महाराष्ट्र में सियासी जंग जारी है। शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे के साथ 48 विधायक असम में डेरा डाले हुए हैं। वहीं, उद्धव ठाकरे अपनी सरकार बचाने की आखिरी कोशिशों में जुटे हैं। उद्धव ठाकरे का आरोप है कि विधायकों के बागी होने के पीछे भाजपा का हाथ है। भाजपा ही शिवसेना के खिलाफ षडयंत्र रच रही है।
एक जमाना था जब महाराष्ट्र में भाजपा को शिवसेना का छोटा भाई कहा जाता था। यहां तक बाला साहेब ठाकरे भाजपा को कमलाबाई तक कह देते थे। अब महाराष्ट्र में शिवसेना के मुकाबले भाजपा ज्यादा मजबूत हो गई है। अब महाराष्ट्र में शिवसेना से ज्यादा भाजपा के विधायक और सांसद हैं।
आइए जानते हैं भाजपा और शिवसेना के रिश्तों की पूरी कहानी। ये भी की आखिर बाला साहेब ठाकरे भाजपा को कमलाबाई क्यों कहते थे? दोनों के बीच गठबंधन कब और किन परिस्थितियों में हुआ? अब तक कैसे रिश्ते रहे?
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Shiv Sena: भाजपा को कमलाबाई क्यों कहते थे बाल ठाकरे? जानिए भाजपा-शिवसेना के रिश्तों की पूरी कहानी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: हिमांशु मिश्रा Updated Sat, 25 Jun 2022 11:10 PM IST
सार
एक जमाना था जब महाराष्ट्र में भाजपा को शिवसेना का छोटा भाई कहा जाता था। यहां तक बाला साहेब ठाकरे भाजपा को कमलाबाई तक कह देते थे। अब महाराष्ट्र में शिवसेना के मुकाबले भाजपा ज्यादा मजबूत हो गई है। अब महाराष्ट्र में शिवसेना से ज्यादा भाजपा के विधायक और सांसद हैं।
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अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बाल ठाकरे
- फोटो : अमर उजाला
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बाल ठाकरे
- फोटो : सोशल मीडिया
जब पहली बार हुआ भाजपा-शिवसेना का गठबंधन
भाजपा-शिवसेना का पहली बार गठबंधन 1989 में हुआ था। भाजपा नेता प्रमोद महाजन खुद गठबंधन का प्रस्ताव लेकर बाल ठाकरे के पास गए थे। कहा जाता है कि उस दौरान महाजन के प्रस्ताव पर बाल ठाकरे ने मुंह से कुछ बोलने की बजाय एक कागज पर लिखा- 'शिवसेना 200 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और जो सीटें बचती हैं, उन पर भाजपा लड़ ले।' महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटें हैं। ठाकरे के इस प्रस्ताव पर प्रमोद महाजन ने मोलभाव किया। आधे घंटे से भी कम समय में गठबंधन को इस बात पर फाइनल किया गया कि 1990 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना 183 और भाजपा 104 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
भाजपा-शिवसेना का पहली बार गठबंधन 1989 में हुआ था। भाजपा नेता प्रमोद महाजन खुद गठबंधन का प्रस्ताव लेकर बाल ठाकरे के पास गए थे। कहा जाता है कि उस दौरान महाजन के प्रस्ताव पर बाल ठाकरे ने मुंह से कुछ बोलने की बजाय एक कागज पर लिखा- 'शिवसेना 200 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और जो सीटें बचती हैं, उन पर भाजपा लड़ ले।' महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटें हैं। ठाकरे के इस प्रस्ताव पर प्रमोद महाजन ने मोलभाव किया। आधे घंटे से भी कम समय में गठबंधन को इस बात पर फाइनल किया गया कि 1990 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना 183 और भाजपा 104 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
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अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी के साथ बाल ठाकरे।
