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Bhopal: भोपाल के कई क्षेत्र में मोहर्रम के मातमी जुलूस निकाले, बड़ी संख्या में लोग हुए शामिल, रही कड़ी सुरक्षा

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: संदीप तिवारी Updated Sun, 06 Jul 2025 07:49 PM IST
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सार

भोपाल में कई जगह रविवार को मोहर्रम के मातमी जुलूस निकाले गए । इमामबाड़ों में सुबह से मुस्लिम धर्मावलंबी जुटे। हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मातम मनाया गया। भोपाल में मुख्य जुलूस की शुरुआत फतेहगढ़ से हुई और करबला मैदान तक पहुंचा।

Bhopal: Muharram mourning processions were taken out in many areas of Bhopal, a large number of people partici
मातमी जुलूस - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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भोपाल में कई जगह रविवार को मोहर्रम के मातमी जुलूस निकाले गए । इमामबाड़ों में सुबह से मुस्लिम धर्मावलंबी जुटे। हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मातम मनाया गया। भोपाल में मुख्य जुलूस की शुरुआत फतेहगढ़ से हुई। बड़ी संख्या में ताजिए, बुर्राक, सवारियां, परचम, अखाड़े और ढोल-ताशों के साथ यह वीआईपी रोड स्थित करबला मैदान तक पहुंचा। इसके अलावा चार और जगह से जुलूस निकाले गए। इस जुलूस में छोटे बच्चों के साथ महिलाएं भी बड़ी संख्या में शामिल हुईं। जुलूस को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने पूरे क्षेत्र में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखी। कई रूट को डायवर्ट किया गया था जिससे कई जगह लोगों को परेशानी का भी सामना करना पड़ा। कई जगह जाम भी लग रहे।
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चार और जगह निकले जुलूस 
भोपाल में फतेहगढ़ के अलावा शहर के अन्य हिस्सों से चार बड़े जुलूस निकले, जो पीरगेट क्षेत्र में आकर मिले। इनका जुलूस इमामबाड़ा, रेलवे स्टेशन, काजी कैंप, भानपुर, मोहम्मदी चौक, पीरगेट, रॉयल मार्केट, ताजुल मसाजिद होकर शहीद नगर स्थित करबला मैदान में शाम पहुंचा।

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इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं
इस दौरान मौलाना डॉ. रजी-उल-हसन हैदरी ने कहा कि इमाम हुसैन ने हमें पैगाम दिया कि अगर कोई जालिम, बेगुनाहों और मासूमों पर जुल्म कर रहा है तो आवाज उठाना हमारा धर्म और प्राथमिकता होनी चाहिए। इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है। इंसानियत न हिंदू सिखाती है और न ही मुस्लिम न ही शिया और न ही सुन्नी। उन्होंने कहा कि जुलूस में जो ताजिए हैं, वो करबला की रेप्लिका की तरह बनाए जाते हैं। हर कोई करबला नहीं जा सकता इसीलिए ताजिए बनाकर जियारत करते हैं।

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अलग-अलग मुस्लिम सामाजिक संस्थाओं के अखाड़े  हुए शामिल
शहर में मोहर्रम के जुलूस में सैकड़ों की संख्या में ताजिए, बुर्राक, परचम, धार्मिक झंडे और प्रतीक, मातमी सवारियां और अलग-अलग मुस्लिम सामाजिक संस्थाओं के अखाड़े शामिल हुए । इन काफिलों में ‘या हुसैन’ के नारे गूंजते रहे। पहली बार ईरानी डेरे में अंगारों पर चलने वाला मातम नहीं किया गया। डेरे के प्रमुख ने बताया कि इस बार जगह नहीं होने के चलते ऐसा किया गया है।
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