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इसलिए लगातार सिकुड़ रहा है चंद्रमा, वैज्ञानिकों ने किए हैरान करने वाले खुलासे

फीचर डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: गौरव शुक्ला Updated Tue, 14 May 2019 07:32 PM IST
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nasa scientist findings in a study that the moon is steadily shrinking AND space world
moon shrinking nasa

बचपन में हमने चांद को लेकर कई कहानियां सुनी हैं लेकिन शायद अब चांद की खूबसूरती मुरझाने लगी है। चांद का आकार पहले के मुकाबले कम हो रहा है यानी यह अब लगातार सिकुड़ता जा रहा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने हाल ही में चांद के सिकुड़ने के नए प्रमाण सामने आने के बाद यह बात कही है। चंद्रमा की सतह पर झुर्रियां पड़ रही हैं। 

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nasa scientist findings in a study that the moon is steadily shrinking AND space world
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : File Photo

चांद से जुड़ा ये चौंकाने वाला खुलासा नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) की और से सोमवार को किया गया है। सोमवार को नासा की और से जारी की गई एक रिपोर्ट में ये बात कही गई है और इस रिपोर्ट के अनुसार चंद्रमा का आकार कम हो रहा है और ये सिकुड़ता जा रहा है। इसके अलावा चांद की सतह पर झुर्रियां भी पड़ रही हैं। नासा की और से चांद की खींची गई हजारों तस्वीरों का विश्लेषण करने के बाद चांद से जुड़ी ये रिपोर्ट बनाई है।

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सांकेतिक तस्वीर - फोटो : SELF

यह जानकारी सोमवार को प्रकाशित नासा के लूनर रीकॉनिसेंस ऑर्बिटर (LRO) द्वारा कैद की गई 12,000 से अधिक तस्वीरों के विश्लेषण के बाद सामने आई है। अध्ययन में पाया गया है कि चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव के पास चंद्र बेसिन 'मारे फ्रिगोरिस' में दरार पैदा हो रही है। इतना ही नहीं ये अपनी जगह से खिसक भी रहा है। 

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सांकेतिक तस्वीर - फोटो : File Photo

वैज्ञानिकों के मुताबिक, पिछले लाखों वर्षों में चांद लगभग 150 फुट (50 मीटर) तक सिकुड़ गया है और ऊर्जा खोने की प्रक्रिया के कारण ही चांद की सतह पर असर पड़ रहा है और चांद का आकार कम हो रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ मेरी लैंड के भूगर्भ विज्ञानी निकोलस चेमर के अनुसार ऐसी संभावना है कि चांद पर लाखों साल पहले हुई भूगर्भीय गतिविधियां अभी तक जारी हैं।

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सांकेतिक तस्वीर - फोटो : Electric Literature

उल्लेखनीय है कि सबसे पहले अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों ने 1960 और 1970 के दशक में चंद्रमा पर भूकंपीय गतिविधि को मापना शुरू किया था। उनका यह विश्लेषण नेचर जीओसाइंस में प्रकाशित किया गया था। इस विश्लेषण में चांद पर आने वाले भूकंपों से जुड़ी बातें लिखी गई थीं।

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