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Trump Tariffs: ट्रंप के टैरिफ से भारतीय ईवी इंडस्ट्री को मिलेगा बढ़ावा या 'मेक-इन-इंडिया' योजनाओं पर होगी चोट?

ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अमर शर्मा Updated Thu, 10 Apr 2025 05:03 PM IST
सार

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए अंतरराष्ट्रीय टैरिफ (शुल्क) नियमों ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में हलचल मचा दी है। भारत की इलेक्ट्रिक व्हीकल (ईवी) इंडस्ट्री भी इससे अछूती नहीं है। खासकर चीन पर लगाए गए इन टैरिफ्स के बाद ऐसा माना जा रहा है कि अब सस्ते और सब्सिडी वाले लिथियम-आयन बैटरी सेल्स भारत में भारी मात्रा में आ सकते हैं।

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Trump’s Tariffs and Indian Automobile Sector: Catalyst for EV Growth or Setback to Make-in-India
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप - फोटो : पीटीआई
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए अंतरराष्ट्रीय टैरिफ (शुल्क) नियमों ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में हलचल मचा दी है। भारत की इलेक्ट्रिक व्हीकल (ईवी) इंडस्ट्री भी इससे अछूती नहीं है। खासकर चीन पर लगाए गए इन टैरिफ्स के बाद ऐसा माना जा रहा है कि अब सस्ते और सब्सिडी वाले लिथियम-आयन बैटरी सेल्स भारत में भारी मात्रा में आ सकते हैं। ये बदलाव भारत के लिए एक ओर जहां मौके लेकर आ सकते हैं, वहीं दूसरी ओर चुनौतियां भी खड़ी कर सकते हैं - खासकर 'मेक इन इंडिया' पहल के लिए।


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Trump’s Tariffs and Indian Automobile Sector: Catalyst for EV Growth or Setback to Make-in-India
Electric Vehicle Charger - फोटो : Freepik
चीन के मुकाबले भारत एक बेहतर विकल्प?
लिथियम-आयन रिसाइकिलिंग संगठन, LICO मटेरियल्स के संस्थापक और सीईओ गौरव डोलवानी के अनुसार, "मुझे लगता है कि भारत चीन प्लस वन रणनीति के लिए एक बेहतरीन विकल्प है। मुझे लगता है कि भारत में बैटरी बनाने का खर्च चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों की तुलना में काफी कम है।"

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Trump’s Tariffs and Indian Automobile Sector: Catalyst for EV Growth or Setback to Make-in-India
Electric car EV charging battery at charger station - फोटो : Freepik
भारत में बैटरी उत्पादन की स्थिति
फिलहाल भारत अपनी जरूरत की 100 प्रतिशत लिथियम-आयन सेल्स आयात करता है। हाल के कुछ वर्षों में देश में लिथियम के भंडार तो जरूर मिले हैं, लेकिन बैटरी सेल मैन्युफैक्चरिंग अब भी अपने शुरुआती चरण पर है। हालांकि, अगले कुछ वर्षों में बड़ा बदलाव आने वाला है। रिलायंस इंडस्ट्रीज गुजरात में एक गीगाफैक्ट्री बना रही है, जो 2030 तक 100 GWh उत्पादन क्षमता तक पहुंचना चाहती है। इसके अलावा, एक्साइड इंडस्ट्रीज भी 6 GWh की क्षमता वाली एक यूनिट बना रही है। और ओला इलेक्ट्रिक पहले ही अपने सिलिंड्रिकल सेल्स का उत्पादन शुरू कर चुकी है।

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Trump’s Tariffs and Indian Automobile Sector: Catalyst for EV Growth or Setback to Make-in-India
Electric Car - फोटो : Freepik
उम्मीदों के बीच चेतावनी भी
अटैरो रिसाइक्लिंग के सीईओ नितिन गुप्ता का मानना है कि भारत की मार्केट में अभी इतनी क्षमता है कि वो इन अतिरिक्त बैटरियों को संभाल सके। लेकिन अगर विदेशी कंपनियों की सस्ती बैटरियों की बाढ़ आ गई, तो इससे भारत में नए निवेश की रफ्तार जरूर धीमी हो सकती है। पहले से ही ईवी की बिक्री धीमी है और गांव-कस्बों में सस्ते वाहनों की मांग भी घटी है। ऐसे में कंपनियों के लिए बाहर से आई सस्ती बैटरियों का इस्तेमाल करके किफायती ईवी बनाना एक आकर्षक विकल्प बन सकता है। 

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Trump’s Tariffs and Indian Automobile Sector: Catalyst for EV Growth or Setback to Make-in-India
Electric Car Charging - फोटो : Freepik
सस्ती बैटरियों के पीछे छुपा खतरा
ईवी उपभोक्ताओं के लिए अगर गाड़ियां सस्ती हों तो ये अच्छी बात है। लेकिन कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसका लॉन्ग-टर्म असर अच्छा नहीं होगा। एप्सिलॉन कार्बन के एमडी विक्रम हांडा के मुताबिक, अगर एक बार चीन की कंपनियां भारत की सप्लाई चेन में जम गईं, तो उन्हें हटाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। वह यह भी बताते हैं कि आज भी कई पीएलआई स्कीम पाने वाली भारतीय कंपनियां चीन से बैटरियां मंगा रही हैं, न कि देश में कोई सप्लाई चेन खड़ी कर रही हैं।

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