आज हमारा देश स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे कर रहा है, इसे आजादी के 'अमृत महोत्सव' पर्व के रूप में मनाया जा रहा है। आजादी के बाद देश में भले ही संसाधनों की कमी थी, फिर भी दृढ़ इच्छाशक्ति से कई क्षेत्रों में दुनियाभर में हमने नाम कमाया। आर्थिक हो या सामाजिक, विज्ञान हो या विनिर्माण, सब में भारत का डंका बज रहा है। देश ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी काफी बेहतर काम किया। कई गंभीर बीमारियों को हमारी बेहतर स्वास्थ्य योजनाओं ने पूरी तरह से खत्म करने में सफलता पाई, कुछ के करीब हैं।
आजादी का अमृत महोत्सव: 75 वर्षों में इन बीमारियों पर देश ने पाई विजय, कुछ पर जल्द उम्मीद


पोलियो पर विजय
पोलियो का संक्रमण देश के लिए लंबे समय तक गंभीर चिंता का कारण रहा। पोलियो से पीड़ित लगभग 2 फीसदी बच्चों की गंभीर बीमारी के कारण मौत हो जाती थी, वहीं सभी मामलों में से लगभग 95 फीसदी को एक या दोनों पैरों में लकवा की शिकायत रह जाती, जिससे उनका जीवन काफी कठिन हो जाता था। भारत ने इस गंभीर समस्या से मुकाबले और इसे देश से मुक्त करने के लिए जन-जन की भागीदारी का आह्वान किया।
1970 में पहली बार देश में ओरल पोलियो वैक्सीन तैयार की गई और साल 1995 में देशभर में तीन साल तक की उम्र के बच्चों को पोलियो का टीका अनिवार्य कर दिया गया। 'दो बूंद जिंदगी के' टैग लाइन के साथ पोलियो के खिलाफ भारत का अभियान रंग लाया, 2011 के बाद से देश में पोलियो के मामले नहीं देखे गए हैं। साल 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को पोलियो मुक्त घोषित कर दिया।

टीवी के खिलाफ लड़ाई जारी
माइको ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया के कारण होने वाली ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) को जानलेवा बीमारियों में से एक माना जाता है। यह बीमारी फेफड़ों को बुरी तरह से क्षति पहुंचाती है। संक्रमितों को दमघोटू खांसी और फेफड़ों में दर्द और असहजता की समस्या बनी रहती है। टीवी के खिलाफ भारत का संघर्ष अब भी जारी है, हालांकि सरकार ने 2025 तक देश को टीबी से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की 'ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2020' पर नजर डालें तो पता चलता है कि 2019 में दुनियाभर के 26% टीबी के मरीज अकेले भारत से ही थे। वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी 'एनुअल टीबी रिपोर्ट 2021' के मुताबिक, साल 2020 में देश में टीबी के 18.05 लाख, 2019 में 24.03 और 2018 में 21.56 लाख मरीज सामने आए थे। क्या सरकार 2025 तक देश के टीबी से मुक्त बना पाएगी? यह देखने वाली बात होगी। सरकारी अस्पतालों में टीबी का इलाज मुफ्त उपलब्ध है।

चेचक पर कितनी सफलता?
आजादी के बाद भारत के लिए चेचक से मुकाबला करना एक बड़ी चुनौती थी। हालांकि देश में आजादी के दो साल बाद ही चेचक के खिलाफ टीकाकरण की शुरुआत हो गई थी। टीकाकरण को लेकर लोगों को जागरूक करने और इस बीमारी के खिलाफ एक जुटता के लक्ष्य से साल 1962 में राष्ट्रीय चेचक उन्मूलन कार्यक्रम की शुरुआत हुई। साल 1979 में भारत चेचक मुक्त घोषित किया गया।
चेचक के टीके की प्रभाविकता 95 फीसदी तक बताई जाती है। पिछले कुछ महीनों में देश में विदेशों से आए स्मॉलपॉक्स परिवार के ही मंकीपॉक्स वायरस के मामले भी रिपोर्ट किए गए हैं।

कोरोना संक्रमण की रोकथाम में काफी हद तक सफलता
दिसंबर 2019 के अंत में सामने आए कोरोना संक्रमण के कारण महामारी अब भी जारी है। म्यूटेशन के साथ सामने आ रहे वायरस के नए-नए वैरिएंट्स के कारण भारत सहित पूरी दुनिया अभी इस संकट से निकल नहीं पाई है। हालांकि भारत के लिहाजे से बात करें तो देश ने महामारी की रोकथाम में बेहतर काम किया। नए वैरिएंट्स के कारण देश में भले ही संक्रमण के दैनिक मामले 15 हजार से अधिक बने हुए हैं, पर इसके कारण गंभीरता और मौत के मामलों को कम करने में सफलता मिली है।
महामारी के गंभीर दौर में भारत ने स्वदेशी वैक्सीन न सिर्फ देशवासियों को मुफ्त में दी, साथ ही दूसरे देशों को भी इस महामारी से बचाने के लिए वैक्सीन की सप्लाई की। कई देशों में ज्यादातर आबादी को भारत द्वारा तैयार की गई वैक्सीन ही दी गई है। कोरोना की रफ्तार को तो कम करने में देश ने उपलब्धि हासिल कर ली है, उम्मीद है कि देश जब ही इस संक्रमण से देश को मुक्त करने में सफल होगा।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्ट्स और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सुझाव के आधार पर तैयार किया गया है।
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