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इन तस्वीरों में गलतियां पता करने के लिए चाहिए दिमाग, आप भी करें ट्राय
बीबीसी हिंदी
Updated Thu, 06 Dec 2018 12:38 PM IST
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तकनीक की तरक्की की वजह से अब ऐसी अक्लमंद मशीनें बन रही हैं जो हमारे आस-पास की चीजों को न सिर्फ पहचान लेती हैं, बल्कि उनकी तस्वीरें भी बनाने में सक्षम हैं। जिस तरह कोई आम इंसान चित्र बनाता है उसी तरह ये बुद्धिमान मशीनें भी उन चीजों की तस्वीरों में उतार लेती हैं जिन्हें उन्होंने देखा होता है। हालांकि एक फर्क जरूर होता है। कलाकार जहां ब्रश से अपनी कृतियां गढ़ते हैं, वहीं ये अक्लमंद मशीनें यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाली मशीनें पिक्सेल दर पिक्सेल कोई तस्वीर गढ़ते हैं। ऊपरी तौर पर मशीनों की बनाई ये तस्वीरें तो ठीक दिखती हैं। पर, करीब से देखें तो इनमें गड़बड़ियां साफ नजर आती हैं।
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कैसे चीजें पहचानती हैं मशीनें?
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हमें ये कैसे पता होता है कि मकड़ी के आठ पैर होते हैं या फिर आगे बढ़ने के लिए कार के सभी टायर एक ही दिशा में होने चाहिए? इसका जवाब ये है कि हम इन सवालों के जवाब अपने आस-पास की चीजों को देखकर जानते हैं। हमारे दिमाग के न्यूरॉन दुनिया की बनावट से हमारा परिचय करवाते हैं और ये जानकारियां आंखों के जरिए हमारे दिमाग तक पहुंचती हैं। इसी तरह बुद्धिमान मशीनों को भी ट्रेनिंग दी जाती है। उन्हें ढेर सारी तस्वीरें और चीजें दिखाई जाती हैं, ताकि वो उन्हें पहचानना सीख सकें। मशीनों और हमारे बीच फर्क ये है कि हम कुछ तस्वीरों से ही चीजों को जान-पहचान जाते हैं। लेकिन, मशीनों को छोटी-छोटी चीजें पहचानने के लिए लाखों तस्वीरें दिखानी पड़ती हैं।
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गूगल की कंपनी अल्फाबेट ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाली ऐसी ही एक मशीन बनाई है जिसका नाम है बिगगैन। इसकी खासियत ये है कि इसके भीतर दो दिमाग हैं। एक मशीनी दिमाग जो तस्वीरें गढ़ता है और दूसरा जो इन तस्वीरों और असली तस्वीरों में फर्क का पता लगाता है। इस पड़ताल के जरिए ये बुद्धिमान मशीन खुद को बेहतर बनाती है। अमरीका की हेरिओट-वॉट यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर वैज्ञानिक एंड्रू ब्रॉक कहते हैं, "वक्त के साथ-साथ ये मशीनें अपने आस-पास की चीजों की बनावट पहचानने लगती हैं और इनकी बनाई तस्वीरें भी बेहतर होती जाती हैं।" लगातार ट्रेनिंग के बाद पिक्सेल से तस्वीरें बनाने वाली मशीनें फर या किसी खुरदरी सतह को भी परख लेती हैं। इमारतों और पंछियों की बेहतर तस्वीरें भी बनाना शुरू कर देती हैं। लेकिन, इन अक्लमंद मशीनों का ऊट-पटांग तस्वीरें बनाने का सिलसिला फिलहाल नहीं थम रहा है।
कभी पैर गायब तो कभी आंखें?
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एंड्रू ब्रॉक कहते हैं कि, "मशीनों की बनाई इन तस्वीरों को देखें तो लगता है कि ये फर, घास और आसमान की तस्वीरें अच्छे से बना लेते हैं। दिक्कत ये होती है कि ये गिनती ठीक से नहीं कर पाते। नतीजतन कारों के आठ टायर हो जाते हैं, तो परिंदों के कई पर। ये हवाई जहाज का पंख ही गायब कर देती हैं।" यही वजह है कि ऊपरी तौर पर तो मशीनों की बनाई तस्वीरें ठीक दिखती हैं लेकिन पास से देखने पर इनकी कमियां साफ दिखती हैं। कभी परिंदों की तस्वीरों से पैर गायब होते हैं, तो कभी आंखें।
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इन मशीनों की सबसे बड़ी कमी ये है कि ये अलग-अलग एंगल से दिखने वाली तस्वीर को अच्छे से नहीं समझ पाते हैं। वहीं, इंसान का दिमाग इस मामले में उस्ताद होता है। हमें अखबार के पीछे की तस्वीर का भी अंदाजा हो जाता है। किसी घर को एक तरफ से देखकर हम दूसरी तरफ की तस्वीर का अनुमान लगा लेते हैं। ये कमी खास तौर से मशीनों में होती है। वो उसी आंकड़े से अनुमान लगाती हैं, जो उनमें फीड किए गए होते हैं। अब इस कमी से पार पाने के लिए मशीनों में और भी डेटा डालने की जरूरत होगी। लेकिन, गूगल के डीपमाइंड प्रोजेक्ट में शोधकर्ता ऐसी मशीनें बनाने में जुटे हैं, जो इस कमी को खुद से दूर करने की कोशिश करेंगी।
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