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चित्रकूट गधा मेला: यहां 'सनी देओल’ 1.05 लाख में बिका, 'लॉरेंस’ को नहीं मिला खरीददार,'शाहरुख’ 80 हजार में बुक
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सतना
Published by: सतना ब्यूरो
Updated Thu, 23 Oct 2025 01:53 PM IST
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सार
चित्रकूट में आयोजित तीन दिवसीय ऐतिहासिक गधा मेला हर बार की तरह इस वर्ष भी लोगों के बीच चर्चा का विषय रहा। मेले का सुपरस्टार गधा रहा 'सनी देओल', जिसे देखने और खरीदने के लिए बड़ी संख्या में खरीदार पहुंचे। चलिए मेले के इतिहास से जड़ी कुछ खास बातें भी आपको बता रहे हैं।

चित्रकूट में 350 वर्षों से लग रहा गधा मेला।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
चित्रकूट में आयोजित तीन दिवसीय ऐतिहासिक गधा मेला हर बार की तरह इस वर्ष भी लोगों के बीच चर्चा का विषय रहा। मेले का सुपरस्टार गधा रहा 'सनी देओल', जिसे देखने और खरीदने के लिए बड़ी संख्या में खरीदार पहुंचे। चलिए मेले के इतिहास से जड़ी कुछ खास बातें भी आपको बता रहे हैं।
सतना जिले में स्थित मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के तट पर लगने वाला तीन दिवसीय ऐतिहासिक गधा मेला संपन्न हो गया। दीपावली के बाद अन्नकूट पर्व से शुरू हुआ यह मेला 350 साल से भी अधिक पुराना माना जाता है। इसकी शुरुआत मुगल शासक औरंगजेब के समय में हुई थी और परंपरा आज भी उसी उत्साह के साथ जारी है।
'सनी देओल' ने मचाया धमाल
इस वर्ष मेले का सुपरस्टार गधा रहा 'सनी देओल', जिसे देखने और खरीदने के लिए बड़ी संख्या में खरीदार पहुंचे। मालिक ने इसकी कीमत एक लाख 50 हजार रुपये तय की थी, लेकिन मोलभाव के बाद इसका सौदा एक लाख पांच हजार रुपये में तय हुआ। इसकी लोकप्रियता ने पूरे मेले में धूम मचा दी।
'शाहरुख' चला, 'लॉरेंस बिश्नोई' रहा फ्लॉप
मेले में एक और आकर्षण रहा 'शाहरुख खान' नाम का गधा, जो 80,000 रुपये में बिका। वहीं, पिछले साल सुर्खियों में रहा गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई नाम का खच्चर इस बार खरीदारों को लुभा नहीं पाया। उसकी बोली ₹1.25 लाख तक पहुंची, लेकिन सौदा नहीं हो सका। इसी तरह 'सलमान', 'कैटरीना' और 'माधुरी' नाम के जानवरों पर भी खरीदारों ने दिलचस्पी दिखाई और जमकर बोलियां लगाईं।
देशभर से पहुंचे व्यापारी
इस पारंपरिक मेले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार सहित कई राज्यों से व्यापारी अपने गधे और खच्चर लेकर पहुंचे। नगर परिषद चित्रकूट द्वारा मेले की सभी व्यवस्थाएं की गई थीं। पारंपरिक ढंग से सजे पशु, ढोल-नगाड़ों की थाप और खरीदारों की भीड़ से पूरा क्षेत्र उत्सव जैसा माहौल पेश कर रहा था।
ये भी पढ़ें- MP AQI: मध्य प्रदेश की हवा में होने लगा सुधार, कई शहरों में बेहतर स्थिति दर्ज, ग्वालियर में अभी AQI 200 पार
औरंगजेब काल से जुड़ा इतिहास
जानकारी के अनुसार, इस मेले की शुरुआत मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में करीब वर्ष 1670 के आसपास हुई थी। कहा जाता है कि चित्रकूट पर हमले के दौरान उसकी सेना के घोड़े और खच्चर बीमार होकर मर गए थे। नए पशुओं की जरूरत के चलते उसने यहीं गधों की खरीद के लिए मुनादी करवाई, और तभी से यह मेला एक परंपरा बन गया। राजस्थान के पुष्कर मेले के बाद, चित्रकूट का गधा मेला देश का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है। इस बार भी मेले में उत्साह, व्यापार और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिला।

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सतना जिले में स्थित मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के तट पर लगने वाला तीन दिवसीय ऐतिहासिक गधा मेला संपन्न हो गया। दीपावली के बाद अन्नकूट पर्व से शुरू हुआ यह मेला 350 साल से भी अधिक पुराना माना जाता है। इसकी शुरुआत मुगल शासक औरंगजेब के समय में हुई थी और परंपरा आज भी उसी उत्साह के साथ जारी है।
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'सनी देओल' ने मचाया धमाल
इस वर्ष मेले का सुपरस्टार गधा रहा 'सनी देओल', जिसे देखने और खरीदने के लिए बड़ी संख्या में खरीदार पहुंचे। मालिक ने इसकी कीमत एक लाख 50 हजार रुपये तय की थी, लेकिन मोलभाव के बाद इसका सौदा एक लाख पांच हजार रुपये में तय हुआ। इसकी लोकप्रियता ने पूरे मेले में धूम मचा दी।
'शाहरुख' चला, 'लॉरेंस बिश्नोई' रहा फ्लॉप
मेले में एक और आकर्षण रहा 'शाहरुख खान' नाम का गधा, जो 80,000 रुपये में बिका। वहीं, पिछले साल सुर्खियों में रहा गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई नाम का खच्चर इस बार खरीदारों को लुभा नहीं पाया। उसकी बोली ₹1.25 लाख तक पहुंची, लेकिन सौदा नहीं हो सका। इसी तरह 'सलमान', 'कैटरीना' और 'माधुरी' नाम के जानवरों पर भी खरीदारों ने दिलचस्पी दिखाई और जमकर बोलियां लगाईं।
देशभर से पहुंचे व्यापारी
इस पारंपरिक मेले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार सहित कई राज्यों से व्यापारी अपने गधे और खच्चर लेकर पहुंचे। नगर परिषद चित्रकूट द्वारा मेले की सभी व्यवस्थाएं की गई थीं। पारंपरिक ढंग से सजे पशु, ढोल-नगाड़ों की थाप और खरीदारों की भीड़ से पूरा क्षेत्र उत्सव जैसा माहौल पेश कर रहा था।
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औरंगजेब काल से जुड़ा इतिहास
जानकारी के अनुसार, इस मेले की शुरुआत मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में करीब वर्ष 1670 के आसपास हुई थी। कहा जाता है कि चित्रकूट पर हमले के दौरान उसकी सेना के घोड़े और खच्चर बीमार होकर मर गए थे। नए पशुओं की जरूरत के चलते उसने यहीं गधों की खरीद के लिए मुनादी करवाई, और तभी से यह मेला एक परंपरा बन गया। राजस्थान के पुष्कर मेले के बाद, चित्रकूट का गधा मेला देश का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है। इस बार भी मेले में उत्साह, व्यापार और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिला।