पहली ओटीटी हिंदी ओरिजिनल फिल्म ‘लव पर स्क्वायर फिट’ और पहली हिंदी म्यूजिकल वेब सीरीज ‘बंदिश बैंडिट्स’ निर्देशित करने वाले आनंद तिवारी मानते हैं कि उनका अभिनेता बनना बस संयोग भर रहा, असल में उनका शौक किस्सागोई ही है। चार पीढ़ी पहले रायबरेली से मुंबई जा बसे तिवारी परिवार के आनंद से ये खास बातचीत की ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल ने।
Anand Tiwari Video Interview: हर कलाकार को थोड़ा बागी होना ही चाहिए, बंदिश बैंडिट्स नाम के लिए माफी मांगता हूं
पहली ओटीटी हिंदी ओरिजिनल फिल्म ‘लव पर स्क्वायर फिट’ और पहली हिंदी म्यूजिकल वेब सीरीज ‘बंदिश बैंडिट्स’ निर्देशित करने वाले आनंद तिवारी मानते हैं कि उनका अभिनेता बनना बस संयोग भर रहा, असल में उनका शौक किस्सागोई ही है।
लोग आपको लंबे समय से अभिनेता के तौर पर ही पहचानते रहे हैं, लेकिन ‘बंदिश बैंडिट्स’ ने आपकी ये पहचान ही बदल दी, संगीत से प्रेम आपको कब हुआ?
संगीत मेरे लिए बहुत जरूरी रहा है क्योंकि मैं घर का बहुत शर्मीला बच्चा रहा। मेरे दो बड़े भाई बिल्कुल ‘अल्फा’ हैं। दोनों बकैती के मास्टर। मैं अपनी जगह बनाने के संकट से जब गुजर रहा था तभी मुझे संगीत की संगत में ये समझ आया कि ये मेरे जीवन को एक दिशा दे रहा है। मेरे एहसासों ने संगीत के जरिये बाहर आना शुरू किया और संगीत से ये मेरा रिश्ता इस तरह बना। अभिनय मेरे लिए बस एक ‘एक्सीडेंट’ था। मैं हमेशा से कहानियां कहना चाहता था। पहले दूसरों की बात मैं अपने अभिनय से कह रहा था। अब मैंने और अमृत (अमृत पाल सिंह बिंद्रा) ने जब से ये कंपनी खोली है तब से अपनी बात कहने पर ही फोकस रखा है। मैं समझता हूं कि किसी का तो ये आशीर्वाद है कि ये सीरीज बनाने का मौका हमें ही मिला।
और, इस सीरीज में कलाकारों का अभिनय देखकर लोग बहुत प्रभावित हो रहे हैं। अतुल कुलकर्णी, शीबा चड्ढा, ऋत्विक भौमिक इनको गाते देख लग रहा है कि ये सब निपुण गायक हैं..
हां, ये प्रतिक्रियाएं वाकई हौसला बढ़ाने वाली हैं। सबने जितनी मेहनत हो सकती थी इन किरदारों के लिए वह की है। अपनी अपनी श्वास शक्ति बढ़ाई है। हमारी श्वास प्रक्रिया ठीक नहीं होती है अक्सर, गायकों को इसके बारे में बचपन से अभ्यास कराया जाता है। बड़े गायकों से हम अक्सर सुनते हैं कि उन्होंने गायन सीखना शुरू करने में देर कर दी क्योंकि उनकी शुरुआत पांच साल की उम्र में हुई। तो गायकी बोलने के साथ ही सीखने वाली विधा है। बच्चा तभी से तपस्या में बैठ जाता है और फिर जो सरलता जो मेरुदंड की शक्ति उस बच्चे में आती है, वह बड़ा होने पर नहीं आ पाती।
हिंदी सिनेमा में ऋषि कपूर उन अभिनेताओं में अव्वल नंबर माने जाते हैं जो गायकों के गाए गानों पर अपने होंठ बिल्कुल सटीक चलाते थे, यानी उनका लिप सिंक बेहतरीन रहा है, ‘बंदिश बैंडिट्स’ के गाने रचते समय इनको श्रोताओं या दर्शकों के नजरिये से कितना सोचा गया है?
जी, उसके लिए कई चीजें सोचनी पड़ती है। एक तो ये कि उसे क्षण के लिए वह गाना कितना सही है? दूसरा उसका ध्वन्यात्मक प्रभाव कितना सही है? क्या उसको सुनकर लोग बार-बार उसे सुनना चाहेंगे? सीरीज में हम सिर्फ गाने नहीं सुना रहे हैं। आपको उसके अंदर छुपी कहानी भी कह रहे हैं।
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और, इतनी उत्कृष्ट हिंदी आपने कहां से सीखी, जन्म तो आपका मुंबई का ही है ना?
चार पीढ़ी पहले हमारा परिवार रायबरेली से महाराष्ट्र आ गया था। बंबइया और महाराष्ट्र का पुट लिए हिंदी भी घर पर बोली जाती है। जिस हिंदी की आपने तारीफ की, वह हिंदी मेरी रंगमंच की संगत में ठीक हुई। जब मैंने रंगमंच करना शुरू किया तो मेरे कई दोस्त भोपाल, जबलपुर, इंदौर और उत्तर प्रदेश के बने और तब मुझे लगा कि मैं तिवारी होकर बहुत बुरी हिंदी बोलता हूं। ये भी कि अगर मुझे इस भाषा में काम करना है तो पहले अपनी हिंदी मुझे ठीक करनी होगी। अभी भी कई बार मैं फंस जाता हूं।
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