सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   Kolkata ›   Ram Mandir: Kothari brothers of Kolkata were the first to make the supreme sacrifice in Kar sewa

Ram Mandir: राम मंदिर निर्माण में कोलकाता के कोठारी भाइयों ने सबसे पहले दिया था सर्वोच्च बलिदान

एन. अर्जुन, कोलकाता Published by: Harendra Chaudhary Updated Mon, 22 Jan 2024 07:02 PM IST
सार
कोठारी भाइयों की बहन पूर्णिमा ने बताया जिस जत्थे के सदस्यों ने अयोध्या में प्रवेश किया, उसी दिन कार सेवा थी। जब वे कार सेवा के लिए गए, तो उनके चेहरे पर थकान का नामों-निशान तक नहीं था। गजब का उत्साह और जज्बात था। कोई कह नहीं सकता था कि ये पांच दिन तक चल कर यहां पहुंचे होंगे...
विज्ञापन
loader
Ram Mandir: Kothari brothers of Kolkata were the first to make the supreme sacrifice in Kar sewa
Purnima Kothari - फोटो : Amar Ujala

विस्तार
Follow Us

करीब पांच सौ वर्ष के संघर्ष के बाद रामलला अपने मंदिर में विराजमान हो गए। इसके पीछे हजारों-हजारों राम भक्तों ने बलिदान दिया। इसमें कोलकाता के कोठारी भाइयों (राम कुमार कोठारी और शरद कोठारी) ने भी अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। वह दिन था दो नवंबर 1990। कार सेवकों की दो टोलियां राम का नाम लेते हुए आगे बढ़ रही थीं...सामने थी विशाल पुलिस और पुलिस के बैरिकेड्स...बर्बर पुलिस ने बिना चेतावनी के राम भक्तों पर आंसू गैस के गोले छोड़े और फिर लाठाचार्ज कर दिया। देखते ही देखते भगदड़ मच गई और फिर पुलिस ने फायरिंग कर दी।

राम भक्तों ने आसपास के घरों में शरण ली, लेकिन कोलकाता के राम भक्त राम कुमार और शरद कोठारी (लक्ष्मण) पुलिस की नजर में आ चुके थे। पुलिस ने लक्ष्मण को घर से बाहर निकाला और फिर सीने से सटा कर गोली दाग दी, राम भक्त लक्ष्मण वहीं ढेर हो गए। राम ने छोटे भाई को घसीटते हुए ले जाते देखा, तो वे घर से निकल कर पुलिस के पास पहुंचे और भाई को छोड़ने की अपील की। लेकिन शासन के आदेश से मद में चूर पुलिस ने भी राम के सिर में भी जीरो प्वाइंट से गोली मार दी।

शिला पूजन के माध्यम से अयोध्या में कार सेवा की शुरुआत हुई। उसमें विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की तरफ से एक नियम बनाया था कि एक घर से एक ही बेटा जाएगा। किसी भी घर से दो भाई नहीं जाएंगे। जिनके घर में तीन-चार भाई हों, उसमें से भी दो भाइयों के जाने का नियम नहीं था। लेकिन मेरे तो दो ही भाई थे और मैं अकेली उनकी बहन। लेकिन दोनों में से कोई पीछे हटने को तैयार नहीं था। सबने समझाया लेकिन वे दोनों नहीं माने। दोनों के अकाट्य तर्क के सामने सब झुक गए। दोनों भाइयों ने अपना-अपना नाम दे दिया। एक दिन आया जब वे प्रभु राम के काज के लिए संग-साथियों के साथ अयोध्या के लिए निकल गए...कहते हुए कुछ देर के लिए रुक जाती हैं, भावुक हो जाती हैं...राम मंदिर आंदोलन में सबसे बलिदान होने वाले कोलकाता के कोठारी भाइयों (राम कुमार कोठारी और शरद कोठारी) की बहन पूर्णिमा कोठारी।