- फोटो : अमर उजाला
विचारधारा एक लेकिन दोनों में पति-पत्नी वाले रिश्ते रहे
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप रायमुलकर कहते हैं, हिंदुत्व के नाम पर दोनों पार्टियां तेजी से आगे बढ़ीं। दोनों के विचारधारा एक सी थीं। मुद्दों और नीतियों में काफी समानता थी। दोनों के रिश्ते हमेशा पति-पत्नी जैसे थे। 1989 का लोकसभा चुनाव भी दोनों ने साथ लड़ा। तब भाजपा ने 33 और शिवसेना ने तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि, उस समय शिवसेना का अपना चुनाव चिह्न नहीं था, इसलिए उसके कई उम्मीदवार भाजपा के टिकट पर ही चुनाव लड़े थे। उस चुनाव में भाजपा 10 और शिवसेना एक सीट जीती थी।
फिर आया 1990 का विधानसभा चुनाव। तब 183 सीटों पर लड़ने वाली शिवसेना 52 सीटें जीत पाई जबकि 64 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई। वहीं, 104 सीटों पर लड़ने वाली भाजपा के 42 उम्मीदवार जीते और 23 पर उसकी जमानत जब्त हुई। चुनाव में भाजपा स्ट्राइक रेट शिवसेना से बेहतर रहा। तब से लेकर अब इस गठबंधन ने जितने चुनाव लड़े सभी में भाजपा का स्ट्राइक रेट शिवसेना के मुकाबले बेहतर रहा।
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप रायमुलकर कहते हैं, हिंदुत्व के नाम पर दोनों पार्टियां तेजी से आगे बढ़ीं। दोनों के विचारधारा एक सी थीं। मुद्दों और नीतियों में काफी समानता थी। दोनों के रिश्ते हमेशा पति-पत्नी जैसे थे। 1989 का लोकसभा चुनाव भी दोनों ने साथ लड़ा। तब भाजपा ने 33 और शिवसेना ने तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि, उस समय शिवसेना का अपना चुनाव चिह्न नहीं था, इसलिए उसके कई उम्मीदवार भाजपा के टिकट पर ही चुनाव लड़े थे। उस चुनाव में भाजपा 10 और शिवसेना एक सीट जीती थी।
फिर आया 1990 का विधानसभा चुनाव। तब 183 सीटों पर लड़ने वाली शिवसेना 52 सीटें जीत पाई जबकि 64 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई। वहीं, 104 सीटों पर लड़ने वाली भाजपा के 42 उम्मीदवार जीते और 23 पर उसकी जमानत जब्त हुई। चुनाव में भाजपा स्ट्राइक रेट शिवसेना से बेहतर रहा। तब से लेकर अब इस गठबंधन ने जितने चुनाव लड़े सभी में भाजपा का स्ट्राइक रेट शिवसेना के मुकाबले बेहतर रहा।

बाल ठाकरे
- फोटो : अमर उजाला
खींचतान बढ़ी तो नगर निगम अलग तो विधानसभा साथ लड़े
1990 विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान का नतीजा था कि 1991 का बृहन्मुंबई नगर निगम का चुनाव भाजपा-शिवसेना ने अलग-अलग लड़ा था, क्योंकि सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बन पा रही थी।
1995 का विधानसभा चुनाव आते-आते दोनों में खींचतान बढ़ने लगी थी कि अगर सरकार बनाने लायक सीटें आईं, तो मुख्यमंत्री किसका होगा। हालांकि, तब भाजपा महाराष्ट्र में जूनियर पार्टी ही थी। इसलिए बाल ठाकरे का तय किया हुआ फॉर्म्यूला लागू किया गया। इसके मुताबिक, जिस पार्टी की ज्यादा सीटें होंगी, उसका मुख्यमंत्री होगा।
तब शिवसेना 169 और बीजेपी 116 सीटों पर चुनाव लड़ी। नतीजा रहा कि शिवसेना 73 सीटें जीती, 60 पर जमानत जब्त हुई जबकि भाजपा 65 सीटें जीती और 25 पर जमानत जब्त हुई। गठबंधन की कुल सीटें 138 थीं, निर्दलीय विधायकों के समर्थन से शिवसेना-भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई। शिवसेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने और भाजपा के गोपीनाथ मुंडे उप-मुख्यमंत्री। हालांकि, जोशी के करीब 4 साल के कार्यकाल के बाद शिवसेना के नारायण राणे ने नौ महीने के लिए कुर्सी संभाली।
