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Vijayadashmi 2025: यहां महिलाएं घूंघट निकालकर रावण के पैर पर बांधती लच्छा, क्या है मंदसौर की ये खास परंपरा

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मंदसौर Published by: मंदसौर ब्यूरो Updated Thu, 02 Oct 2025 09:50 AM IST
सार

मध्यप्रदेश के मंदसौर में दशहरे का पर्व अनूठी परंपरा के साथ मनाया जाता है। यहां रावण को मंदोदरी का पति और शहर का ‘जमाई’ माना जाता है। खास बात यह है कि रावण की प्रतिमा में 10 सिरों के साथ एक गधे का सिर भी होता है, जो उसके विवेक खोने और बुद्धिभ्रष्ट होने का प्रतीक है।

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Vijayadashmi 2025: In Mandsaur, Ravan's son-in-law is worshipped in the morning and burnt in the evening.
कॉलेज ग्राउंड में होगा 75 फिट उन्हें रावण के पुतले का दहन। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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अधर्म पर धर्म की विजय के पर्व दशहरे का आयोजन देशभर में पारंपरिक रूप से रावण दहन के साथ होता है, किंतु मंदसौर में यह पर्व अपनी अनूठी परंपरा के कारण विशेष महत्व रखता है। यहां दशहरा केवल रावण के अहंकार के अंत का प्रतीक ही नहीं है, बल्कि उसकी विद्वता और शिवभक्ति के सम्मान का अवसर भी है। मंदसौर को रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका माना जाता है। इस कारण रावण को शहर का जमाई कहा जाता है। परंपरा है कि दशहरे के दिन सुबह महिलाएं खानपुरा क्षेत्र स्थित रावण की प्रतिमा के समक्ष घूंघट निकालकर पूजा करती हैं और प्रतिमा के पैर में लच्छा बांधकर आराधना करती हैं। मान्यता है कि इस प्रकार लच्छा बांधने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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सुबह पूजन, शाम को दहन
दशहरे की सुबह रावण की प्रतिमा की पूजा-अर्चना नामदेव समाज द्वारा की जाती है। समाज के लोग पीढ़ियों से इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। प्रतिमा की आराधना के बाद गोधूलि बेला में उसका दहन किया जाता है। इस प्रकार यहां अच्छाइयों के लिए पूजन और बुराइयों के लिए दहन की परंपरा जीवित है।
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गधे का सिर और प्रतीकात्मक संदेश
खानपुरा के रुंडी क्षेत्र में स्थापित रावण प्रतिमा विशेष पहचान रखती है। इसमें 10 सिरों के साथ एक गधे का सिर भी लगाया गया है। मान्यता है कि माता सीता का हरण कर रावण ने अपनी विद्या और विवेक खो दिया था। इसी कारण बुद्धिभ्रष्ट होने के प्रतीक के रूप में उसके मुख्य मुख के ऊपर गधे का सिर लगाया गया है।

यह भी पढ़ें- मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने विजयादशमी की दी बधाई, प्रदेशवासियों की सुख-समृद्धि की कामना की

क्षमा-याचना और राम-रावण की सेनाएं
दशहरे के दिन दोपहर बाद पारंपरिक रूप से राम और रावण की सेनाओं के स्वरूप में शोभायात्राएं निकलती हैं। प्रतिमा के सामने समाजजन खड़े होकर क्षमा-याचना करते हुए कहते हैं— सीता का हरण किया था, इसलिए राम की सेना आपका वध करने आई है। इसके बाद वातावरण गहन अंधकार में डूब जाता है और फिर उजाला होते ही राम की विजय और उल्लास का उत्सव मनाया जाता है।

200 साल पुरानी परंपरा
स्थानीय मान्यता है कि रावण की पूजा-अर्चना की यह परंपरा लगभग 200 वर्षों से चली आ रही है। पहले पुरानी प्रतिमा की आराधना की जाती थी, जिसे अब नए स्वरूप में स्थापित किया गया है। आज भी नामदेव समाज पूरी श्रद्धा और उत्साह से इस परंपरा को निभा रहा है।

कॉलेज ग्राउंड में होगा रावण दहन
मंदसौर के खानपुरा क्षेत्र में जहां एक और नामदेव समाज द्वारा रावण की पूजा की जाती है नामदेव समाज की महिलाएं रावण को जमाई मानकर रावण की प्रतिमा के सामने से घूंघट निकालकर निकलती है वही दूसरी ओर मंदसौर स्थित कॉलेज ग्राउंड में रावण कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतलों का दहन किया जाता है।

 

कॉलेज ग्राउंड में होगा 75 फिट उन्हें रावण के पुतले का दहन

 

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