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Parenting Tips: अगर आप अपने बच्चों के सामने रोती हैं तो ये जरूर पढ़ें ये खबर....
लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: श्रुति गौड़
Updated Fri, 19 Sep 2025 05:30 PM IST
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सार
Should Parents Cry Front Of Children: बच्चों का आपके सामने रोना स्वभाविक है, लेकिन आपका उनके सामने रोना...? अगर आप उनके सामने रोती हैं तो बच्चों पर इसका कितना असर पड़ता है?

अगर आप अपने बच्चों के सामने रोती हैं तो ये जरूर पढ़ें ये खबर....
- फोटो : Adobe stock
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विस्तार
वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता। कई बार मुश्किलें इतनी बढ़ जाती हैं कि उन्हें बच्चों से छिपाना मुश्किल हो जाता है और माता-पिता बच्चों के सामने ही भावुक हो जाते हैं। माता-पिता के आंसू बच्चों के दिल पर गहरा असर डालते हैं और कई बच्चे माता-पिता को दर्द में देख खुद भी दुखी तथा शांत हो जाते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि बच्चों के सामने आपके रोने का उन पर क्या और कितना असर डालता है?
भावनात्मक संवेदनशीलता
माता-पिता का बच्चे के सामने रो देना एक स्वाभाविक भावना है, जो बच्चों को भावनाओं को समझने और स्वीकार करने में मदद भी कर सकता है। इससे बच्चे सीख सकते हैं कि दुख, चिंता या तनाव को छुपाना जरूरी नहीं है और वे भावनात्मक रूप से समझदार बन सकते हैं। वे अपनी भावनाओं को भी खुलकर व्यक्त करना सीख सकते हैं, जो सरल जीवन जीने के लिए जरूरी है। इस तरह माता-पिता का रोना बच्चों की भावनात्मक संवेदनशीलता और सहानुभूति को बढ़ा सकता है, जिससे वे मजबूत और संवेदनशील व्यक्तित्व विकसित कर सकते हैं।
नकारात्मक प्रभाव भी
बच्चों के सामने रोना ज्यादातर सकारात्मक असर नहीं डालता, बल्कि इसके नकारात्मक प्रभाव ही अधिक होते हैं। अगर माता-पिता लगातार अपनी भावनात्मक चिंता बच्चों के सामने व्यक्त करते हैं तो इससे बच्चों में असुरक्षा, चिंता और डर की भावना उत्पन्न हो जाती है। खासकर छोटे बच्चे, जो अपनी भावनाओं को ठीक से समझ नहीं पाते, वे यह जान नहीं पाते कि क्यों माता-पिता रो रहे हैं। इससे उनकी भावनात्मक स्थिति प्रभावित होती है और वे खुद भी तनाव, उदासी या भय महसूस करने लगते हैं।
अगर रोते हुए देख लें
अक्सर आप अपनी भावनाओं को बच्चों से छिपाने की ही कोशिश करती हैं, लेकिन यदि वे आपको रोते हुए देख लें तो अपने रोने का कारण उनसे साझा करें, न कि छुपाएं। इससे बच्चे में भावनात्मक समझदारी बढ़ती है और वह अपने मन की भावनाओं को स्वीकार करना सीखता है। माता-पिता को बच्चों को यह भी समझाना चाहिए कि जीवन में कठिनाइयां आती हैं, लेकिन उनका सामना करना जरूरी होता है। इससे बच्चों में सहनशीलता और समस्या के समाधान की क्षमता विकसित होती है।
गलत वजह न दें
आपको रोता हुआ देखने के बाद जब बच्चा आपसे पूछता है कि “आपको क्या हुआ?” तो अक्सर आप “कुछ नहीं हुआ, सब ठीक है” कहकर टाल देती हैं या कोई गलत वजह बता देती हैं। लेकिन इससे वे भ्रमित या असुरक्षित महसूस कर सकते हैं। इसलिए माता-पिता को अपनी और बच्चे की भावनाओं के प्रति ईमानदार रहना चाहिए। जब माता-पिता अपने भावनात्मक अनुभव संतुलित रूप से साझा करते हैं तो बच्चे में बेहतर भावनात्मक स्वास्थ्य, सहानुभूति और आत्मविश्वास विकसित होता है।
आपका व्यवहार, उनकी सीख
