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#VoteKaro: पंजाब में 13 सीटों पर लोकसभा चुनाव जीतने की 'जंग', जानिए और चुनिए अपना सांसद
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़
Published by: खुशबू गोयल
Updated Sun, 19 May 2019 06:43 AM IST
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पंजाब में भाजपा-अकाली दल गठबंधन
- फोटो : Amar Ujala
पंजाब में 13 लोकसभा सीटों पर चुनाव जीतने की जंग शुरू हो चुकी है। 19 मई को मतदान होना है, इससे पहले प्रत्याशियों के बारे में जानिए और फिर सोचिए, किसे चुनना है सांसद...
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हरदीप सिंह पुरी, केंद्रीय मंत्री
अमृतसरः करीब दो दशक तक भाजपा का गढ़ रहे अमृतसर पर 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की जीत के साथ कब्जा किया। 2017 के उपचुनाव में कांग्रेस के गुरजीत सिंह औजला विजयी रहे। अब कांग्रेस ने यहां से औजला को ही प्रत्याशी बनाया है, जिन्हें भाजपा के नए प्रत्याशी हरदीप सिंह पुरी से मुकाबला करना है।
हरदीप पुरी(भाजपा)-- केंद्रीय मंत्री हैं और अमृतसर में शहरी सिखों के वोटों का लाभ मिल सकता है, लेकिन हेलीकॉप्टर प्रत्याशी हैं। इनका कोई जमीनी आधार भी नहीं है और देरी से उम्मीदवार घोषित होने से बैकफुट पर भी हैं।
गुरजीत औजला(कांग्रेस)-- मौजूद सांसद हैं और उपुचनाव भी जीत चुके हैं। आठ विधायक इनके साथ हैं। लेकिन गुरजीत गुरुनगरी में कोई बड़ा विकास का प्रोजेक्ट नहीं ला पाए हैं और पार्षद स्तर की राजनीति तक ही सिमटे हुए हैं।
कुलदीप धालीवाल(आप)-- इनकी नजर जट सिखों के वोटों पर हैं। एनआरआई हैं और पहली बार राजनीति में कदम रखा है। वहीं शहरी सिखों में इनका कोई आधार नहीं है और अमृतसर में पार्टी का जनाधार भी बिख चुका है।
हरदीप पुरी(भाजपा)-- केंद्रीय मंत्री हैं और अमृतसर में शहरी सिखों के वोटों का लाभ मिल सकता है, लेकिन हेलीकॉप्टर प्रत्याशी हैं। इनका कोई जमीनी आधार भी नहीं है और देरी से उम्मीदवार घोषित होने से बैकफुट पर भी हैं।
गुरजीत औजला(कांग्रेस)-- मौजूद सांसद हैं और उपुचनाव भी जीत चुके हैं। आठ विधायक इनके साथ हैं। लेकिन गुरजीत गुरुनगरी में कोई बड़ा विकास का प्रोजेक्ट नहीं ला पाए हैं और पार्षद स्तर की राजनीति तक ही सिमटे हुए हैं।
कुलदीप धालीवाल(आप)-- इनकी नजर जट सिखों के वोटों पर हैं। एनआरआई हैं और पहली बार राजनीति में कदम रखा है। वहीं शहरी सिखों में इनका कोई आधार नहीं है और अमृतसर में पार्टी का जनाधार भी बिख चुका है।
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Harsimrat Kaur Badal
बठिंडा : यहां से अकाली दल की वर्तमान सांसद हरसिमरत कौर चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस ने विधायक राजा वडिंग को और आम आदमी पार्टी ने विधायक बलजिंदर कौर को मैदान में उतारा है। इनके अलावा पंजाब डेमोक्रेटिक अलाइंस के प्रत्याशी के रूप में सुखपाल सिंह खैरा भी मुकाबले में शामिल हैं। अकाली दल के लिए यह सीट सबसे अहम है। खैरा को फायर ब्रांड माना जाता है और उन्होंने भुलत्थ सीट से अपना इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को भेज दिया है, लेकिन वह मंजूर नहीं हुआ है।
हरसिमरत कौर(अकाली दल)-- दो बार इस सीट से सांसद रह चुकी हैं। केंद्रीय मंत्री के रूप में इन्होंने हलके में कई काम करवाए हैं। लेकिन अकाली दल पर लगे बेअदबी के आरोपों की आंच इन तक भी पहुंची। वहीं इन पर कोई बड़ा प्रोजेक्ट न ला पाने के आरोप भी लगे हैं।
राजा वड़िंग(कांग्रेस)-- मौजूद विधायक हैं और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नजदीकी माने जाते हैं। बाहरी प्रत्याशी हैं और अकसर अपने बयानों को लेकर विवादों में रहते हैं। इन पर आप वर्करों को पैसे बांटने के आरोप भी लगे हैं।
हरसिमरत कौर(अकाली दल)-- दो बार इस सीट से सांसद रह चुकी हैं। केंद्रीय मंत्री के रूप में इन्होंने हलके में कई काम करवाए हैं। लेकिन अकाली दल पर लगे बेअदबी के आरोपों की आंच इन तक भी पहुंची। वहीं इन पर कोई बड़ा प्रोजेक्ट न ला पाने के आरोप भी लगे हैं।
