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Highways: एक्सप्रेसवे की तुलना में एक्सेस-कंट्रोल हाईवे ज्यादा क्यों बनाए जा रहे हैं? जानें दोनों का अंतर
ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अमर शर्मा
Updated Mon, 10 Mar 2025 04:06 PM IST
सार
एक्सप्रेसवे की तुलना में एक्सेस-कंट्रोल हाईवे की निर्माण गति कहीं ज्यादा तेज है। आइए, जानते हैं इसके पीछे की वजह।
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National Highways
- फोटो : अमर उजाला
देशभर में बनने वाले एक्सप्रेसवे ने सफर को काफी आसान बना दिया है, जिससे समय और पैसे दोनों की बचत होती है। इसी के साथ, कई जगहों पर एक्सेस-कंट्रोल हाईवे भी बनाए जा रहे हैं। हालांकि, एक्सप्रेसवे की तुलना में एक्सेस-कंट्रोल हाईवे की निर्माण गति कहीं ज्यादा तेज है। आइए, जानते हैं इसके पीछे की वजह।
Mumbai-Nagpur Expressway
- फोटो : X/@Dev_Fadnavis
कितने एक्सप्रेस वे बन रहे हैं
इस समय देश में पांच एक्सप्रेसवे और 22 एक्सेस-कंट्रोल हाईवे का निर्माण चल रहा है। इसका मतलब है कि इस समय बन रहे कुल हाईवे में सिर्फ 25 प्रतिशत हिस्सेदारी एक्सप्रेसवे की है, जबकि बाकी एक्सेस-कंट्रोल हाईवे हैं। सरकार ने सभी एक्सप्रेसवे को 2025-26 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है। जबकि एक्सेस-कंट्रोल हाईवे 2026-27 तक बनकर तैयार हो जाएंगे।
इस समय देश में पांच एक्सप्रेसवे और 22 एक्सेस-कंट्रोल हाईवे का निर्माण चल रहा है। इसका मतलब है कि इस समय बन रहे कुल हाईवे में सिर्फ 25 प्रतिशत हिस्सेदारी एक्सप्रेसवे की है, जबकि बाकी एक्सेस-कंट्रोल हाईवे हैं। सरकार ने सभी एक्सप्रेसवे को 2025-26 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है। जबकि एक्सेस-कंट्रोल हाईवे 2026-27 तक बनकर तैयार हो जाएंगे।
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Delhi Mumbai Expressway
- फोटो : X/@nitin_gadkari
कम एक्सप्रेसवे क्यों बनाए जा रहे हैं?
नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) के मुताबिक, एक्सप्रेसवे बनाना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें सबसे बड़ी चुनौती भूमि अधिग्रहण (लैंड एक्विजिशन) होती है। ये प्रोजेक्ट आमतौर पर ग्रीनफील्ड होते हैं, यानी इन्हें नए सिरे से शहरी इलाकों से बाहर बनाया जाता है। दूसरी ओर, किसी भी मौजूदा हाईवे को अपग्रेड करके उसे एक्सेस-कंट्रोल हाईवे में बदला जा सकता है। जबकि एक्सप्रेसवे शुरू से ही इस मानक के अनुसार बनाए जाते हैं।
नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) के मुताबिक, एक्सप्रेसवे बनाना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें सबसे बड़ी चुनौती भूमि अधिग्रहण (लैंड एक्विजिशन) होती है। ये प्रोजेक्ट आमतौर पर ग्रीनफील्ड होते हैं, यानी इन्हें नए सिरे से शहरी इलाकों से बाहर बनाया जाता है। दूसरी ओर, किसी भी मौजूदा हाईवे को अपग्रेड करके उसे एक्सेस-कंट्रोल हाईवे में बदला जा सकता है। जबकि एक्सप्रेसवे शुरू से ही इस मानक के अनुसार बनाए जाते हैं।
Delhi Mumbai Expressway
- फोटो : X/@PMOIndia
इसके अलावा, एक्सप्रेसवे का निर्माण काफी महंगा पड़ता है। किसी मौजूदा हाईवे को अपग्रेड करने की तुलना में नया एक्सप्रेसवे बनाना ज्यादा खर्चीला और कठिन होता है। इसी वजह से सरकार पूरी तरह से नए एक्सप्रेसवे बनाने के बजाय एक्सेस-कंट्रोल हाईवे पर ज्यादा ध्यान दे रही है। हालांकि, दोनों के निर्माण मानक अलग-अलग होते हैं, लेकिन इन दोनों में कुछ समानताएं भी होती हैं।
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दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे
- फोटो : वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार
एक्सप्रेसवे और एक्सेस-कंट्रोल हाईवे में क्या अंतर है?
एक्सेस-कंट्रोल हाईवे में एंट्री प्वाइंट सीमित होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे एक्सप्रेसवे में होते हैं। लेकिन दोनों के बीच कुछ मुख्य अंतर हैं। उदाहरण के लिए, किसी सामान्य हाईवे की लेन की चौड़ाई 3.5 मीटर होती है, जबकि एक्सप्रेसवे की लेन थोड़ी चौड़ी यानी 3.75 मीटर होती है।
इसी तरह, हाईवे के साइड शोल्डर (सड़क के किनारे मिट्टी से ढकी हुई जगह) की चौड़ाई 1.5 मीटर होती है, जबकि एक्सप्रेसवे में यह चौड़ाई 3 मीटर तक होती है।
अधिकतर हाईवे चार लेन के होते हैं और ये बड़े शहरों को जोड़ने के लिए बनाए जाते हैं। एक्सप्रेसवे का मकसद भी यही होता है, लेकिन आमतौर पर इनकी लंबाई ज्यादा होती है और ये ज्यादा रफ्तार के लिए डिजाइन किए जाते हैं।
एक्सेस-कंट्रोल हाईवे में एंट्री प्वाइंट सीमित होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे एक्सप्रेसवे में होते हैं। लेकिन दोनों के बीच कुछ मुख्य अंतर हैं। उदाहरण के लिए, किसी सामान्य हाईवे की लेन की चौड़ाई 3.5 मीटर होती है, जबकि एक्सप्रेसवे की लेन थोड़ी चौड़ी यानी 3.75 मीटर होती है।
इसी तरह, हाईवे के साइड शोल्डर (सड़क के किनारे मिट्टी से ढकी हुई जगह) की चौड़ाई 1.5 मीटर होती है, जबकि एक्सप्रेसवे में यह चौड़ाई 3 मीटर तक होती है।
अधिकतर हाईवे चार लेन के होते हैं और ये बड़े शहरों को जोड़ने के लिए बनाए जाते हैं। एक्सप्रेसवे का मकसद भी यही होता है, लेकिन आमतौर पर इनकी लंबाई ज्यादा होती है और ये ज्यादा रफ्तार के लिए डिजाइन किए जाते हैं।