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Bhojpuri: भोजपुरी फिल्मों के नाम क्यों होते हैं बॉलीवुड की कॉपी, बता रहे हैं इंडस्ट्री के दिग्गज फिल्मकार

अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई Published by: मेघा चौधरी Updated Sat, 25 Feb 2023 12:48 PM IST
सार

Reason Behind Bhojpuri films name copied from Bollywood dinesh lal yadav Arvind Choubey Dinkar Kapoor

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Reason Behind Bhojpuri films name copied from Bollywood dinesh lal yadav Arvind Choubey Dinkar Kapoor
इंडस्ट्री के दिग्गज फिल्मकार - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
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भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत फिल्म 'गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो' से हुई। एक लंबे अरसे तक भोजपुरी सिनेमा के शीर्षकों में मिट्टी की खुशबू और इसकी संस्कृति की मिठास कायम रही। 'धरती मइया', 'गंगा किनारे मोरा गांव', 'हमार भौजी', 'दूल्हा गंगा पार के', 'बैरी कंगना' जैसे शीर्षकों से सैकड़ों फिल्में बनीं।  फिर आया 'विवाह', 'संघर्ष', 'गुलामी', 'गॉडफादर', 'जीना तेरी गली में', 'बागी', 'अंधा कानून', 'कभी खुशी कभी गम' जैसी भोजपुरी फिल्मों का जमाना। हिंदी सिनेमा कहानियों की कमी से जूझ रहा है और भोजपुरी सिनेमा शीर्षकों के नाम सोच न पाने के दौर से। भोजपुरी फिल्मों के नाम हिंदी फिल्मों के नाम पर रखने की क्या वजह रही है, आइए जानते हैं भोजपुरी सिनेमा के इन दिग्गजों से.....

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Reason Behind Bhojpuri films name copied from Bollywood dinesh lal yadav Arvind Choubey Dinkar Kapoor
निरहुआ - फोटो : सोशल मीडिया

दिनेश लाल यादव निरहुआ, अभिनेता
हमारी कोशिश तो यही रहती कि भोजपुरी फिल्मों के जो टाइटल हो वह भोजपुरी भाषा से मिलते जुलते रहे ताकि भोजपुरी सिनेमा की गरिमा बनी रहे लेकिन कभी कभी कुछ प्रोड्यूसर ऐसे ही आते है जो भोजपुरी भाषी नहीं होते और उनकी इच्छा होती है कि भोजपुरी फिल्मों का नाम हिंदी से मिलता जुलता रहे। वैसे देखा जाए तो हिंदी और भोजपुरी के दर्शक वही हैं। अगर मैने 'निरहुआ रिक्शा वाला' की है तो भोजपुरी में 'बॉर्डर' जैसी फिल्में की हैं और दोनों फिल्मों को दर्शको का बहुत प्यार मिला, कहने का मतलब यह है कि आप बना क्या रहे हैं, टाइटल भोजपुरी में हो या हिंदी में इससे हमारे दर्शको पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।

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मनोज पांडे - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई

मनोज पांडे, लेखक
देखा जाए तो भोजपुरी सिनेमा में भोजपुरी ही टाइटल  होना चाहिए तभी उसकी मौलिकता बनी रहेगी। जिस तरह से मराठी, साउथ या फिर बाकी क्षेत्रीय सिनेमा की फिल्मों के टाइटल होते हैं। भोजपुरी फिल्मों में हिंदी फिल्मों का टाइटल रखना एक तरह से मानसिक दिवालियापन है, अगर आपको हिंदी फिल्मों के टाइटल रखने हैं तो हिंदी फिल्म ही बनाइए। मुझे हिंदी भाषा से कोई समस्या नहीं है लेकिन अगर आप भोजपुरी फिल्म बना रहे हैं तो टाइटल भोजपुरी में ही होना चाहिए। 90 के दशक में जो हिंदी फिल्में बन रही थी, अब वही भोजपुरी में बन रही हैं। क्या भोजपुरी में मौलिकता नहीं है? क्या भोजपुरी में कहानियां नहीं है? आज दर्शकों के भोजपुरी सिनेमा से दूर होने का कारण कहीं ना कहीं यही है कि उन्हें उनकी संस्कृति से जुड़ी फिल्में देखने को नहीं मिल रही हैं। आज भी भोजपुरी सिनेमा के निर्माता- निर्देशक को वही विश्वास जगाना होगा जैसे 'गंगा किनारे मोरा गांव', 'हंमार भौजी' जैसी फिल्में बनती थी।

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एस के चौहान - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई

एस के चौहान, लेखक
भोजपुरी में फिल्में बहुत बन रहीं है,लेकिन जब आप टाइटल के रजिस्ट्रेशन के लिए जाते हैं तो पता चलता है कि एक एक बैनर के नाम पर पहले से ही 100-150 टाइटल पहले से ही रजिस्टर्ड है। जब प्रोड्यूसर को भोजपुरी में टाइटल नहीं मिलता है तब उसी से मिलता जुलता कोई ना कोई टाइटल रख लेते हैं। अब देख लीजिए, दिनेश लाल यादव निरहुआ जी के बैनर पर ही कम से कम 150 टाइटल रजिस्टर्ड हैं। अब भोजपुरी सिनेमा में भी काफी बदलाव आ गया है पहले भोजपुरी फिल्में पूरा परिवार साथ में देखता था और आज सिर्फ वह युवा वर्ग देख रहा है जिसके हाथ में मोबाइल है और हर भाषा की सिनेमा वह देख रहा है। इंग्लिश बोलने वाले लड़के भोजपुरी बोलने में शर्म महसूस कर रहे हैं, इसलिए भोजपुरी फिल्में हिंदी और साउथ के स्टाइल में बन रही हैं और नाम भी हिंदी से मिलता जुलता है।

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निरहुआ के साथ दिनकर कपूर - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई

दिनकर कपूर, निर्देशक
ऐसी बात नहीं है कि फिल्म के टाइटल नहीं मिलते हैं। हिंदी फिल्मों के टाइटल भोजपुरी में लोग इस लिए रख रहे हैं, क्योंकि लोगों को लगता है कि इससे दर्शक जुड़ जाते हैं। कुछ टाइटल उनको इतना अच्छे लगते हैं कि टाइटल से ही फिल्म देखने थिएटर में चले आते हैं। बाकी लोग फिल्मों के टाइटल कहानी के हिसाब से रख लेते हैं, जैसे मेरी एक फिल्म दिनेश लाल यादव निरहुआ के साथ 'रिश्तों का  बंटवारा' है। अब अगर आप कहें कि 'बटवारा' के नाम से जे पी दत्ता साहब का पहले ही हिंदी फिल्म बना चुके हैं, तो  'बंटवारा' नाम क्यों रखा? इसलिए मैंने 'रिश्तों का बटवारा' रखा है। मैने एक फिल्म 'मुन्ना बजरंगी' बनाई तो लोग कहने लगे कि यह बाहुबली मुन्ना बजरंगी की कहानी होगी, लेकिन यह कहानी मुन्ना और बजरंगी नाम के दो किरदार की थी। ऐसा नहीं है कि सभी भोजपुरी फिल्मों के टाइटल हिंदी फिल्मों के ही है। मैंने एक फिल्म 'सिंदूर दान' बनाई थी देखा जाए तो यह भी भोजपुरी टाइटल हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हिंदी से लिया हुआ टाइटल है या फिर भोजपुरी में टाइटल है।

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