ढब-ढब झरते आंसूओं के बीच कहती हैं, माता-पिता की दो संतान (बेटे), दोनों ही राम के काज आए। वे फिर कभी सशरीर नहीं लौट कर नहीं आए। तत्कालीन यूपी पुलिस ने दोनों की गोली मार कर निर्मम हत्या कर दी। उनके बलिदान ने सरकारें हिल गईं। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया, 22 जनवरी को भव्यता के साथ रामलला अपनी जगह प्रतिष्ठित हो रहे हैं, अमृत की वर्षा हो रही है। भले ही वे हमारे साथ भौतिक शरीर के साथ उपस्थित नहीं हैं, लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे दोनों भाई स्वर्ग से हमारे राम दरबार में उपस्थित रहेंगे।

पूर्णिमा अतीत को याद करते हुए कहती हैं, जब हर घर से एक बेटे का आह्वान हुआ, तो मेरे दोनों भाई कार सेवा में जाने के लिए तैयार हो गए। लेकिन आह्वान तो केवल एक बेटे का था। इस पर परिवार और संग-साथियों के साथ विचार-विमर्श हुआ कि कौन जाएगा। बड़े भाई राम कुमार (जिनकी की उम्र उस वक्त करीब 22 वर्ष थी) ने कहा कि वे कार सेवा में जाएंगे। क्योंकि राम के काम में राम तो जाएगा ही। इस पर छोटे भाई शरद कुमार (जिनका कि नाम पहले लक्ष्मण था) ने तर्क दिया कि जहां राम जाएंगे, वहां लखन तो जाएगा ही। लक्ष्मण के तर्कों के सामने सबने हथियार डाल दिए, सबको उनके सामने झुकना पड़ा। इसके बाद दोनों ने कार सेवा के लिए अपना नाम दे दिया।

लक्ष्मण से ऐसे बने शरद

पूर्णिमा कोठारी ने बताया कि हम तीन भाई बहन हैं। राम सबसे बड़े, उसके बाद लक्ष्मण और फिर मैं (पूर्णिमा कोठारी)। राम कुमार कोठारी (जन्म 27 जुलाई, 1968 में हुआ था।) उसके बाद मेरे दूसरे बड़े भैया लक्ष्मण का जन्म 14 अक्तूबर, 1970 को हुआ था। उस दिन शरद पूर्णिमा थी। उनका नाम परिजनों ने लक्ष्मण रखा। लेकिन इनके जन्म के एक वर्ष बाद मेरा जन्म हुआ, उस दिन भी शरद पूर्णिमा ही थी। मेरे जन्म के बाद माता-पिता ने मेरा नाम पूर्णिमा रखा और भैया का नाम बदल कर शरद कर दिया। इस तरह से हम शरद-पूर्णिमा हुए। इसके बाद भैया शरद के नाम से पहचाने जाने लगे।

कोलकाता से अयोध्या जाने वाली सभी ट्रेनें थीं रद्द

इस तरह से सबके मना करने के बावजूद भी सबको अपने तर्क से पराजित करके दोनों भाई अयोध्या में कार सेवा के लिए निकल पड़े। वह दिन था 22 अक्तूबर, 1990 का दिन। इस दिन कोलकाता से अयोध्या जाने वाली सभी ट्रेनें कैंसिल थीं। लेकिन वे हार मानने वालों में से नहीं थे। दोनों वाराणसी जाने वाली किसी ट्रेन में बैठ गए। लेकिन वे वाराणसी से पहले ही उतर गए, क्योंकि वाराणसी में भी कार सेवकों की धर-पकड़ हो रही थी। दोनों सड़क मार्ग से आजमगढ़ के पास तक गए। उसके बाद उन्होंने सड़क मार्ग भी छोड़ दिया। गांव और खेत-खलियानों से होते हुए करीब 200 किलोमीटर का पैदल सफर करके 30 अक्तूबर, 1990 के दिन, कोलकाता से गए अन्य संगियों के साथ उन्होंने भी अयोध्या में प्रवेश किया।

पूर्णिमा ने बताया जिस जत्थे के सदस्यों ने अयोध्या में प्रवेश किया, उसी दिन कार सेवा थी। जब वे कार सेवा के लिए गए, तो उनके चेहरे पर थकान का नामों-निशान तक नहीं था। गजब का उत्साह और जज्बात था। कोई कह नहीं सकता था कि ये पांच दिन तक चल कर यहां पहुंचे होंगे। उनमें इतना जोश था कि हम तो पहुंच गए, हमको कार सेवा करनी है।

गुंबद पर शरद ने पहराया था पहला ध्वज

जब कार सेवा का आह्वान हुआ, तो आगे बढ़चढ़ कर दोनों भाइयों ने भाग लिया। कार सेवा के लिए जब पहुंचे, तो देखा कि बैरिकेड्स लगे हुए हैं। शरद कुमार बैरिकेड्स के पास खड़े पुलिस वालों को भी समझाते थे, कि क्यों रोक रहे हो। राम काज में हम भी हिंदू, तुम भी हिंदु। राम का काज करने आए हैं, हमको मत रोको। और जब वहां पर भगदड़ मची। बैरिकेड्स तोड़ने के बाद गुंबद पर चढ़ने वालों में राम कुमार कोठारी पहले व्यक्ति थे। सबसे दाहिने वाले गुंबद पर ऊपर चढ़ कर भगवा ध्वज लहराने वाले शरद कोठारी थे। शायद तभी वे दोनों भाई पुलिस के टारगेट में आ गए होंगे। उस दिन शाम को झूठी खबर फैलाई गई कि कार सेवा नहीं हुई और ढांचे को कोई क्षति नहीं हुई है। कुछ अखबारों छपने के बाद भी अगले दिन बंटने नहीं दिया गया। कार सेवक झूठी खबरों से थोड़े आक्रोशित हुए, जो स्वाभाविक था।

...और लक्ष्मण के सीने में पुलिस ने दाग दी गोली

इसके बाद 31 अक्तूबर, 1990 को जब धर्म संसद हुई, उसमें यह तय की गई कि 2 नवंबर, 1990 को कार्तिक पूर्णिमा है। उस दिन फिर से प्रतीकात्मक कार सेवा होगी। 30 अक्तूबर 1990 को पहली कार सेवा हुई थी और 2 नवंबर, 1990 को दूसरी कार सेवा हुई। कार्तिक पूर्णिमा के दिन दिगंबर अखाड़े से विनय कटियार के नेतृत्व में एक टोली चली और उमा भारती के नेतृत्व में दूसरी टोली सरयू नदी की तरफ से चली थी। विनय कटियार वाली टोली में मेरे दोनों बड़े भैया थे...कहते हुए थोड़ा देर के लिए मौन हो जाती हैं पूर्णिमा कोठारी...फिर लंबी सांस लेकर कहती हैं, हनुमान गढ़ी के सामने वाली गली में पुलिस ने बैरीकेट्स करके सबको रोक लिया। सभी लोग अपने-अपने स्थान में बैठ गए और राम भजन गाने लगे। पुलिस ने अचानक आंसू गैस के गोले और लाठी चार्ज कर दिया। कार सेवकों पर पुलिस बर्बर अत्याचार करने लगी। किसी पूर्व चेतावनी के पुलिस के कृत्य पर भगदड़ मच गई और पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी।

पास में ही एक घर था, कई कार सेवकों के साथ दोनों भाइयों ने उस घर में शरण ली। लगता है ये दोनों भाई पुलिस की नजर में आ गए थे। पुलिस ने भैया शरद कोठारी को घर से खींच कर बाहर निकाला। भर्राते हुए स्वर में पूर्णिमा कहती हैं, बाहर निकाल कर पुलिस ने सीने से सटा कर, बहुत नजदीक से शरद भैया को गोली मार दी। गोली लगने के बाद शरद भैया वहीं जमीन पर गिर गए। निर्मम पुलिस उनको उठाने की बजाए घसीट कर ले जाने लगी। इस कार सेवा में आने से पहले दोनों भाइयों ने भगवा पट्टिका खरीदा था। उस पर अपने हाथों से कफन लिखकर अपने सिर पर बांध लिया। पूछने पर कहते, राम काज करने आए हैं, चाहे जो हो हमें तो पूरा करना है।

