{"_id":"5a17e2074f1c1b86698bd8a5","slug":"movie-review-of-ajji","type":"photo-gallery","status":"publish","title_hn":"Movie Review: रेप का बदला, कमजोर दिल वालों के लिए नहीं 'अज्जी'","category":{"title":"Movie Review","title_hn":"फिल्म समीक्षा","slug":"movie-review"}}
Movie Review: रेप का बदला, कमजोर दिल वालों के लिए नहीं 'अज्जी'
रेप का बदला क्या हो? बीते कुछ महीनों में मातृ, मॉम और भूमि में हमने ठेठ बॉलीवुड अंदाज में यह देखा। लेकिन डेब्यू कर रहे निर्देशक देवाशीष मखीजा ने यहां बदले की लगाम माता या पिता के बजाय अज्जी यानी दादी के हाथों में दे रखी है। बच्चियों से रेप की घटनाओं पर आई पिछली तीन फिल्मों में अज्जी सबसे कम ड्रामाई लेकिन सबसे ज्यादा असर छोड़ने वाली फिल्म है। निःसंदेह यह भुतहा मायनों में हॉरर नहीं है लेकिन कई जगहों पर रोंगटे खड़े कर देती है।
Trending Videos
2 of 4
अज्जी
अज्जी लोरी नहीं सुनाती बल्कि रात-रात भर खुद जागती हुई आपको जगाए रखती है। मुंबई के एक उपनगर की गरीब झुग्गियों में रहने वाली दस साल की मंदा (शरवनी सूर्यवंशी) का रेप हुआ है। अज्जी को वह कूड़ा-करकट डालने वाली जगह पर पड़ी मिली। रेप कुछ दूरी पर एक ऊंची इमारत बना रहे बिल्डर के बेटे ने किया है। लेकिन पुलिसवाले ने मंदा, उसके मां-पिता और अज्जी से चुप रहने को कहा है क्योंकि मुंह खोला तो ताकतवर नेतानुमा बिल्डर कुछ भी करा सकता है। दिहाड़ी पर जिंदगी गुजार रहे कमजोर माता-पिता अब कैसे आवाज उठा सकते हैं? लेकिन अज्जी हार नहीं मानती।
विज्ञापन
विज्ञापन
3 of 4
अज्जी
नेता-पुलिस के थोड़े फिल्मी ड्रामा को छोड़ दें तो अज्जी बेहद रीयलिस्टिक अंदाज में बनी फिल्म है। अपनी पोती को तड़पती देख कर खामोश रहने वाली अज्जी कैसे बदला लेती है, यह रोचक ढंग से दिखाया गया है। आप जानते हैं कि बदला लिए जाएगा मगर किस अंदाज में, यह बात धड़कनों को तेज किए रहती है। यहां मसाला फिल्मों जैसा थ्रिल नहीं बल्कि सहज घटनाक्रम हैं जो अंत तक बांधे रहते हैं। कई जगहों पर अज्जी के दृश्य और संवाद इतने सच्चे हैं कि आप सोच में पड़ जाते है कि असल जिंदगी में ये कितने कड़वे और घृणा पैदा करने वाले होंगे।
4 of 4
अज्जी
इस लिहाज से फिल्म कमजोर दिलवालों के लिए नहीं है। फिल्म पर देवाशीष मखीजा की सख्त पकड़ है और कहानी के कसाव को कहीं कम नहीं पड़ने देते। इसमें अज्जी बनीं सुषमा देशपांडे का अहम योगदान है। वह मुंबई के सख्त हालात से लड़ती-बढ़ती अज्जी नजर आती है जो एक पल को भी घुटने टेकने को तैयार नहीं। फिल्म का हर दृश्य शिद्दत के साथ रचा गया है। फिल्म के संपादन में पैनापन है। अच्छा है कि गीत-संगीत से मोह से निर्देशक बचे रहे। जो लोग स्वतंत्र ढंग से कम बजट का सिनेमा बनाना चाहते हैं, उन्हें यह फिल्म देखनी चाहिए।
एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें
Next Article
Disclaimer
हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर और व्यक्तिगत अनुभव प्रदान कर सकें और लक्षित विज्ञापन पेश कर सकें। अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।