यह कहने-सुनने में भले ही कुछ अजीब सा लगे, मगर एकदम सच है। हम बात कर रहे हैं अरुणाचल प्रदेश के कुरुंग कुमे जिले के गांव ज्ञापिन की। इस गांव तक पहुंचने का रास्ता देखेंगे तो आपको लगेगा कि ऐसे पहाड़ और खतरनाक जंगल तो टीवी पर ही देखने को मिलते हैं। आजादी के बाद यहां आईटीबीपी (इंडो-तिब्बती सीमा पुलिस) के सहयोग से पहली बार मतदान केंद्र स्थापित किया गया है। इससे पहले वोटरों को मतदान करने के लिए 45 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था।
11 अप्रैल को पहाड़ों में रहने वाले 346 वोटरों ने पहली बार अपने गांव में बने मतदान केंद्र जाकर वोट डाला है। चुनावी दल के कर्मियों को मतदान केंद्र तक आने-जाने में 6 दिन लग गए। बरसात और फिसलन वाले पहाड़ी रास्ते, घना जंगल और खतरनाक जानवर... आईटीबीपी ने इन सब बाधाओं को किनारे कर ज्ञापिन में मतदान संपन्न कराया।
आईटीबीपी का कहना है कि ग्रामीणों ने आजादी के बाद पहली बार अपने गांव में वोट डाला है, लिहाजा वे काफी खुश हैं। इससे पहले जितने भी चुनाव हुए हैं, यहां के ग्रामीण वोट डालने से वंचित रह जाते थे। वजह, मतदान केंद्र 40-50 किलोमीटर दूर बनता था। सभी लोगों तक उसकी सूचना भी नहीं पहुंच पाती थी। अगर किसी को मतदान केंद्र की सूचना मिल भी गई तो वे पहाड़ी रास्ता तय कर वहां तक पहुंचने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे।
गांव तक पहुंचने का पक्का और सुरक्षित रास्ता न होने के कारण अनेक परिवार यहां से इटानगर चले गए हैं। वे अब वहीं पर रहते हैं। जब भी मतदान होता तो वे अपने गांव आने के लिए उत्सुक रहते थे, लेकिन प्राकृतिक बाधाएं उनके कदमों को रोक देती। आजादी के बाद से लेकर अब तक ऐसा ही चल रहा था। यानी किसी को वोट डालना है तो उसे कम से कम 45-50 किलोमीटर दूर पारसी पालो नामक जगह पर जाना पड़ता था। यहां तक जाने के लिए कोई सड़क या कच्चा मार्ग भी नहीं है। केवल पहाड़ और घने जंगल हैं। इनके बीच से ही तमाम तरह के जोखिम उठाकर ही कोई व्यक्ति मतदान केंद्र तक पहुंच सकता था।
आईटीबीपी ने यहां मतदान केंद्र स्थापित कराने में ही मदद नहीं की, बल्कि लोगों को उनके घर जाकर वोट डालने के लिए प्रेरित भी किया। जवानों ने लोगों से कहा कि जो परिवार इटानगर में रहते हैं, उन्हें भी सूचित कर दें कि वे अपने गांव में आएं और वोट डालें। आईटीबीपी ने करीब पचास लोगों की टीम को इस गांव तक पहुंचाया। पारसी पालो तक आने जाने में छह दिन लग गए। यहां से आगे रास्ते में बरसात आई तो उससे बचने का कोई इंतजाम नहीं था। चुनावी दल में शामिल कई कर्मी तो फिसल कर गिर पड़े।