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Movie Thamma Review: डर, रोमांस और कॉमेडी की उलझी हुई कहानी, जो आधे रास्ते में ही दम तोड़ देती है
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सार
Thamma Movie Review: फिल्म 'थामा' आज 21 अक्तूबर को सिनेमाघरों रिलीज हो गई है। यह फिल्म क्योंकि मैडॉक के हॉरर कॉमेडी यूनिवर्स का हिस्सा है, इसलिए दर्शक इसे देखने के लिए उत्साहित हैं। फिल्म कैसी है? पढ़िए पूरा रिव्यू

'थामा' मूवी रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला
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Movie Review
'थामा'
कलाकार
आयुष्मान खुराना
,
रश्मिका मंदाना
,
परेश रावल
और
नवाजुद्दीन सिद्दीकी
लेखक
निरेन भट्ट
,
अरुण फुलारा
और
सुरेश मैथ्यू
निर्देशक
आदित्य सरपोतदार
निर्माता
दिनेश विजन
और
अमर कौशिक
रिलीज:
21 अक्तूबर 2025
रेटिंग
1.5/5
विस्तार
मैडॉक फिल्म्स का हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स पहले नई सोच और मजेदार फिल्मों के लिए जाना जाता था। ‘स्त्री’ और ‘भेड़िया’ जैसी फिल्मों ने इस जॉनर को मजबूत बनाया। ऐसे में जब ‘थामा’ आई, तो ऑडियंस को उम्मीद थी कि यह यूनिवर्स एक नई ऊंचाई छुएगा। लेकिन अफसोस, ‘थामा’ उन उम्मीदों पर पूरी तरह खरी नहीं उतरती। फिल्म का मुख्य मुद्दा यही है कि यह न डराती है, न हंसाती है और कहानी भी अधूरी महसूस होती है।
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कहानी:
कहानी दिल्ली के पत्रकार आलोक (आयुष्मान खुराना) के इर्द-गिर्द घूमती है जो अपने दोस्तों के साथ ट्रैकिंग पर जाता है। ट्रैकिंग के दौरान अचानक भालू हमला करता है और तड़ाका (रश्मिका मंदाना) उसकी जान बचाती है। इसके बाद वह वैम्पायरों की दुनिया में फंस जाता है।
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शुरुआत में कहानी थोड़ी रोचक लगती है, लेकिन जैसे ही फिल्म इंटरवल के बाद आगे बढ़ती है, सब बिखर जाता है। न डर का असर बचता है, न रोमांस या कॉमेडी का संतुलन। क्लाइमेक्स बहुत जल्दबाजी में खत्म किया गया है, जिससे अंत में कोई इमोशनल असर नहीं रहता।

एक्टिंग:
आयुष्मान खुराना अपने किरदार में ठीक हैं। उन्होंने अपने किरदार में डर और उत्सुकता के भाव दिखाने की कोशिश की है, लेकिन कमजोर कहानी और असंतुलित स्क्रीनप्ले के कारण उनका पूरा असर नहीं दिखता।
रश्मिका मंदाना स्क्रीन पर सिर्फ दिखने में आकर्षक हैं, लेकिन उनका किरदार पूरी तरह फ्लैट है। उनका डायलॉग डिलीवरी भी बहुत कमजोर और बेअसर है, जिससे सीन में इमोशन बिलकुल नहीं आता।
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी वैम्पायर के रूप में कई जगह बहुत ही ज्यादा ड्रामैटिक और ओवर-द-टॉप लगते हैं, जिससे कुछ सीन हंसी का कारण बन जाते हैं और फिल्म का टोन और भी असंतुलित हो जाता है। परेश रावल हल्का हास्य जोड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन लगता है जैसे उन्होंने ...'मजाक करना याद आया है, लेकिन तरीका भूल गए' वाली स्टाइल अपनाई हो। अभिषेक बनर्जी कैमियो में आते हैं और एक झलक के लिए याद रहते हैं। वहीं, वरुण धवन का कैमियो हल्का लंबा है, लेकिन यह भी कहानी में जान डालने से चूकते है।

निर्देशन और स्क्रीनप्ले:
आदित्य सरपोतदार शायद फिल्म को बड़ा विजुअल अनुभव बनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सिर्फ सेट और सिनेमैटोग्राफी पर भरोसा करके उन्होंने कहानी को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। जंगल और वैम्पायर की दुनिया थोड़ी खूबसूरत है, लेकिन यह सिर्फ दिखावा है...कहानी में कोई दम नहीं है। फिल्म का टोन पूरी तरह अस्थिर है ...एक सीन में डर, अगले में हल्की कॉमेडी, जिससे देखने वाला खुद समझ नहीं पाता कि उसे हंसना है या डरना। स्क्रीनप्ले इंटरवल के बाद पूरी तरह बिखर जाता है और कई सीन सिर्फ ठीक दिखाने के लिए डाले गए हैं, जो कहानी को और कमजोर और उबाऊ बनाते हैं।
म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर:
तकनीकी तौर पर फिल्म कुछ हद तक मजबूत है। बैकग्राउंड स्कोर कई जगह डर पैदा करने की कोशिश करता है, लेकिन कई बार यह शोर में बदल जाता है। गाने कहानी की गति को रोकते हैं और फिल्म को धीमा बना देते हैं।
देखें या नहीं:
'थामा’ केवल उन लोगों के लिए है जो आयुष्मान खुराना और रश्मिका मंदाना को स्क्रीन पर देखना चाहते हैं। कहानी, हॉरर, कॉमेडी... सब कमजोर है। वरुण धवन का कैमियो भी बस दिखावे तक सीमित है। कुल मिलाकर, फिल्म पूरी तरह निराशाजनक है... न डराती है, न हंसाती है और देखने लायक कोई चीज नहीं छोड़ती।