राजा वड़िंग(कांग्रेस)-- मौजूद विधायक हैं और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नजदीकी माने जाते हैं। बाहरी प्रत्याशी हैं और अकसर अपने बयानों को लेकर विवादों में रहते हैं। इन पर आप वर्करों को पैसे बांटने के आरोप भी लगे हैं।
Sukhbir Badal
- फोटो : File Photo
फिरोजपुर : अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल के यहां से चुनाव मैदान में उतरने के कारण इस सीट पर भी सबकी नजरें टिकी रहेंगी। यहां सुखबीर बादल का मुकाबला कांग्रेस के शेर सिंह घुबाया से है, जो इसी सीट पर लगातार दो बार अकाली दल की टिकट पर ही सांसद हैं। इस साल घुबाया अकाली दल को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। मुख्य मुकाबला इन दोनों के बीच माना जा रहा है। हालांकि आम आदमी पार्टी हरजिंद सिंह और पीडीए हंसराज गोल्डन को मैदान में उतारा है।
सुखबीर बादल(अकाली दल)-- दो बार डिप्टी सीएम रह चुके हैं। मोदी नाम का सहारा लेकर मैदान में उतरे हैं। वहीं इन्होंने प्रदेश में विकास का दावा ठोका है। लेकिन बेअदबी कांड और बहिबल गोलीकांड के कारण सिख समाज इनसे नाराज है।
शेर सिंह घुबाया(कांग्रेस)-- दो बार इस सीट से सांसद रह चुके हैं। राय सिख बिरादरी में अच्छी पकड़ रखते हैं। लेकिन ठीक चुनाव से पहले अकाली दल छोड़कर कांग्रेस में आने से वोटरों का एक वर्ग इनसे नाराज है।
सुखबीर बादल(अकाली दल)-- दो बार डिप्टी सीएम रह चुके हैं। मोदी नाम का सहारा लेकर मैदान में उतरे हैं। वहीं इन्होंने प्रदेश में विकास का दावा ठोका है। लेकिन बेअदबी कांड और बहिबल गोलीकांड के कारण सिख समाज इनसे नाराज है।
शेर सिंह घुबाया(कांग्रेस)-- दो बार इस सीट से सांसद रह चुके हैं। राय सिख बिरादरी में अच्छी पकड़ रखते हैं। लेकिन ठीक चुनाव से पहले अकाली दल छोड़कर कांग्रेस में आने से वोटरों का एक वर्ग इनसे नाराज है।
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सुनील जाखड़
गुरदासपुर : कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ इस सीट से सांसद हैं और पार्टी ने उन्हें ही लोकसभा चुनाव के लिए टिकट दिया है। यह सीट अकाली-भाजपा गठबंधन के तहत भाजपा के हिस्से में आती है और भाजपा की ओर से सन्नी देओल को चुनाव में उतारा गया है। ऐसे में उनके मैदान में आने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है। हलके में सनी के रोड शो भीड़ जुटाने में कामयाब हुए हैं। अब देखना यह है कि जुट रही भीड़ वोटों में कितनी तब्दील होती है। वैसे भाजपा इस सीट पर विनोद खन्ना के रूप में बॉलीवुड अभिनेता को आजमा चुकी है, जो दो बार यहां से सांसद रहे। विनोद खन्ना के निधन के बाद हुए उपचुनाव में सुनील जाखड़ यहां से जीते थे। इस सीट पर आप ने पीटर मसीह को चुनाव में उतारा है। पीडीए ने लालचंद कटारुचक्क को प्रत्याशी बनाया है।
सुनील जाखड़(कांग्रेस)-- मौजूदा सांसद हैं और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं। राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। लेकिन सांसद के तौर पर हलके के लिए काम करने का मौका इन्हें ज्यादा नहीं मिला। पार्टी अध्यक्ष होने के कारण व्यस्तता ज्यादा है।
सनी देओल(भाजपा)-- पीएम मोदी के नाम और स्टारडम के सहारे चुनावी दंगल में उतरे हैं। भाजपा की पूरी लीडरशिप का साथ इन्हें मिल रहा है। लेकिन राजनीति में पहली बार आए हैं। पैराशूट प्रत्याशी का ठप्पा इनके नाम पर लगा है और स्थानीय भाजपाइयों को रास भी नहीं आ रहे हैं।
सुनील जाखड़(कांग्रेस)-- मौजूदा सांसद हैं और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं। राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। लेकिन सांसद के तौर पर हलके के लिए काम करने का मौका इन्हें ज्यादा नहीं मिला। पार्टी अध्यक्ष होने के कारण व्यस्तता ज्यादा है।
सनी देओल(भाजपा)-- पीएम मोदी के नाम और स्टारडम के सहारे चुनावी दंगल में उतरे हैं। भाजपा की पूरी लीडरशिप का साथ इन्हें मिल रहा है। लेकिन राजनीति में पहली बार आए हैं। पैराशूट प्रत्याशी का ठप्पा इनके नाम पर लगा है और स्थानीय भाजपाइयों को रास भी नहीं आ रहे हैं।