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MP News: तेल घोटाला मामले में सैन्य अफसरों को हाईकोर्ट से राहत, सीबीआई कोर्ट की सजा को किया निरस्त
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, जबलपुर
Published by: दिनेश शर्मा
Updated Sun, 17 Sep 2023 06:53 PM IST
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सार
सीबीआई की विशेष कोर्ट ने तेल घोटाला मामले में पांच सैन्य अधिकारियों सहित सप्लायर फर्म संचालक को दोषी पाते हुए सजा सुनाई थी। अब हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद सजा को निरस्त कर दिया है। सभी को दोषमुक्त करार दिया है।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (फाइल फोटो)
- फोटो : अमर उजाला

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विस्तार
तेल घोटाला मामले में सीबीआई कोर्ट से सजा पाने वाले सैन्य अफसरों को हाईकोर्ट से राहत मिली है। कोर्ट ने सजा को निरस्त कर दिया है। सीबीआई की विशेष कोर्ट ने तेल घोटाला मामले में पांच सैन्य अधिकारियों सहित सप्लायर फर्म संचालक को दोषी पाते हुए सजा सुनाई थी। सजा के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी। हाईकोर्ट जस्टिस नंदिता दुबे की एकलपीठ ने सुनवाई के बाद सीबीआई कोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए याचिकाकर्ताओं को दोषमुक्त करार दिया है।
सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल ओपी ओमन, लेफ्टिनेंट कर्नल जेएन विरदी, लेफ्टिनेंट कर्नल ईआर कुमार, सैन्य अधिकारी पीके रकवाल, सैन्य अधिकारी एन. प्रसाद सहित फर्म संचालक प्रहलाद अग्रवाल को सीबीआई की विशेष न्यायालय ने धारा 420 तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अधिकतम तीन साल के कारावास तथा अर्थदंड की साज से दंडित किया था। सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी।
क्या था मामला
प्रकरण के अनुसार अप्रैल 1995 में आर्मी सप्लाई डिपो में तेल की कमी हुई थी। आर्मी सप्लाई डिपो के लिए स्थानीय खरीदी बोर्ड के सदस्य जेएस विदरी, एन प्रसाद तथा पीके रकवाल थे। बोर्ड ने तेल खरीदी के लिए एक लाख रुपये जारी किए थे। फर्म बलदेव प्रसाद प्रेम नारायण के संचालक प्रहलाद दास अग्रवाल को सोयाबीन तेल सप्लाई का ठेका दिया गया था। सोयाबीन तेल के 109 टीन खरीदी के लिए लगभग 76 हजार रुपये का भुगतान किया गया था। आर्मी सप्लाई डिपो से अलग-अलग यूनिट को तेल सप्लाई किया गया था। यूनिट ने घटिया तेल होने की शिकायत दर्ज करवाई थी। इसके बाद तेल का सैंपल जांच के लिए भेजा गया था। प्रयोगशाला जांच में तेल में मिलावट पाई गई थी। सीबीआई ने आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर प्रकरण को न्यायालय में पेश किया था। न्यायालय ने अन्य धाराओं के तहत आरोपियों को दोषमुक्त करार देते हुए धारा 420 तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सजा से दंडित किया था।
हाईकोर्ट ने इसलिए किया बरी
एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि तेल खरीदी के लिए निविदा आमंत्रित की गई थी। विभिन्न फर्मों से मिली निविदा आरोपी फर्म संचालक द्वारा भरी गई। इस संबंध में हस्तालिपि विशेषज्ञ के कोई अभिमत नहीं हैं। इसके अलावा आरोपियों ने साजिश के तहत कार्य करते हुए आर्थिक लाभ अर्जित किया। इसके भी कोई साक्ष्य नहीं है। सीबीआई कोर्ट ने सिर्फ संभावनाओं के आधार पर याचिकाकर्ताओं को सजा से दंडित किया। एकलपीठ ने सजा के आदेश को निरस्त करते हुए याचिकाकर्ताओं को दोषमुक्त करार दिया है। याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता अंशुमान सिंह ने पैरवी की।
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सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल ओपी ओमन, लेफ्टिनेंट कर्नल जेएन विरदी, लेफ्टिनेंट कर्नल ईआर कुमार, सैन्य अधिकारी पीके रकवाल, सैन्य अधिकारी एन. प्रसाद सहित फर्म संचालक प्रहलाद अग्रवाल को सीबीआई की विशेष न्यायालय ने धारा 420 तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अधिकतम तीन साल के कारावास तथा अर्थदंड की साज से दंडित किया था। सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी।
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क्या था मामला
प्रकरण के अनुसार अप्रैल 1995 में आर्मी सप्लाई डिपो में तेल की कमी हुई थी। आर्मी सप्लाई डिपो के लिए स्थानीय खरीदी बोर्ड के सदस्य जेएस विदरी, एन प्रसाद तथा पीके रकवाल थे। बोर्ड ने तेल खरीदी के लिए एक लाख रुपये जारी किए थे। फर्म बलदेव प्रसाद प्रेम नारायण के संचालक प्रहलाद दास अग्रवाल को सोयाबीन तेल सप्लाई का ठेका दिया गया था। सोयाबीन तेल के 109 टीन खरीदी के लिए लगभग 76 हजार रुपये का भुगतान किया गया था। आर्मी सप्लाई डिपो से अलग-अलग यूनिट को तेल सप्लाई किया गया था। यूनिट ने घटिया तेल होने की शिकायत दर्ज करवाई थी। इसके बाद तेल का सैंपल जांच के लिए भेजा गया था। प्रयोगशाला जांच में तेल में मिलावट पाई गई थी। सीबीआई ने आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर प्रकरण को न्यायालय में पेश किया था। न्यायालय ने अन्य धाराओं के तहत आरोपियों को दोषमुक्त करार देते हुए धारा 420 तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सजा से दंडित किया था।
हाईकोर्ट ने इसलिए किया बरी
एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि तेल खरीदी के लिए निविदा आमंत्रित की गई थी। विभिन्न फर्मों से मिली निविदा आरोपी फर्म संचालक द्वारा भरी गई। इस संबंध में हस्तालिपि विशेषज्ञ के कोई अभिमत नहीं हैं। इसके अलावा आरोपियों ने साजिश के तहत कार्य करते हुए आर्थिक लाभ अर्जित किया। इसके भी कोई साक्ष्य नहीं है। सीबीआई कोर्ट ने सिर्फ संभावनाओं के आधार पर याचिकाकर्ताओं को सजा से दंडित किया। एकलपीठ ने सजा के आदेश को निरस्त करते हुए याचिकाकर्ताओं को दोषमुक्त करार दिया है। याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता अंशुमान सिंह ने पैरवी की।