...और फिर राम ने लक्ष्मण के लिए खाई गोली

अपने को संभालते हुए पूर्णिमा कहती हैं, इसकी जानकारी बड़े भैया राम को लगी। उन्होंने खिड़की से देखा कि पुलिस बहुत ही बर्बरता के साथ छोटे भाई लक्ष्मण को घसीटते हुए ले जा रही है। वे इसे देख नहीं पाए और तुरंत निकल कर बाहर आए...और दौड़ते हुए अपने छोटे भाई को पकड़कर पुलिस से कहा, मेरे भाई को कहां ले जा रहे हो। छोड़ दो इसे। पुलिस तो सरकारी आदेश के मद में चूर थी, उसने एक न सुनी। पुलिस वालों ने मेरे बड़े भैया के सिर पर बंदूक टिका दी, और जीरो प्वाइंट से यह वॉर्निंग दी कि हट जाओ, नहीं तो तुम्हारी खोपड़ी उड़ा देंगे। तुम्हें गोली मार देंगे। लेकिन बड़े भैया हनुमान की तरह अड़ गए, लेकिन भी छोटे भाई को बड़े भाई ने छोड़ा नहीं। पुलिस ने बर्बर तरीके से उनके सिर में गोली मार खोपड़ी फाड़ दी और वे वहीं पर ढेर हो गए। यह घटना 2 नवंबर, 1990 कार्तिक पूर्णिमा के दिन की है। एक ही दिन में राम भक्त मेरे दोनों भैया बलिदान हो गए, कहते हुए भावुक हो जाती हैं पूर्णिमा कोठारी।

राम शरद कोठारी संघ की अयोध्या में लंगर सेवा

उन्होंने बताया कि इसके बाद सभी ने मिलकर 1991 में दोनों की स्मृति में राम शरद कोठारी स्मृति संघ नाम से संस्था बनाई। संघ पूरे साल रक्तदान शिविर, भोजन वितरण, बच्चों को किताबों का वितरण, प्रतिभा सम्मान सहित कई कार्यक्रम चलाती है। हमारे इन कार्यक्रमों में मोहन भागवत, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे लोग आशीर्वाद देने आते हैं। सौभाग्य से रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान हमको अयोध्या में लंगर लगाने का सौभाग्य मिला है। हमारे कार्यकर्ता 14 जनवरी से यहां पर सेवा में लगे हैं।

राम गंभीर तो लक्ष्मण थे थोड़े उग्र

पूर्णिमा कोठारी के साथ बैठे शरद कोठारी के बचपन के दोस्त अशोक जायवासल कहते हैं, हम दोनों बचपन से ही एक साथ शाखा में जाते थे। एक साथ कबड्डी खेलते थे। वे मेरे मुख्य शिक्षक थे। मैं गण शिक्षक था। बड़े भाई राम कोठारी दूसरे संघ की शाखा के मुख्य शिक्षक थे। जायसवाल बताते हैं, बड़े भाई राम थोड़े गंभीर और शांत स्वाभाव के थे। छोटे भाई शरद कुमार थोड़े चंचल और थोड़े उग्र स्वाभाव के थे। शरद लोगों से मिलना और जल्द ही लोगों से घुल-मिल जाते थे। उनका व्यक्तित्व मधुर स्वभाव का था। राम जिस भी घर में जाते थे, वे गंभीर छाप छोड़ते थे।

जागरण के समय में शरद 20 साल के थे और राम कुमार 22 साल के थे। बाल्यकाल और तरुण अवस्था में भी उश्रृंखलता कहीं भी नहीं थी। संघ की शाखाओं के माध्यम से जो गृह संपर्क होता है, उसमें दोनों ही पूर्ण रूप से हिस्सा लेते थे। सभी को वे अपने परिवार के सदस्य की तरह ही मानते थे। अगर उनको भूख लगी है, तो हमारी माता जी से मांग कर भोजन करने में संकोच नहीं करते थे। वे बहुत ही मिलनसार व्यक्ति थे। जब राम शिला पूजन शुरू हुआ, उस समय उनका परिवार कोलकाता से दूर बेलूर में किराए के मकान में रहता था। उनके रग-रग में देश भक्ति बसी हुई थी। कॉलेज के बाद भी वे लोगों के साथ मिलते और पूरा दिन संघ और शाखा और देश के विकास पर ही चर्चा करते। उनके तो हर सांस में देश, धर्म और संस्कृति बसी हुई थी।

