Covid-19: भारत में फैल रहा वैरिएंट अमेरिका में साबित हो रहा है 'घातक', मौत के आंकड़ों ने बढ़ाई चिंता
अमेरिका में जिस NB.1.8.1 वैरिएंट के कारण संक्रमण और मौत दोनों के मामले बढ़ रहे है, वही वैरिएंट भारत में भी फिलहाल सबसे ज्यादा सक्रिय देखा जा रहा है। इस वैरिएंट की प्रकृति और जोखिमों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे वैरिएंट ऑफ मॉनिटरिंग के रूप में वर्गीकृत कर दिया है।
विस्तार
कोरोनावायरस के बढ़ते मामले इन दिनों दुनियाभर के लिए चिंता का कारण बने हुए हैं। इस बार के प्रकोप की शुरुआत हांगकांग-सिंगापुर, चीन जैसे देशों से हुई, देखते ही देखते भारतीय आबादी में भी संक्रमण का खतरा काफी तेजी से बढ़ने लगा। बढ़ते मामलों के लिए ओमिक्रॉन और इसके सब-वैरिएंट्स को प्रमुख कारण माना जा रहा है। संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले JN.1 वैरिएंट और इसमें हुए म्यूटेशन से उत्पन्न सब-वैरिएंट्स (NB.1.8.1 और LF.7) के हैं।
एशियाई देशों के साथ अमेरिका से प्राप्त हो रही जानकारियां भी कोरोना को लेकर लोगों के मन में डर बढ़ा रही हैं। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यहां न सिर्फ संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं बल्कि हर सप्ताह 300 से ज्यादा लोगों की मौतें भी हो रही हैं।
अमेरिका स्थित ड्यूक यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में संक्रामक रोग प्रभाग के प्रोफेसर डॉ. टोनी मूडी कहते हैं, हकीकत यह है कि हम अभी भी मौतें देख रहे हैं, कोरोनावायरस फिर से न सिर्फ फैल रहा है, बल्कि लोगों की जान भी ले रहा है।
भारत वाला वैरिएंट अमेरिका में भी एक्टिव
यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि अमेरिका में जिस NB.1.8.1 वैरिएंट के कारण संक्रमण और मौत दोनों के मामले बढ़ रहे है, वही वैरिएंट भारत में भी फिलहाल सबसे ज्यादा सक्रिय देखा जा रहा है। इस वैरिएंट की प्रकृति और जोखिमों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे वैरिएंट ऑफ मॉनिटरिंग के रूप में वर्गीकृत कर दिया है, अब तक इसे वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट के रूप में रखा गया था। वैरिएंट ऑफ मॉनिटरिंग का मतलब है कि अब वायरस के इस रूप को लेकर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देने और निगरानी की आवश्यकता है।
तो क्या ये वैरिएंट, जिसे अधिकतर रिपोर्ट्स में ज्यादा चिंताजनक नहीं माना जा रहा है, वो असल में डेल्टा जैसा खतरनाक हो सकता है? अमेरिका में बढ़ते मौत के मामलों को देखें तो ये सवाल लाजमी है।
अमेरिका में बढ़ती मौत की क्या वजह है?
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) द्वारा जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले हफ्ते अमेरिका में 350 से अधिक लोगों की मौत हुई। हालांकि इसमें से ज्यादातर मौतें उन लोगों की देखी गई हैं, जो उच्च जोखिम वाले जैसे पहले से कोमोरबिडिटी के शिकार या फिर कमजोर इम्युनिटी वाले थे।
यूएस. सीडीसी डेटा के अनुसार, अप्रैल तक यहां 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के केवल 23% वयस्कों ने ही अपडेटेड कोविड-19 वैक्सीन ली है। बच्चों में ये आंकड़ा 13 प्रतिशत का है।
वैक्सीनोलॉजिस्ट और एट्रिया रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. ग्रेगरी पोलैंड ने कोविड से संबंधित मौतों की संख्या में वृद्धि के प्रमुख कारण के रूप में वैक्सीनेशन न कराने, या फिर अपडेटेड वैक्सीन न लेने को प्रमुख माना है।
उच्च जोखिम वालों को अपडेटेड वैक्सीन लेनी की सलाह
गौरतलब है कि नए वैरिएंट्स में देखे गए परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए कई कंपनियों ने अपने वैक्सीन्स को अपडेट किया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह है कि सभी लोगों को कोरोना से बचाव के लिए फ्लू की तरह ही कोरोना के टीके भी लेते रहने चाहिए। 65 से अधिक आयु या फिर उच्च जोखिम वालों के लिए ये और भी आवश्यक है।
मेडिकल एक्सपर्ट्स कहते हैं, समय के साथ वैक्सीन से बनी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती जाती है, इसके अलावा वायरस में लगातार बदलाव आ रहे हैं। यही कारण है कि इस बार फिर से नया प्रकोप देखा जा रहा है। NB.1.8.1 वैरिएंट में वृद्धि के कारण एशिया, सिंगापुर और हांगकांग में कई गंभीर मामले सामने आ चुके हैं, जिसको देखते हुए सभी लोगों को अलर्ट रहने की आवश्यकता है।
इस वायरस को लेकर कितना डरने की जरूरत?
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, NB.1.8.1 वैरिएंट निश्चित ही चिंता का कारण बना हुआ है पर इससे घबराने की नहीं, सावधान रहने की जरूरत। भारत में भी कोविड के अपडेटेड टीके उपलब्ध हैं, उच्च जोखिम वाले अपने डॉक्टर की सलाह पर टीके ले सकते हैं, हालांकि इसके लिए सभी को भागने की भी जरूरत नहीं है। कोविड उपयुक्त व्यवहार को संक्रमण के खतरे क कम करने के लिए पर्याप्त माना जाता है, इसके अलावा भारत में पहले से हर्ड इम्युनिटी बन चुकी है तो यहां ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है।
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नोट: यह लेख डॉक्टर्स का सलाह और मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
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