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Rajgarh News: यहां दशहरे पर रावण और कुंभकर्ण का 'दहन' नहीं 'पूजन' होता है, प्रसाद चढ़ाकर मांगते हैं मन्नत
न्यूज़ डेस्क, अमर उजाला, राजगढ़
Published by: राजगढ़ ब्यूरो
Updated Wed, 01 Oct 2025 04:08 PM IST
सार
एक तरफ जहां पूरे देश में दशहरे पर रावण दहन की परंपरा निभाई जाती है, वहीं राजगढ़ जिले का यह गांव रावण और कुंभकर्ण की मूर्तियों की पूजा करता है।
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राजगढ़ के भाटखेड़ी गांव में पूजे जाते हैं रावण और कुंभकर्ण
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
जिले का भाटखेड़ी गांव दशहरे पर पूरे इलाके से अलग पहचान रखता है। जहां देशभर में विजयादशमी के दिन रावण दहन की परंपरा निभाई जाती है, वहीं यहां दशहरे पर रावण और कुंभकर्ण की प्रतिमाओं का पूजन और महाआरती की जाती है। यही वजह है कि दशहरे पर यह छोटा सा गांव अपने खास आयोजन के लिए बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करता है।
रामलीला के साथ निकलता है जुलूस
दशहरे के दिन श्रीराम जानकी मंदिर से चल समारोह निकलता है। भगवान के विमान के साथ राम दल, रावण की सेना और रामलीला के पात्र गाजे-बाजे की धुन पर नाचते-गाते आगरा-मुंबई हाईवे तक पहुंचते हैं। वहां रावण और कुंभकर्ण की प्रतिमाओं के सामने रामलीला का मंचन होता है और फिर दोनों की पूजा और महाआरती की जाती है।
कभी हाईवे से गुजरने वाले भी करते थे पूजा
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले जब यहां ब्रिज नहीं था तो हाईवे से गुजरने वाले लोग वाहन रोककर रावण और कुंभकर्ण को प्रसाद चढ़ाते और मन्नत मांगते थे। अब पुल बनने के बाद वाहन ऊपर से निकल जाते हैं, इसलिए पूजा करने के लिए लोग खासतौर पर गांव आते हैं।
ये भी पढ़ें: Damoh News: दमोह में आज होगा 50 फीट ऊंचे रावण का दहन, बारिश की आशंका ने घटाया कद, आतिशबाजी होगी मुख्य आकर्षण
रामलीला देखने उमड़ती भीड़
दशहरे के दिन मंदिर परिसर में होने वाली रामलीला देखने के लिए आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। मंचन में परशुराम जी का धनुष टूटने से लेकर श्रीराम-सीता विवाह तक की कथाएं दिखाई जाती हैं। अंतिम मंचन हाईवे पर बनी रावण और कुंभकर्ण की प्रतिमाओं के सामने किया जाता है।
पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा
गांव के ग्रामीण बताते हैं कि यह परंपरा उनके जन्म से भी पहले से चली आ रही है। रामलीला में श्रीराम का किरदार घनश्याम निभाते हैं, लक्ष्मण की भूमिका लखन, जनक का रोल सुनील, रावण का किरदार भगवान सिंह यादव, बाणासुर का रोल शिवनारायण, मोनिका का नेम सिंह और परशुराम की भूमिका विशेष रूप से निभाई जाती है।
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रामलीला के साथ निकलता है जुलूस
दशहरे के दिन श्रीराम जानकी मंदिर से चल समारोह निकलता है। भगवान के विमान के साथ राम दल, रावण की सेना और रामलीला के पात्र गाजे-बाजे की धुन पर नाचते-गाते आगरा-मुंबई हाईवे तक पहुंचते हैं। वहां रावण और कुंभकर्ण की प्रतिमाओं के सामने रामलीला का मंचन होता है और फिर दोनों की पूजा और महाआरती की जाती है।
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कभी हाईवे से गुजरने वाले भी करते थे पूजा
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले जब यहां ब्रिज नहीं था तो हाईवे से गुजरने वाले लोग वाहन रोककर रावण और कुंभकर्ण को प्रसाद चढ़ाते और मन्नत मांगते थे। अब पुल बनने के बाद वाहन ऊपर से निकल जाते हैं, इसलिए पूजा करने के लिए लोग खासतौर पर गांव आते हैं।
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रामलीला देखने उमड़ती भीड़
दशहरे के दिन मंदिर परिसर में होने वाली रामलीला देखने के लिए आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। मंचन में परशुराम जी का धनुष टूटने से लेकर श्रीराम-सीता विवाह तक की कथाएं दिखाई जाती हैं। अंतिम मंचन हाईवे पर बनी रावण और कुंभकर्ण की प्रतिमाओं के सामने किया जाता है।
पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा
गांव के ग्रामीण बताते हैं कि यह परंपरा उनके जन्म से भी पहले से चली आ रही है। रामलीला में श्रीराम का किरदार घनश्याम निभाते हैं, लक्ष्मण की भूमिका लखन, जनक का रोल सुनील, रावण का किरदार भगवान सिंह यादव, बाणासुर का रोल शिवनारायण, मोनिका का नेम सिंह और परशुराम की भूमिका विशेष रूप से निभाई जाती है।

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