बहन को मिला निमंत्रण

अब उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो चुका है। परिवार में एक मात्र उनकी एक बहन पूर्णिमा कोठारी और उनकी बेटी हैं। उन दोनों को ही रामलला प्राण प्रतिष्ठा में निमंत्रण मिला है। उनके माता-पिता बहुत धार्मिक थे। दोनों भाइयों और एक बहन को सब कुछ विरासत में ही मिला। उनके दादा भी भजन आदि लिखा करते थे। पूरा परिवार धार्मिक विचारों वाला है। माता जी का नाम श्रीमती सुमित्रा देवी कोठारी था और पिता हीरा लाल कोठारी था।

बरस रही है प्रभु की असीम अनुकंपा: पूर्णिमा

पूर्णिमा कोठारी कहती हैं, महसूस कर रही हूं कि प्रभु की असीम अनुकंपा हम सब पर बरस रही है। आज यह सुअवसर हमें अपनी आंखों से देखने को मिल रहा है। यही अपने आप में हमारे लिए तो जीवन की सबसे बड़ी खुशी है। पूर्णिमा कहती हैं, दोनों में देश भक्ति और राष्ट्र और समाज का जज्बा था। वे किसी और बात पर ध्यान भी नहीं देते थे। उनको तो हमेशा यही सोचना था कि कैसे देश आगे बढ़े। हमारा राष्ट्र कैसे उन्नत हो। और हमारा धर्म कैसे हमारी आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचे। उस समय की जो एक सुसुप्त मानसिकता थी, धर्म के प्रति उनको उसे जगाना था। वे जानते थे कि राम जन्मभूमि मंदिर की जो कार सेवा है, वो हिंदुत्व को जगाने के लिए ही की जा रही है। इसलिए दोनों ने इसके लिए खुद को आगे भी किया। हमें यह कार्य करना है। अपने तन, मन और धन तीनों से हमें समर्पित होना है और इस कार्य की सिद्धि करनी है। पूर्णिमा कहती हैं, हम हमेशा किराए के घर में रहे हैं। हमारा कोई अपना घर नहीं। अगर हमारा अपना घर होता तो शायद कोई निशानी, कोई फोटो होती।

माता-पिता ने बलिदान को जीते देखा है

मैं जब अपने आपनी भावनाओं को रोक नहीं पा रही हूं। अगर आज माता-पिता होते तो अगर कहूं ये पल उनके जीवन का सबसे बड़ा पल होते। क्योंकि भाइयों के बलिदान के 25 वर्षों तक भी मेरी माता जी थीं, उनकी आंखों में एक ही सपना था। मैंने माता-पिता के आंखों में दोनों भाइयों के बलिदान को जीते हुए देखा है। भाइयों के बलिदान के बाद, उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए मेरे माता-पिता संकल्पित थे।

आज अगर माता-पिता होते, तो उनके लिए भी यह उनके जीवन का सबसे बड़ा पल होता। जिनके दो जवान बच्चे चले गए। उनके लिए खुशियां कहां बच गई थीं। हमारे जीवन में खुशियां नहीं थीं, हमारे जीवन में केवल हमारा संकल्प बचा था। आज वही जीवन का सबसे बड़ा संकल्प है, वह पूर्ण हो गया। वे दोनों तो आज अपने आप को धन्य मानते। 33 बरस हो गए भाइयों के बलिदान को, आज भी हम इतना बड़ा दलबल लेकर यहां आए हैं। उनके नाम पर एक सेवा कार्य कर रहे हैं। इस त्योहार की कोई तुलना नहीं हो सकती। यह कुछ और ही है, जिसे हम मनाने जा रहे हैं। इसे हम जीवन भर के लिए सहेज कर रखना चाहते हैं।

विज्ञापन
विज्ञापन
Trending Videos

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

विज्ञापन
विज्ञापन

Next Article

Election

Followed