1990 विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान का नतीजा था कि 1991 का बृहन्मुंबई नगर निगम का चुनाव भाजपा-शिवसेना ने अलग-अलग लड़ा था, क्योंकि सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बन पा रही थी।
1995 का विधानसभा चुनाव आते-आते दोनों में खींचतान बढ़ने लगी थी कि अगर सरकार बनाने लायक सीटें आईं, तो मुख्यमंत्री किसका होगा। हालांकि, तब भाजपा महाराष्ट्र में जूनियर पार्टी ही थी। इसलिए बाल ठाकरे का तय किया हुआ फॉर्म्यूला लागू किया गया। इसके मुताबिक, जिस पार्टी की ज्यादा सीटें होंगी, उसका मुख्यमंत्री होगा।
तब शिवसेना 169 और बीजेपी 116 सीटों पर चुनाव लड़ी। नतीजा रहा कि शिवसेना 73 सीटें जीती, 60 पर जमानत जब्त हुई जबकि भाजपा 65 सीटें जीती और 25 पर जमानत जब्त हुई। गठबंधन की कुल सीटें 138 थीं, निर्दलीय विधायकों के समर्थन से शिवसेना-भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई। शिवसेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने और भाजपा के गोपीनाथ मुंडे उप-मुख्यमंत्री। हालांकि, जोशी के करीब 4 साल के कार्यकाल के बाद शिवसेना के नारायण राणे ने नौ महीने के लिए कुर्सी संभाली।
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बाल ठाकरे
- फोटो : अमर उजाला
जब पहली बार बाल ठाकरे ने भाजपा को कमलाबाई कहा
अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने तब शिवसेना कोटे से दो कैबिनेट और एक राज्यमंत्री बनाया गया। लेबर रिफॉर्म, आर्टिकल 370 और राम मंदिर जैसे मुद्दों पर शिवसेना भाजपा की आलोचना करती रही। यही वह समय था, जब बाल ठाकरे भाजपा को कमलाबाई कहकर पुकारने लगे थे। 1999 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों को नुकसान उठाना पड़ा।
1999 में शिवसेना 161 और बीजेपी 117 सीटों पर एकसाथ चुनाव लड़ी। शिवसेना को 69 और भाजपा को 56 सीटें मिलीं। कहा जाता है कि 1999 के चुनाव में भाजपा-शिवसेना की आपसी मतभेद ने काफी नुकसान पहुंचाया। तब सरकार बनाने का मौका गंवाकर भाजपा-शिवसेना अगले 15 साल तक महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर रहे। कांग्रेस-एनसीपी का गठबंधन जारी रहा। 1999 से 2014 तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कांग्रेस के विलासराव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे, अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण बैठे।
अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने तब शिवसेना कोटे से दो कैबिनेट और एक राज्यमंत्री बनाया गया। लेबर रिफॉर्म, आर्टिकल 370 और राम मंदिर जैसे मुद्दों पर शिवसेना भाजपा की आलोचना करती रही। यही वह समय था, जब बाल ठाकरे भाजपा को कमलाबाई कहकर पुकारने लगे थे। 1999 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों को नुकसान उठाना पड़ा।
1999 में शिवसेना 161 और बीजेपी 117 सीटों पर एकसाथ चुनाव लड़ी। शिवसेना को 69 और भाजपा को 56 सीटें मिलीं। कहा जाता है कि 1999 के चुनाव में भाजपा-शिवसेना की आपसी मतभेद ने काफी नुकसान पहुंचाया। तब सरकार बनाने का मौका गंवाकर भाजपा-शिवसेना अगले 15 साल तक महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर रहे। कांग्रेस-एनसीपी का गठबंधन जारी रहा। 1999 से 2014 तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कांग्रेस के विलासराव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे, अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण बैठे।