फिल्म गुलाब गैंग से डेब्यू करने के बाद वॉय चीट इंडिया तक आते आते निर्देशक सौमिक सेन ने हिंदी सिनेमा पूरा चोला ओढ़ लिया है। कभी रनबीर कपूर को लीड रोल में लेकर बनने जा रही मशहूर गायक किशोर कुमार की बायोपिक लिखने वाले सौमिक पर बंगाली सिनेमा का काफी असर भी रहा है। दिक्कत यहां ये है कि हिंदी सिनेमा का दर्शक कल्पनाशीलता में यकीन नहीं करता। वह उतना ही समझता है जितना परदे पर दिख रहा है। इमरान हाशमी की फिल्म टाइगर्स में भी यही दिक्कत रही, वॉय चीट इंडिया भी इसी का शिकार है। फिल्म बोरिंग नहीं है लेकिन इसकी रिसर्च, पटकथा और सेटिंग 10 साल पहले की है।
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वॉय चीट इंडिया Movie Review: पुरानी कहानी पर नए करतब दिखाते इमरान हाशमी
एंटरटेनमेंट डेस्क, अमर उजाला
Published by: विजय जैन
Updated Fri, 18 Jan 2019 12:32 PM IST
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Emraan Hashmi
फिल्म – वॉय चीट इंडिया
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फिल्म गुलाब गैंग से डेब्यू करने के बाद वॉय चीट इंडिया तक आते आते निर्देशक सौमिक सेन ने हिंदी सिनेमा पूरा चोला ओढ़ लिया है। कभी रनबीर कपूर को लीड रोल में लेकर बनने जा रही मशहूर गायक किशोर कुमार की बायोपिक लिखने वाले सौमिक पर बंगाली सिनेमा का काफी असर भी रहा है। दिक्कत यहां ये है कि हिंदी सिनेमा का दर्शक कल्पनाशीलता में यकीन नहीं करता। वह उतना ही समझता है जितना परदे पर दिख रहा है। इमरान हाशमी की फिल्म टाइगर्स में भी यही दिक्कत रही, वॉय चीट इंडिया भी इसी का शिकार है। फिल्म बोरिंग नहीं है लेकिन इसकी रिसर्च, पटकथा और सेटिंग 10 साल पहले की है।
फिल्म गुलाब गैंग से डेब्यू करने के बाद वॉय चीट इंडिया तक आते आते निर्देशक सौमिक सेन ने हिंदी सिनेमा पूरा चोला ओढ़ लिया है। कभी रनबीर कपूर को लीड रोल में लेकर बनने जा रही मशहूर गायक किशोर कुमार की बायोपिक लिखने वाले सौमिक पर बंगाली सिनेमा का काफी असर भी रहा है। दिक्कत यहां ये है कि हिंदी सिनेमा का दर्शक कल्पनाशीलता में यकीन नहीं करता। वह उतना ही समझता है जितना परदे पर दिख रहा है। इमरान हाशमी की फिल्म टाइगर्स में भी यही दिक्कत रही, वॉय चीट इंडिया भी इसी का शिकार है। फिल्म बोरिंग नहीं है लेकिन इसकी रिसर्च, पटकथा और सेटिंग 10 साल पहले की है।
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मेहनत करके इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा पास करने वाले एक होनहार छात्र सत्येंद्र दुबे को राकेश सिंह उर्फ रॉकी अपने काम के लिए मुफीद मानता है। वह सत्तू को मुन्नाभाई बना देता है। गिनती की सीटों के लिए अनगिनत उम्मीदवारों की बाढ़ को संभाला तो नहीं जा सकता लेकिन इस बाढ़ में अपने मतलब साधने वाले पूरे देश में फैले हैं। इनके पास हर इम्तिहान को पास करने का जुगाड़ है, चीटिंग के तरीके हैं और है वो सब कुछ जो किसी भी नए नए जवान हुए छात्र को बहका सकता है।
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फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसकी कहानी ही है। सौमिक सेन ने तीन साल पहले बिहार के ही एक राइटर से रंजीत डॉन की कहानी सुनी थी। रंजीत में फिक्शन का तड़का लगाकर इसे रॉकी बना दिया गया। कहानी लपक लेने वाले निर्देशकों के साथ दिक्कत ये होती है कि वे कहानी की आत्मा समझने की कभी कोशिश नहीं करते। सब कुछ नकली इसी के बाद लगना शुरू होता है। सौमिक का काम कहानी के अलावा निर्देशन में भी गड़बड़ है।
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इमरान हाशमी वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई के गेटअप के आसपास का काइयांपन चेहरे पर ओढ़े रहते हैं। डॉयलॉगबाजी भी वह उसी अंदाज़ में करते हैं। लेकिन, वहां उनके डॉयलॉग उनका दम दिखाते थे, यहां इनका कैरेक्टर कम होना। सिनेमा का असल तिलिस्म है दर्शक में सही बात के लिए जोश भरना लेकिन जब संवाद, “मेहनत मिडिल क्लास के लोग करते हैं, बड़े लोग तो स्कैम करते हैं” जैसे हों तो दर्शकों को एक बारगी सोचना पड़ता है कि फिल्म वह मनोरंजन के लिए देखने आए हैं या खुद पर कटाक्ष सुनने।
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Emraan Hashmi
- फोटो : social media
तकनीकी लिहाज से भी फिल्म औसत से आगे नहीं बढ़ पाती। फिल्म सिर्फ दो लोगों के लिए देखी जा सकती है, एक इमरान हाशमी की नियंत्रित अदाकारी और दूसरे सत्तू बने स्निग्धदीप के लिए। स्निग्धदीप में कल के राजकुमार राव या विकी कौशल की झलक मिलती है। इस कलाकार को सही किरदार मिले तो ये हिंदी सिनेमा में अच्छे अदाकारों की लिस्ट में एक नया नाम जोड़ सकता है। अमर उजाला डॉट कॉम के रिव्यू में वॉय चीट इंडिया को मिलते हैं दो स्टार।