक साथ देखते हैं, तभी समस्या की वास्तविक जड़ समझ में आती है।
लक्षणों को एक साथ जोड़ें
अंतिम चरण में आप समस्या के सभी दिखाई देने वाले लक्षणों को अलग-अलग नहीं, बल्कि एक साथ जोड़कर देखते हैं, ताकि उनके पीछे छिपी असली वजह तक पहुंचा जा सके। इसका उद्देश्य यह पहचानना होता है कि कौन-सा मूल कारण सभी लक्षणों को तार्किक रूप से समझा रहा है।
जैसे पजल के टुकड़ों को जोड़ने पर पूरा चित्र साफ होता है, वैसे ही हर संकेत को मिलाकर आप समझ पाते हैं कि समस्या की जड़ वास्तव में कहां है। जब मूल कारण सही तरह से पहचान लिया जाता है, तभी समाधान सही दिशा में बनाया जा सकता है और समस्या को दोबारा होने से रोका जा सकता है।
-द कन्वर्सेशन