मनोवैज्ञानिक डॉ. ज्योति मिश्रा का कहना है कि अगर आप भावनात्मक परेशानी में बच्चों के सामने रोती हैं तो यह जरूरी है कि आप अपनी भावनाओं को नियंत्रित ढंग से प्रकट करें। छोटे बच्चों की भावनाएं नाजुक होती हैं और वे माता-पिता की हर बात और व्यवहार से सीखते हैं। इसलिए अपनी परेशानी को सरल और ईमानदारी से समझाना चाहिए, जैसे- “मम्मी थोड़ी परेशान हैं, लेकिन सब ठीक हो जाएगा।” इससे वे समझते हैं कि भावनाएं व्यक्त करना स्वाभाविक है, लेकिन उनका नियंत्रण भी जरूरी है। साथ ही बच्चे से कभी झूठ न बोलें और न ही किसी की बुराई करें, वरना उसके मन में असुरक्षा और नकारात्मकता आ सकती है। याद रखें, आपका व्यवहार ही उनके लिए सीख बनता है, जिससे वे संवेदनशील और समझदार बन सकते हैं।

भावनात्मक संवेदनशीलता
माता-पिता का बच्चे के सामने रो देना एक स्वाभाविक भावना है, जो बच्चों को भावनाओं को समझने और स्वीकार करने में मदद भी कर सकता है। इससे बच्चे सीख सकते हैं कि दुख, चिंता या तनाव को छुपाना जरूरी नहीं है और वे भावनात्मक रूप से समझदार बन सकते हैं। वे अपनी भावनाओं को भी खुलकर व्यक्त करना सीख सकते हैं, जो सरल जीवन जीने के लिए जरूरी है। इस तरह माता-पिता का रोना बच्चों की भावनात्मक संवेदनशीलता और सहानुभूति को बढ़ा सकता है, जिससे वे मजबूत और संवेदनशील व्यक्तित्व विकसित कर सकते हैं।
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नकारात्मक प्रभाव भी
बच्चों के सामने रोना ज्यादातर सकारात्मक असर नहीं डालता, बल्कि इसके नकारात्मक प्रभाव ही अधिक होते हैं। अगर माता-पिता लगातार अपनी भावनात्मक चिंता बच्चों के सामने व्यक्त करते हैं तो इससे बच्चों में असुरक्षा, चिंता और डर की भावना उत्पन्न हो जाती है। खासकर छोटे बच्चे, जो अपनी भावनाओं को ठीक से समझ नहीं पाते, वे यह जान नहीं पाते कि क्यों माता-पिता रो रहे हैं। इससे उनकी भावनात्मक स्थिति प्रभावित होती है और वे खुद भी तनाव, उदासी या भय महसूस करने लगते हैं।
अगर रोते हुए देख लें
अक्सर आप अपनी भावनाओं को बच्चों से छिपाने की ही कोशिश करती हैं, लेकिन यदि वे आपको रोते हुए देख लें तो अपने रोने का कारण उनसे साझा करें, न कि छुपाएं। इससे बच्चे में भावनात्मक समझदारी बढ़ती है और वह अपने मन की भावनाओं को स्वीकार करना सीखता है। माता-पिता को बच्चों को यह भी समझाना चाहिए कि जीवन में कठिनाइयां आती हैं, लेकिन उनका सामना करना जरूरी होता है। इससे बच्चों में सहनशीलता और समस्या के समाधान की क्षमता विकसित होती है।
गलत वजह न दें
आपको रोता हुआ देखने के बाद जब बच्चा आपसे पूछता है कि “आपको क्या हुआ?” तो अक्सर आप “कुछ नहीं हुआ, सब ठीक है” कहकर टाल देती हैं या कोई गलत वजह बता देती हैं। लेकिन इससे वे भ्रमित या असुरक्षित महसूस कर सकते हैं। इसलिए माता-पिता को अपनी और बच्चे की भावनाओं के प्रति ईमानदार रहना चाहिए। जब माता-पिता अपने भावनात्मक अनुभव संतुलित रूप से साझा करते हैं तो बच्चे में बेहतर भावनात्मक स्वास्थ्य, सहानुभूति और आत्मविश्वास विकसित होता है।
आपका व्यवहार, उनकी सीख
मनोवैज्ञानिक डॉ. ज्योति मिश्रा का कहना है कि अगर आप भावनात्मक परेशानी में बच्चों के सामने रोती हैं तो यह जरूरी है कि आप अपनी भावनाओं को नियंत्रित ढंग से प्रकट करें। छोटे बच्चों की भावनाएं नाजुक होती हैं और वे माता-पिता की हर बात और व्यवहार से सीखते हैं। इसलिए अपनी परेशानी को सरल और ईमानदारी से समझाना चाहिए, जैसे- “मम्मी थोड़ी परेशान हैं, लेकिन सब ठीक हो जाएगा।” इससे वे समझते हैं कि भावनाएं व्यक्त करना स्वाभाविक है, लेकिन उनका नियंत्रण भी जरूरी है। साथ ही बच्चे से कभी झूठ न बोलें और न ही किसी की बुराई करें, वरना उसके मन में असुरक्षा और नकारात्मकता आ सकती है। याद रखें, आपका व्यवहार ही उनके लिए सीख बनता है, जिससे वे संवेदनशील और समझदार बन सकते हैं।